तीन पीढ़ी, तीन साल और तीन महिने का हिसाब
परसों ९ अक्टूबर २०१७ को तोताराम ने हमसे प्रतिज्ञा करवाई थी कि जब तक चोर- लुटेरे और भ्रष्टाचारी मोदी जी के खिलाफ लामबंद होकर षड्यंत्र कर रहे हैं और जब तक मोदी जी अपने गृहनगर के हाटकेश्वर महादेव की कृपा से उन दुष्टों का विनाश नहीं कर देते तब तक भले ही हम आर्थिक तंगी झेल लें, दवा-दारू में कमी कर लें लेकिन सातवें पे कमीशन के बारे में चूँ तक नहीं करेंगे |
भले ही सरकारें अपने वादों को जुमला बताकर हमें धोखा दे दें लेकिन हम तोताराम को दिए वचन से नहीं फिरेंगे |
हम तो वचन से बँधे हुए हैं लेकिन नेता पर तो किसी भी प्रकार का नैतिक-अनैतिक बंधन नहीं होता | वह तो जन-हित और आत्मा की आवाज़ के नाम पर गटर में उतरकर गंगा में निकल सकता है |हमारा जीवन वैसे भी ज्यादा हिसाब-किताब वाला नहीं रहा | हिंदी के मास्टर |ट्रांसफर भी हुआ तो 'नो ड्यूज' में लाइब्रेरी की किताबों के अलावा कुछ नहीं होता था |न लैब, न कोई परचेजिंग कमिटी का रुपए पैसे वाला काम | उधार हमें किसी ने दिया नहीं और हमारी हैसियत भी इस लायक नहीं रही कि कोई उधार माँगने की हिम्मत कर सके |तनख्वाह जितनी मिलती, पत्नी को दे देते |वह जैसे भी होता काम चला लेती |सब कुछ सीमित और सरल, न हिसाब,ना किताब |यहीं सब कुछ लुटाना है |
आजकल हिसाब-किताब का मौसम है जैसे दिवाली पर पुराने खाते पटाकर नए खाते शुरू करते हैं |तभी कुछ दिनों से नेहरू-गाँधी परिवार से तीन पीढ़ियों का हिसाब माँगा जा रहा है और राहुल द्वारा अमित-मोदी गठबंधन से तीन साल का हिसाब माँग रहे हैं ||
आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- आजकल बहुत ज़ोरों से हिसाब-किताब चल रहा है |
बोला- फिर वही हिसाब-किताब वाली बात |अरे, छोड़ इस तृष्णा को |तुझे कहा नहीं था कि मोदी जी को शांति से देश का विकास करने दे |राम-राम करके स्वतंत्रता के बाद कोई विकास के प्रति प्रतिबद्ध होकर संकल्प से सिद्धि के लिए रात-दिन एक किए हुए है और एक तू है कि अपने दो पैसों के लिए बन्दे की तपस्या भंग करने पर तुला हुआ है |
हमने कहा- तोताराम, हम तो वैसे ही आजकल जो चल रहा है उसकी तनिक सी चर्चा कर रहे हैं | हम तुम्हें दिए वचन से थोड़े ही फिर रहे हैं |
बोला- तो फिर बता, क्या बात है ?
हमने कहा- अमित जी ने अमेठी में कहा है कि अमेठी की जनता ने कांग्रेस के शाहजादे राहुल गाँधी की तीन पीढ़ियों को वोट दिया | अब अमेठी की जनता तीन पीढ़ी का हिसाब माँग रही है |
बोला- उत्तर देने से पहले मैं कुछ तथ्यात्मक गलतियाँ ठीक करना चाहता हूँ |तुझे पता होना चाहिए कि अमरीका में जब कोई कंपनी किसी से कोई क़र्ज़ वसूल नहीं कर पाती तो वह उस कर्ज को सस्ते में किसी को बेच देती है |कंपनी को कुछ न कुछ मिल जाता है |आगे उस क़र्ज़ को खरीदने वाले की ताकत पर निर्भर होता है कि वह कितना वसूल कर पाता है |ऐसे ही जब कोई जेबकतरा किसी शिकार की जेब नहीं काट पाता तो वह उस शिकार को उस रूट के किसी अन्य जेबकतरे को बेच देता है |तो क्या अमेठी की जनता ने इस हिसाब-किताब का ठेका अमित जी को दे दिया है ? वैसे यह सच है कि अमित जी 'शाह' हैं और उन्हें येन केन प्रकारेण क़र्ज़ वसूलने का अनुभव अवश्य रहा है |'शाहों' के पास बहियाँ भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती हैं |लेकिन क्या यह उचित है कि उनके परदादा, दादी और पिता का क़र्ज़ उनसे वसूला जाए ? राहुल खुद तो आज तक किसी पद पर रहे नहीं |
दूसरी बात- राहुल 'गाँधी' हो सकते हैं लेकिन 'शाहजादे' नहीं क्योंकि राजीव 'शाह' नहीं 'गाँधी' थे |भारत की सरनेम परंपरा के अनुसार 'शाहजादे' तो जय 'शाह' ही हो सकते हैं क्योंकि वे अमित 'शाह' के पुत्र हैं |
हमने कहा- लेकिन हिसाब करने में क्या बुराई है ? हिसाब पाई-पाई का बख्शीश लाख की |हिसाब तो बाप-बेटे का भी होता है |लेकिन इन राजनीति वाले लोगों का हिसाब-किताब बड़ा गन्दा और उलझा हुआ होता है |सबका चोरों वाला हिसाब है |आपस में लड़ेंगे लेकिन अदालत में नहीं जाएँगे क्योंकि सब एक दूसरे की असलियत जानते हैं |सब की दाढ़ियों में कई-कई झाडू फँसी हुई हैं |कोई पसीने की कमाई खाने वाला नहीं है |सब जनता के माल पर दंड पेल रहे हैं |
इसी बात पर एक सत्य घटना सुन | हमारे मंदिर के पास दो छोटे-छोटे दुकाननुमा कमरे थे |जो प्रायः बंद रहते थे |कभी कोई अस्थायी किरायेदार आ जाता था तो पाँच-दस दिन रह जाता था |हमने उन कमरों में ठहरे फतेहपुर की तरफ के दो बिसायतियों को कई बार देखा है |उन दिनों ओढ़नियों पर असली चाँदी का गोटा लगाया जाता था | वे घूम-घूम कर पुराना गोटा खरीदते थे |फिर उसे गलाकर चाँदी बनाकर बेच देते थे |दिन भर घूमकर आते, चटपटा तीखा खाना बनाते थे |दारू पीकर, खाना खाकर, फिर बीड़ी पीते हुए फुर्सत से बतियाते थे |
एक कहता- मैंने तुझे जो बीस रुपए दिए थे वे लौटा दे |दूसरा कहता- मैंने भी तो तुझे एक बार चालीस रुपए दिए थे | तू बीस काटकर, बीस लौटा दे |पहला कहता- बात बात के ढंग से होनी चाहिए |पहले मैंने तुझे बीस दिए थे तो तू पहले मेरे बीस लौटा फिर मैं तेरे चालीस लौटा दूँगा |
सो यह किस्सा उन बिसायतियों वाला है |दोनों को एक ही धंधा करना है, बतियाना है और मनोरंजन करना है |कोई भी वसूली के लिए कोर्ट में नहीं जाएगा |भगवती चरण वर्मा के 'दो बाँके' कहानी के दादाओं की नूराकुश्ती देखो और लोकतंत्र का रोना रोओ |
तोताराम बोला- फिर भी हिसाब तो हिसाब ही होता है |क्यों जनता में बिना बात का कन्फ्यूजन पैदा करते हैं |और नहीं तो एक मोटा-मोटी आइडिया ही दे दें |
हमने कहा- तुझे बताया ना, ये सब संत हैं |शैलेन्द्र का 'तीसरी कसम' का गाना सुना कि नहीं-
बही लिख-लिख कर क्या होगा
यहीं सब कुछ लुटाना है |
सब कुछ यहीं लुटाएँ या नहीं लेकिन बही कोई नहीं लिखता |
बोला- मास्टर, वैसे मैंने तुझे मोदी जी को डिस्टर्ब न करने की शपथ तो दिला दी लेकिन मैं सोचता हूँ कि अपना तो तीन तिमाही का ही हिसाब है |सातवाँ पे कमीशन पहली जनवरी २०१७ से देने वाले थे | फिर अगस्त २०१७ की पे के साथ देने की बात थी लेकिन रेगुलर कर्मचारियों को देकर चुप हो गए और पेंशनरों को टरका दिया |जितना जल्दी दे दें, ठीक है अन्यथा फिर अमित शाह और राहुल गाँधी वाले हिसाब की तरह मामला लटक जाएगा |
हमने कहा- अमित शाह राहुल से उनके जन्म से पहले का हिसाब माँग रहे हैं, राहुल अमित शाह से तीन साल का हिसाब माँग रहे हैं | मामला निबट नहीं रहा है | सो हमारा हिसाब तो २०१७ में जीते-जी कर दें तो ठीक है |अन्यथा जो जीते जी नहीं सुन रहे हैं वे मरने के बाद क्या निहाल करेंगे |मरने के बाद तो मामले को रुळाना और भी आसान हो जाएगा |
मनमोहन जी लाख गुना अच्छे थे जिन्होंने बूढों के साथ ऐसा कमीनापन कभी नहीं किया |हमेशा समय से डी.ए., पे कमीशन और एरियर दे दिए | और ये डाकघर वाली 'मासिक आय योजना' को जीवन बीमा में लाकर 'वय वंदन' के नाम से लोगों को उल्लू बना रहे हैं |
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
No comments:
Post a Comment