क्या दिल्ली जा रहा है ?
जैसे प्रचंड साहसी और समर्पित श्रद्धालु किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल के सामने माइक लगाकर जोर जोर से संगीत बजाकर अपने संकट में आ चुके अपने धर्म को बचाने का पुण्य काम करते हैं उसी श्रद्धा, समर्पण और नियमितता से गली का एक मरियल सा कुत्ता सुबह चार बजे सड़क पर जोर जोर से भूँकता है तो हमारी नींद खराब होती है ।
कुछ दिनों पहले तो हम जैसे अस्सी पार के पेंशनयाफ़्ता अति वरिष्ठ नागरिकों को यू ट्यूब पर वीडियो बनाने का धंधा करने वाले आयकर के विशेषज्ञों ने तरह तरह की छूटों और एरियरों का अनुमान बता बताकर रोमांचित कर रखा था ।’बल्ले बल्ले होने वाली है’ जैसे जुमले फेंक फेंककर इतना उत्साहित कर दिया था कि जब भी रात में नींद खुलती तो एरियर का हिसाब लगाने लगते थे । वास्तव में हिसाब लगाना तो जब नौकरी में थे तब भी नहीं आया । जो पेंशन स्लिप में थोड़ी सी वृद्धि दिखाई दे जाती उसी से खुश हो लिया करते थे । अंततः अब इंतजार कराते कराते सरकार ने वृद्ध जन अपना अंतिम कल्याणकारी निर्णय सुना ही दिया है कि 18 महिने का एरियर नहीं मिलेगा । आयकर में कोई विशेष छूट नहीं दी जाएगी, गैस में कोई सबसीडी भी नहीं, इलाज या मेडिकल भत्ते में कोई वृद्धि नहीं । जिओ तो जिओ; मरो तो और भी अच्छा । जिओ के अलावा कोई और जीकर करेगा भी क्या ? बूढ़े कौन से इलेक्ट्रॉल बॉण्ड खरीदते हैं । सरकार के इस निर्णय से भले ही निराशा हुई लेकिन ‘तार टूटा और राग पूरा’ की शैली में एक प्रकार की शांति हुई ।
तो हम बात उस कुत्ते ( और अमृतकाल की भाषा के अनुसार दिव्याग की तरह कहें तो ‘श्वान’ ) की कर रहे थे जो सुबह चार बजे अपने ‘कुत्तत्व’ की रक्षा के लिए गली में आकर भूँकता है । उसकी भाषा हम नहीं जानते । हम तो उस वस्त्र विन्यास को भी अच्छी तरह से नहीं समझते जिससे देशद्रोहियों का निर्धारण होता है तो उस निर्वस्त्र श्वान को कैसे पहचानते कि वह किस धर्म का है । वैसे कुत्तों का कोई धर्म या किसी धर्म की शाखा होती भी नहीं । उनका धर्म तो रोटी डालने वाले के सामने पूंछ हिलाना और उसके इशारे पर किसी पर भी भूँकना होता है । उसके गले में काँवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले एक खास धर्म के फल और होटल वालों की तरह कोई नामपट्टिका लगी होती तो भी पहचान लेते ।
इतना तय है कि उसके भूँकने से हमारा पालतू श्वान भी भूँकने लगता है जिससे हमारी नींद और राष्ट्र के सुशासन में बाधा पड़ती है । इसीलिए बेमन से ही सही उसे भगाने के लिए हम जैसे ही सड़क पर आए तो देखा कि तोताराम जयपुर रोड़ की तरफ चला जा रहा है ।
हमने छेड़ा- इतनी सुबह-सुबह ! प्रातः-भ्रमण या देव-दर्शन ?
बोला- इनमें से एक भी नहीं । आज तो दिल्ली के लिए निकला हूँ ।
हमने कहा- आज तो ‘भारत बंद’ है ।
बोला- याद रख, 2014 के बाद भारत न कभी बंद होता है, न उसका विकास मंद पड़ता है । वह निरंतर आगे बढ़ रहा है । और अब तो मोदी जी लाल किले से बता दिया है कि एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए ‘इंक्रीमेंटल’ वृद्धि नहीं, छलांग लगाने का ‘अमृतकाल’ चल रहा है ।
हमने कहा- तुझे पता होना चाहिए एक एक सीढ़ी की बजाय दो दो सीढ़ी छोड़कर चढ़ने से निक्कर भी फट सकता है ।
बोला- मेरे पास तेरी तरह फालतू समय नहीं है । ज्यादा देर हुई तो दिल्ली वाली ट्रेन निकल जाएगी ।
हमने कहा- अगर एक दिन पहले निकल लेता तो मोदी जी के साथ फ्री में पॉलैंड की यात्रा ही कर आता । ।अब तो वे निकल लिए । दो चार दिन बाद चले जाना, ऐसी क्या जल्दी है । बिना बात रास्ते में पुलिस धर लेगी तो मुश्किल हो जाएगी ।
बोला- मैंने थैले में एक छोटी काँवड़ रख रखी है । पुलिस दिखाई देते ही इसे थैले से निकालकर कंधे पर रख लूँगा । कह दूंगा, काँवड़ लेने जा रहा हूँ । थोड़ा लेट हो गया । फिर तो पुलिस वाले मेरे पैर दबाएंगे, खाना खिलाएंगे, पुष्प वर्षा करेंगे । हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू सरकार होने का कुछ तो लाभ मिलेगा । सुना है मोदी जी ने देश को शीघ्र विकसित करने के लिए काबिल लोगों की सेवा का लाभ लेने के लिए लेटरल एंट्री नाम की कोई योजना निकाली है ।
हमने पूछा- यह लेटरल एंट्री क्या होती है ?
बोला- इसके तहत सरकार अपनी मर्जी से किसी को भी सीनियर आई ए एस की तरह भारत सरकार में सचिव, उप सचिव जैसा कोई महत्वपूर्ण पद दे सकती है ।
हमने कहा- लेकिन वह योजना तो प्रतिपक्ष के विरोध के कारण वापिस ले ली गई ।
बोला- यह सब तो दिखाने के लिए किया गया है । इसे शुद्ध हिन्दी में ‘पिछवाड़ा-प्रवेश-पद्धति’ कहते हैं । आगे से नहीं तो पीछे से घुसवा देना । जैसे अपने किसी प्रिय कर्मचारी को उसके वांच्छित स्थान पर पद खाली न होने पर डेपुटेशन के बहाने सेट करवा देना । वैसे ही जैसे लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद बारहवीं पास स्मृति ईरानी को राज्य सभा नामक पिछवाड़े से घुसाकर शिक्षामंत्री बना देना । या अमृतसर से लाखों वोटों से हार जाने वाले जेटली को वित्तमंत्री बना देना । और फिर इसमें बुराई क्या है ? कांग्रेस ने भी तो मनमोहन सिंह, मोंटेक सिंह, रघुरामन, निलेकणी, पित्रोदा आदि को पिछवाड़े से ही तो घुसाया था ।
हमने कहा- इसका मतलब मनमोहन सिंह और स्मृति दोनों एक समान हो गए । मनमोहन जी ने कठिन समय में अपनी प्रतिभा और ईमानदारी का लोहा देश-दुनिया से मनवाया है । और ये महिला और बालकल्याण मंत्री होकर भी मणिपुर, हाथरस, उन्नाव, कठुआ और महिला पहलवानों पर चुप रहीं ।
तूने ‘अनीता’ फिल्म का वह गाना नहीं सुना- कैसे करूँ प्रेम की मैं बात , पिछवाड़े बुड्ढा खाँसता । कोई तो बोलेगा ।
बोला- कोई नहीं बोलेगा । सबको अपना अपना मंत्री पद प्यारा है । बोलेगा तो आडवाणी जी की तरह बरामदे में बैठा दिया जाएगा । और आडवाणी जी भी किस मुँह से बोलेंगे । उन्होंने तो खुद मोदी जी को अनेक लोगों के प्रतिरोध के बावजूद मोदी जी को इसी ‘पिछवाड़ा प्रवेश पद्धति’ से पहले गुजरात का मुख्यमंत्री और फिर 2014 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनवाया था ।
इतने दिन राष्ट्र और संस्कृति की सेवा की है । न सही किसी मंत्रालय में सचिव या राज्यसभा का सदस्य । अपनी तो किसी अकादमी के अध्यक्ष पद में ही बल्ले बल्ले हो जाएगी । फिर तेरे लिया इस बार का अकादमी अवॉर्ड पक्का ।
हमें कहा- लेकिन तोताराम, पिछवाड़े से घुसने में गंदगी में सन जाने का खतरा तो रहेगा । उस स्थिति में तेरा ब्राह्मण जन्म तो भ्रष्ट हो जाएगा ।
बोला- ऐसी कोई बात नहीं है । वहाँ एक बड़ी वाशिंग मशीन लगी हुई है उसमें गंगा-स्नान से भी न धुल सकने वाली अपवित्रता और गंदगी धुल जाती है ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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