Jun 29, 2025

2025-06-27 संविधान की उद्देशिका


2025-06-27  

 

संविधान की उद्देशिका  







 

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जिसे चारों दिशाओं का होश नहीं, जो दसवीं में तीन कोशिशों के बाद थर्ड डिवीजन से एनटायर मेट्रिक पास हुआ, जो अपने बाप का नाम तक सही लिख नहीं सकता, जो दुनिया के नक्शे में तत्काल भारत और अपना शहर नहीं ढूँढ़ सकता, जिसे दिन-रात, सूर्य-चंद्रग्रहण और सौर-मण्डल के बारे में सही से पता नहीं वह भी नीचे से पाद और ऊपर से मूली की डकार की तरह संविधान में संशोधन का सुझाव तो दे ही देता हैऔर बड़े बड़े पदों पर बैठे तथाकथित अपने को कानून का ज्ञाता कहने वाले लेकिन अक्ल से पैदल चापलूस लोग भी उनका समर्थन करने लग जाते हैं तो बड़ी चिंता होती हैसंविधानहुआ गली का खजुआ कुत्ता हो गया जिसे आते जाते कोई भी लफंगा लात मार जाता है 

समय समय पर जनता का जरूरी मुद्दों से ध्यान हटाने के राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम में आजकल संविधान में संशोधन पर बात चल रही हैइसलिए मित्रों से कई आलेखों का आदान-प्रदान हो जाता है जिनमें संविधान का प्रीऐम्बल भीजाता है जिसका हिन्दी अनुवादउद्देशिका' किया गया हैमैं अभी तक उसे संविधान की प्रस्तावना मानता आया थावैसे किसी भी पुस्तक से पहले उसके परिचय/सार के बतौर लेखक या कोई विद्वान जो कुछ लिखता है जिसे प्रस्तावना, आमुख, भूमिका आदि भी कहा जाता हैआमुख प्री फेस का बढ़िया अनुवाद हैजैसे नई बहू की मुँह दिखाईसम्पूर्ण व्यक्तित्व और समस्त गुणावगुण का धीरे-धीरे आगे पता चलता है ।   

संविधान में विभिन्न अध्यायों की सूची के बाद संविधान कीउद्देशिकआती है जोहम भारत के लोग से शुरू होकर ----आत्मार्पित करते हैंपर समाप्त होती है 

 

सामान्य रूप से हिन्दी मेंउद्देश्यशब्द प्रचलित हैइसलिए उद्देश्य से ‘’उद्देश्यिकाबनना चाहिएइसलिए अभ्यासवशउद्देशिकाअशुद्ध लगा 

एक बार जिज्ञासा होने पर आदमी को एक खास तरह की बेचैनी हो जाती हैउसी बेचैनी के तहत कई मित्रों से बात हुईखुद भी शब्दकोश देखे जिनमेंउद्देश्यतो मिला लेकिन   ‘उद्देश्यिकानहीं मिलामिला तोउद्देशिकाभी नहीं लेकिनउद्देश्यके साथउद्देशभी मिलादोनों की संस्कृत के शब्द और दोनों ही समानार्थकतो समाधान हुआ किउद्देशिकागलत नहीं है लेकिन ‘’उद्देश्यिकाक्यों नहीं ?  

हो सकता है किसी ने ध्यान नहीं दिया हो और ध्यान दिया हो तो जिज्ञासा या बेचैनी नहीं हुई होवैसे भी आजकल व्यवस्था ने लोगों को स्वर्ग-नर्क, धर्म,गर्व, स्वाभिमान,जातीयता, हिन्दुत्व की इतनी बड़ी समस्याओं के तत्काल समाधान की जिम्मेदारी सौंप दी है किउद्देशिकाया ‘’उद्देश्यिकाजैसे फालतू विषयों के लिए समय और शक्ति कुछ नहीं  बचते 

हो सकता है ‘’उद्देश्यिकाके स्थान परउद्देशिकाका चयन करने वाले विद्वानों ने सरलता और मुखसुख का सिद्धांत अपनाया हो । ‘’उद्देशिका की बजाय ‘’उद्देश्यिकाबोलने में जीभ ऐंठती हैलेकिन फिर इसी सुख के लिएसांख्यिकीऔरअंतराज्यीयको बख्श दियावैसे सांखिकी भी उद्देशिका की तरह अटपटा तो लगता 

कभी कभी कठिन का चुनाव भी सुखद लगता है 

वैसे लोग कह सकते हैं कि क्या फ़र्क पड़ता हैलेकिन फ़र्क पड़ता तो हैकम से कम एक नया शब्द जान लेने का सुख तो मिलता हैशायद ज्ञान के इसी सुख के कारण ऋषि लँगोटी में भी खुश थे 

 

-रमेश जोशी  

 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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