Jul 26, 2025

2025-07-21 कलेक्टर नहीं तो थानेदार को बुला






2025-07-21  

कलेक्टर नहीं तो थानेदार को बुला  

 

हमारा घर कालोनी की मुख्य सड़क पर हैवैसे तो सभी मकानों के आगे भी कानूनी रूप से सड़कें हैंअंतर बस, उनकी चौड़ाई, उनके सामने के गड्ढों की संख्या और गहराई का हैकई दिनों से हमारे घर के सामने की सड़क के सभी खंभों की लाइटें नहीं जल रही थींकई संदर्भ निकालकर, कई बार फोन करने और विनम्र मेसेज करने के बाद आज कोई पाँच बजे शाम को दो सज्जन एक सीढ़ी के साथ अवतरित हुए और तारों को फिर से जोड़ा और चले गए 

अब हम तमसो मा ज्योतिर्गमय के भाव से हर दस-पाँच मिनट में खंभे पर लगी लाइट को ब्रज की गोपियों की तरह मथुरा से आने वाली राह या मोदी जी के अच्छे दिनों की तरह अपलक निहार रहे थेआए याआए ।  पता नहीं कबजाएइस ऊहापोह में समय का पता ही नहीं चला कि कब अँधेरा हो गया 

तभी हमारे बगल से एक दबंग आवाज आई- भगत, आज भोले की काँवड़ का रात्रि-विश्राम तेरे यहीं होगा 

हम चौंककर गिरते गिरते बचे 

देखा,  भगवा वस्त्रों में लिपटी कोई पाँच फुट की एक आकृति हमारे बगल में खड़ी हैकोई भयंकर, खूँख्वार नहीं लेकिन काँवड़िया तो हैवह प्राणी जिस पर कोई नियम-कानून लागू नहीं होताजिनके लिए देश के  राजमार्ग खाली करवा दिए गए हैंजो कहीं भी किसी भी ढाबे में खाना खाकर, प्याज का बहाना नाकर पैस नही देते, कावड़ ुछ ने पर रोधि होक िसी की तो देते हैं, जिन साथ हाड़ ुए डी चल ैं ात को ोरजन लिए ैथुनी नृत् करती ेशेवर निया चलती हैंास् में मुख्यमंत्री, िलाधीश, पुलिस ीक्षक पुष्प रसाते कई पुलिसवाले ास् में िश्राम ्थों इनकी चर-सेव करते हैंिल्ली सरार इनक से में ंडरे और विश्राम-श  की व्वस्थ करन वाली सं्थओं को ाख तक का नुान ेती है 

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काँवड़ियों की पराक्रम कथाओं को सुन सुनकर हम दूर बैठे भी काँपते रहते हैंएक बार तो मन हुआ कि जल्दी से भागकर घर में घुस जाते हैंफिर सोचा- एक ही आदमी तो हैऔर वह भी मरियल सारात को पड़ा रहेगा बरामदे मेंसुबह की बची दो रोटियाँ और थोड़ा-सा दूध देंगेइसके साथ एक फ़ोटो खिंचवाकर कल के अखबार में दे आएंगे । ‘काँवड़ियों की सेवा करते केन्द्रीय विद्यालय के सेवा निवृत्त एक 83 वर्षीय उत्साही धर्मपरायण वृद्ध ज्जन रमेश जोशी ।  क्या पता इस बार के नगर परिषद के चुनावों में वार्ड मेम्बरी के लिए भाजपा का टिकट ही मिल जाए 

इस समय देश की राजनीति में राजस्थान की प्रतिभाओं का जलवा हैएक साथ तीन विभूतियाँ- जिनकी आकृति और शब्द-शब्द से बौद्धिकता टपकती हैओम बिरला, जगदीप धनखड़ और अर्जुन राम मेघवाल ।  क्या पता अपनी विनम्रता के बल पर जब धनखड़ जी राष्ट्रपति बन जाएँगे में  ाँवड़ ेवा  ाजस्थान ोने ारण पराष्ट्रपति ना िया ाए  

हमने कहा- भोले, विराजेंहम आपके लिए दूध-रोटी लाते हैंयही दरी बिछा देते हैं, यहीं बरामदे में विश्राम कर लें और सुबह आपको जहाँ जाना हो प्रस्थान करें 

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अब तो भगवा वस्त्रों में लिपटी वह लघु आकृति क्रोधित हो गई, बोली- हमें क्या आलातू-फालतू समझ रखा हैजब से तेरी गली में घुसे हैंकोई पुष्प वर्षा, न स्वागत के लिए कोई जिलाधीश, न पुलिस अधीक्षक औरही चरण सेवा के लिए कोई पुलिस वाला । न हो तो पास के औद्योगिक क्षेत्र थाने से ही किसी थानेदार को ही पकड़ ला 

हमने कहा- भोले, यू पी की बात और हैवहाँ तो धर्म की ध्वजा फहरा रही हैभले ही कानून व्यवस्था के लिए पुलिस होहो लेकिन काँवड़ियों के लिए 27 हजार पुलिस बल ड्यूटी पर डटा हुआ हैहमारे कहने से थानेदार तो दूर, गली में झाड़ू लगाने वाला भी काम नहीं करतावैसे पुण्य का काम है, दो हाथ हम ही लगा देते लेकिन क्या बताएं भोले, हमारे तो खुद की कमर और घुटनों में दर्द रहता है 

तभी पत्नी बरामदे मेंगई, बोली- क्यों इस खंभे को घूरे जा रहे होबिजली जब आएगी तबजाएगीअब चलकर खाना खालोऔर इतनी देर यह किससे पंचायती कर रहे हो ?  

हमने कहा- कोई भोला है, पता नहीं कहाँ से काँवड़ लेकर आया है ?  

पत्नी ने उस लघु आकृति के निकट जाकर देखा और बोली- काँवड़िया ! लगता है तुम्हारी आँखों के लेंस बदलवाने पड़ेंगेजैसा भी है चश्मा लगा लिया करोयह कहाँ का काँवड़िया हैयह तो तोताराम है 

हमने कहा- तो आज तेरे सुबहआने का कारण इस फ़ैन्सी ड्रेस शो की तैयारी थाअब चुपचाप घर जा और हमें भी खाना खाने देसारी शाम इन बिजली वालों के चक्कर में लग गई 

पता नहीं आज भी खंभे की यह लाइट जलेगी या नहीं ।   

 

-रमेश जोशी  

 

 

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