Sep 4, 2025

2025-09-01 लागा झुलनिया का धक्का

   2025-09-01


लागा झुलनिया का धक्का  

 

आज जल्दी आँख खुल गई ।कोई पौने पाँच बजे थेसोचा अब क्या सोएँगेबरामदे मेंगए ।  अभी धुंधलका था, सामने के  नगर परिषद के खंभे की लाइट खराब होने के कारण सड़क पर भी कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा थाजब भी कोई मोटर साइकल वाला गुजरता तो आँखें चुँधियाती फिर कई देर तक तुलनात्मक रूप से और अधिक अँधेरा अनुभव होता 

 

तभी देखा एक सामान्य सी आकृति चलीरही हैपहचान पाने का तो सवाल ही नहीं लेकिन इतना तो दिखाई दे गया कि आकृति की पीठ पर एक सामान्य से कुछ बड़ा थैला हैकचरे में से पॉलीथिन, बोतलें बीनने वाले बच्चे और रेहड़ी वाले कबाड़ी भी इतनी जल्दी नहीं आतेनजदीक आने पर आकृति ने आवाज लगाई- 

चीनी मंजा, छोटी आँख वाले गणेश जी, नई-पुरानी लड़ियाँ ---- 

यह रोज के सामान्य कबाड़ियों से भिन्न हाँक थीऔर फिर नई लड़ियाँ कौन देगा, खराब होने पर भी आदमी सोचता है कि दस-बीस रुपए लगके ठीक हो जाए तो नई नहीं लानी पड़ेगीवैसे भी कबाड़ी लोहा, प्लास्टिक, रद्दी कापी किताबें, अखबार की तो हाँक लगाते हैं लेकिन गणेश जी ! वो भी छोटी आँख वालेअरे, गणेश जी तो गणेश जी होते हैं , मिट्टी के हों, गोबर के हों या प्लास्टर ऑफ पेरिस के हों या गणेश खैनी के रैपर पर छपे होंऐसे ही नालियों, किसी तालाब या नदी-सांद्र में फेंके जाते हैंकोई इन्हें कबाड़ में लेने को नहीं आता जैसे कि सम्मान के बतौर भेंट में मिले मोमेंटों को कोई कबाड़ी फ्री में भी नहीं लेतासर्दी में जलाने के काम आते हैं ।   

नजदीक आकर उस आकृति ने आवाज लगाई- साहब, चीनी मंजा, छोटी आँख वाले गणेश जी हो तो ले आओ ।  

हमने पूछा- किस भाव से लेते हो ? 

आकृति बोली- भाव का क्या हैअब किसी चीज के कोई भाव नहीं हैंसब कुछ बेभाव हैकोई फ्री में भी नहीं लेता लेकिन यह तो मैं हूँ जो फ्री में भी ले रहा हूँमैं तो इन्हें लेकर अपने खर्चे से दिल्ली पटककर आऊँगा ।  

हमने कहा- दिल्ली जाने की क्या जरूरत है ? यहीं मंडी की दीवार के पास फेंक आएंगे ।  

आकृति बोली- यह कबाड़ कूड़े की बात नहीं हैदेश के स्वाभिमान की बात हैअब स्वदेशी से ही देश का स्वाभिमान और जान दोनों बचेंगे ।   

हमनेकहा- तोतारामहमने तुझे पहचान लिया हैसुन- 

लागा झुलनिया का धक्का बलम अब बीजिंग पहुँच गए ।  

बोला- तू गीत को गलत तरह से प्रस्तुत कर रहा हैझुलनिया के धक्के से बलम कलकत्ता पहुंचते हैंबीजिंग नहीं ।  

हमने कहा- ये अररिया, बेगूसराय वाले बलम नहीं हैं जो कलकत्ता से आगे पहुंचते ही नहींये दिल्ली वाले तुम्हारे बलम हैं जो आजकल बीजिंग पहुँच रहे हैंदिल्ली में नहीं मिलेंगे ।  

 

 


 

 

बोला- बीजिंग वाले का तो वे नाम तक नहीं लेते हैंछोटी आँख वाले कह कर इशारा करते हैं ।  

हमने कहा- यह धक्का सुनहरे बालों वाली, युद्ध विराम करवाने वाली झुलनिया का लगा है ।  

बोला- मास्टर, यह तो ठीक नहीं हुआअब जब यह बीजिंग वाली झुलनिया धक्का मारेगी तब हमारे बलम जी अमरीका पहुँच जाएंगेऐसे तो बारी बारी से धक्के लगते रहेंगेबलम तो फुटबाल बन जाएंगेप्याज और जूते दोनों खाने पड़ेंगे ।  

हमने कहा- ज्यादा चालाक बनने वालों का यही हाल होता हैराजस्थानी में कहावत भी तो है- 

जण जण को मन राखतां वेश्या रह गई बाँझ ।  

 

बोला- तो ठीक है तू चाय बनवामैं इन्हें मंडी की दीवार के पास फेंककर आता हूँ ।  

 

-रमेश जोशी  

 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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