2025-09-07
मशरूम के पकौड़े
आज तोताराम ने आते ही ऐसे हाँक लगाई जैसे दस साल से प्रतियोगी परीक्षाएं दे देकर युवा से अधेड़ हो चुका बेरोजगार पेपर लीक से भर्तियाँ रद्द होने के विरुद्ध प्रदर्शन करते-करते, डंडे खाते-खाते आज किसी डिजिटल कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के हाथों नियुक्ति पत्र पाकर आया हो; बोला- भाभी कहाँ है ?
हमने कहा- रसोई में है । चाय बना रही है । लेकिन काम है , हमें बता ।
बोला- भाभी को मशरूम के पकौड़े और अच्छे से देसी घी डालकर हलवा बनाने के लिए बोल । और जब तक वे आती हैं तब तक तू मेरे लिए एक गमछा और बैठने के लिए कोई कुर्सी लेकर आ ।
हमने कहा- तू तो ऐसे रोब जमा रहा है जैसे ट्रम्प से शून्य टेरिफ़ करवाकर आ रहा हो या शी जिन पिंग से अपने ‘ही मैनत्व’ के बल पर सीमा पर शांति का कोई सम्मानजनक समझौता करवाकर आ रहा है ।
बोला- ये सब छोटी बातें हैं । आज मेरे घावों पर मरहम लगाने की जरूरत है, आज देश का अपमान हुआ है ।
हमने कहा- साफ-साफ बता ।
बोला- इस दर्दनाक और अपमानजनक हादसे का वर्णन करते हुए जो आँसू बहेंगे उन्हें पोंछने के लिए पहले गमछा तो ला ।
हमने अपने कंधे पर रखा हुआ नेपकिन उसे देते हुए कहा, अब बता ।
बोला- अभी जब मैं आ रहा था तो किसी बच्चे ने मुझे कालिया और छछूँदर कहा । अब बता यह समस्त ब्राह्मण जाति और अध्यापक वर्ग का अपमान है या नहीं ?
कहते-कहते तोताराम की आँखों में आँसू तो नहीं आये फिर भी उसने नेपकिन से आँखें पोंछते हुए कहा- अब बता , क्या इस जातीय अपमान के लिए मुझे मशरूम के पकौड़े और देशी घी का हलवा नहीं मिलना चाहिए ?
हमने पूछा- लेकिन तू तो मोहल्ले के सभी बच्चों को जानता है । बता कौन था ? अभी चलते हैं उसके बाप के पास और मँगवाते हैं दोनों से माफी । मामला खत्म ।
बोला- जब डबल इंजन की सरकार होते हुए बिहार में पुलिस मोदी जी की माँ को गाली देने वाले को नहीं पहचान और पकड़ पाई तो मैं कैसे उस बच्चे को पहचान सकता हूँ ?
हमने कहा- बिहार पुलिस की बात और है । वह चाहती तो गाली देने वाले को उसके कपड़ों के आधार पर भी पहचान सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि अगर वह उस गाली देने वाले को पकड़ लेती तो फिर गाली का मुद्दा कैसे बनता और विक्टिम कार्ड का चुनावी लाभ कैसे मिलता । लेकिन तू तो मोहल्ले के बच्चे को पहचान ही सकता था । लगता है तू भी हलवे और पकौड़ों के लिए यह नाटक कर रहा है । एक बुजुर्ग, ब्राह्मण अध्यापक को यह कमीनी हरकत शोभा नहीं देती । हलवा तो तू वैसे भी माँग सकता था ।
बोला- विक्टिम कार्ड कौन नहीं खेलता ? पिछले चुनाव में नीतीश कुमार ने बिहारियों के डी एन ए का मुद्दा नहीं उठाया था ? 1984 के चुनाव प्रचार में कांग्रेस को इंदिरा जी की हत्या का लाभ नहीं मिला था ?
हमने कहा- ठीक है, लेकिन मोदी जी तो 140 करोड़ भारतीयों के प्रधान मंत्री हैं इसलिए उनकी माता का अपमान भारत की सभी माताओं का अपमान है लेकिन तू कब से भारत हो गया ?
बोला- मास्टर, सब नेरेटिव गढ़ने की बात है । धनखड़ ने अपना अपमान जाटों-किसानों का अपमान नहीं बताया था ? लेकिन सत्ता और मीडिया की बैकिंग न होने से नहीं चला । वैसे ही मेरा अपमान भी अपमान नहीं । ठीक है । लेकिन हमारा अठारह महीने का डी ए का एरियर खा जाना क्या सभी कर्मचारियों और पेंशनरों का अपमान नहीं है ?
हमने कहा- तोताराम, इस दुनिया में राजा के साथ जनता को रोना पड़ता है लेकिन जनता के साथ राजा नहीं रोता जैसे कि अब राजा को बाढ़ में डूबती जनता से पहले चुनाव दिखाई दे रहा है । धनखड़ को चार चार पेंशन मिलेंगी लेकिन हमें तीन तीन पेंशन नहीं मिलतीं- एक प्राइमरी टीचर की, एक टी जी टी और एक पी जी टी की ।
राजा के लिए स्मारक बनते हैं लेकिन जनता के लिए शव जलाने की लकड़ी पर भी जी एस टी लगता है । खैर, अपमान तो नहीं लेकिन इतनी देर तक हमारे ‘मन की बात’ सुनने के उपलक्ष्य में तुझे चाय के साथ एक लड्डू अवश्य खिलवा देंगे ।
वैसे अगर तुझे मोदी जी अपमान से इतना ही दुख है तो तू भी बिहार के भाजपा नेता की तरह ‘मैं भी माँ’ का पोस्टर लेकर बरामदे में बैठ सकता है ।
-रमेश जोशी
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