Jan 19, 2011

चीयर लीडर्स का औचित्य

तोताराम को आने में शायद आज ठण्ड के कारण विलंब हो रहा है । पत्नी मकर संक्रांति के तिल के लड्डुओं पर उसका इंतज़ार कर रही है । हमने उद्घाटन करने की सोची तो कहने लगी- पहले ब्राह्मण को तो खिला दें, फिर खाना । आते ही उसने तोताराम के सामने लड्डू रखे तो हमारी तरफ देख कर बोला- भाभी, कहीं ये लड्डू २-जी स्पेक्ट्रम, कामन वेल्थ गेम्स, आदर्श सोसाइटी या इंडियन प्रीमियर लीग के घोटाले के पैसों के तो नहीं है ? ऐसा दाना सत्ताधारियों को तो पच सकता है मगर तोताराम को नहीं ।

हमने कहा- तोताराम, घोटाले के पैसों से दोनों हाथों से लड्डू खाने का सौभाग्य महान जन-सेवकों के अलावा और किसे मिल सकता है ? हमने तो सेवा कहाँ जीवन भर नौकरी की है । दसों नाखूनों की कमाई है । खा ले, कुछ नहीं होगा । तोताराम ने लड्डू खाना शुरु किया । हमने पूछा- तोताराम, आई.पी.एल. के कमिश्नर चिरायु अमीन और बी.सी.सी.आई. के अध्यक्ष शशांक अत्रे से कल पत्रकारों ने पूछा कि चीयर लीडर्स से क्रिकेट को क्या फायदा हो रहा है तो बेचारे कोई ज़वाब नहीं दे सके । बगलें झाँकने लगे । इस बारे में तेरा क्या ख्याल है ?

तोताराम ने एक छोटा लड्डू पूरा का पूरा मुँह में ठूँसते हुए कहा- तू नहीं समझेगा । इसे बिजनेस की भाषा में वेल्यू एडीशन कहते हैं । एक चीज के साथ और कई चीजें भिड़ा देना । अब बता, मोबाइल फोन बातें करने के लिए होता है फिर उसमें गाने सुनने का क्या मतलब है ? अरे, लोग फोन नहीं करेंगे तो गाने ही सुनेंगे । ज़रूरी बातें तो किसी के पास हैं नहीं फिर भी फोन तो बिकेगा । बातें करने के लिए नहीं तो गाने सुनने के लिए ही सही । टी.वी. या अखबार से पत्रकारों के लिए तो कैमरे वाले फोन का औचित्य समझ में आता है मगर साधारण आदमी के लिए उसका क्या उपयोग है ? फीचर्स बढ़ाते जाएँगे मगर कीमत कम नहीं करेंगे । तू समझता है कि मंदिर में सारे भक्त ही जाते हैं ? नहीं, अस्सी प्रतिशत तो जूते चुराने, जेब काटने और लड़कियाँ छेड़ने जाते हैं । क्रिकेट देखने जाने वाले क्रिकेट कम समझते हैं । उनके लिए तो यह आउटिंग का एक बहाना है । भीड़ और आइसक्रीम और पोपकोर्न मजा लेना होता है । और फिर पैसे हैं तो उनका करें भी तो क्या ? तेरे जैसे तो फ्री में टिकट मिले तो भी नहीं जाते । बता, कामन वेल्थ गेम्स में टिकट नहीं बिकीं तो ग़रीबों के लिए फ्री कर दिया था फिर भी तू क्यों नहीं गया ?


यह खेल तेरे जैसों के लिए नहीं है । यह तो धनवानों का खेल है । अब इतना अधिक क्रिकेट होने लगा कि लोगों की रुचि कम होने लगी तो कुछ तो करना ही था ना, खेल की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए । अब जब वहाँ सुन्दरियाँ नाचेंगी, उछलेंगी तो वे भी देखने चले जाएँगे जिन्हें क्रिकेट और गिल्ली डंडे में फर्क नहीं मालूम । सौंदर्य की भाषा और खेल सब जानते हैं । कोई हारे या जीते, लड़कियों को देखकर पैसे वसूल हो जाते हैं । और यही धंधे की ईमानदारी है कि ग्राहक यह न कहे कि पैसे बेकार गए । पैसे वसूल हो जाने चाहिएँ, चाहे खेल से हों या दर्शन से हों । और फिर मैच के बाद में भी एक और कार्यक्रम होता है रात को । उसकी एक टिकट अस्सी-नब्बे हजार की होती है । जिसमें छुट्टी की दारू मिलती है और सुंदरियों की निकटता भी । देखा नहीं पिछले दिनों, युवराज और श्रीसंत जैसे क्रिकेट खिलाड़ी कैसे लड़कियों पर गिरे पड़ रहे थे । ये ऊँचे धंधों की बातें हैं, तेरे बस की नहीं हैं । तू तो जा, अंदर से एक लड्डू और ले आ ।

हमने कहा- यह तो त्यौहार की इज्ज़त का ख्याल करके बना लिए वरना महँगाई को देखते हुए इस दिन उपवास किया जाना चाहिए ।

बोला- वैसे यदि एक लड्डू और होता तो बातों का आनंद और बढ़ जाता जैसे कि चीयर लीडर्स से क्रिकेट का । खैर, कोई बात नहीं, तेरी जिज्ञासाओं को तो शांत करना ही है । देख इससे रोजगार सृजन भी होता है जैसे कलकत्ते के सोनागाछी और दिल्ली के स्वामी श्रद्धानंद मार्ग पर तलब के मारों के कारण दारू, फूल, इत्र बेचने वालों और भडुओं को रोजगार मिलता है । सब जगह खेती ही देखेगा तो पड़ ली पार ? ये नए ज़माने के रोज़गार हैं । और फिर चीयर्स लीडर्स तो एक प्रतीक हैं, एक भावना हैं, यह कहीं भी हो सकती है, किसी भी रूप में हो सकती है । बात बिना बात ताली बजाने वाले, अखबारों में बधाई सन्देश छपवाने वाले, जन्म दिन पर बधाई देने वाले, पचास साठ किलो का केक काटने वाले, जुलूस निकालने वाले लोकतंत्र के चीयर लीडर्स ही तो हैं । सोमनाथ दादा ने तो संसद में साफ-साफ इन्हें चीयर लीडर्स कह ही दिया था । अब उनके नाम बताने से ही क्या होगा ? अब संसद न चलने देने वाले और वहाँ हल्ला मचाने वाले, फर्नीचर तोड़ने वाले एक अलग मिजाज़ के चीयर लीडर्स ही तो हैं । यदि ये खूबसूरत हों तो और मज़े की बात है ।



किसी कार्यक्रम में छाँट-छाँट कर सुन्दर लड़कियाँ रखी जाती हैं- द्वीप प्रज्ज्वलन के समय मंत्री जी को मोमबत्ती पकड़ाने के लिए, स्वागत में माला पहनाने के लिए, ओलम्पिक में भी पदक देते समय थाली में पदक लेकर चलने के लिए सुन्दर लड़कियाँ ही तो छाँटी जाती हैं । दुकान के सेल्स काउंटर पर यदि सुन्दर लड़कियाँ बैठी हों तो ग्राहक मोल-भाव नहीं करता और मुस्कराहट और शक्ल पर लुटता रहता है । बड़ा अफसर अपनी प्राइवेट सेक्रेटरी गुण नहीं, सुंदरता के आधार पर चुनता है । कई बार तो विज्ञापन में ही लिखा होता है- वांटेड ए प्राइवेट सेक्रेटरी; यंग, प्रेजेंटेबल एंड ब्यूटीफुल । अब क्या मुझसे ही सब कुछ कहलवाएगा ?

राजनीति में चुनाव के समय अमिताभ बच्चनों, युक्ता मुखियों, हेमा मालिनियों, स्मृति ईरानियों, गोविंदाओं, धर्मेंद्रों, शक्ति कपूरों आदि को लाना चीयर लीडरों का सहारा लेना ही तो है । अमरीका में राष्ट्रपति के चुनावों में ‘सारा पालिन’ को लाना भी ऐसी ही हरकत थी वरना उसने तो दुनिया का नक्शा भी ठीक से नहीं देखा है । आजकल फिल्मों के प्रमोशन के लिए हीरो लोग सिनेमा हालों के सामने खड़े होकर हजामत बना रहे हैं यह भी चीयर लीडरी का एक रूप है । जिनके पास ज्यादा पैसा है वे शादियों में बोलीवुड के बादशाहों को नाचते हैं यह भी चीयर लीडरों का एक उपयोग है । और तो और याद कर, हमारे बचपन में राम लीलाओं में नए गानों पर नाचने वाले लौंडे भी तो उस समय के चीयर लीडर्स ही तो थे । राम के राज्याभिषेक में जितने रुपए नहीं आते थे उससे ज्यादा इन लौंडों के नाच में आ जाते थे । सो सभी को धंधा ज़माने के लिए चीयर लीडर्स चाहिएँ । सभी अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार इनका उपयोग करते हैं ।

और फिर जब बल्लेबाज या बालर चीयर लीडर्स के कारण चूक जाता है तो क्रिकेट सच में ही अनिश्चितताओं का खेल बन जाता है और यही तो इस खेल का रोमांच है । और फिर क्रिकेट तो इस देश का धर्म है और धर्म के मामले में सब जायज़ है जैसे मंदिरों में देवदासियाँ या चर्च में नन्स । इससे रुक्ष भक्ति में थोड़ा लालित्य आ जाता है । अब बता, शादी में घोड़े और बैंड बजे की क्या भूमिका होती है ? इसका विवाह के सफल होने या न होने से कोई संबंध है ? मेहनत करने वाले मेहनत करते हैं फिर भी संतान होने पर हिजड़े आते ही हैं । स्कूल कालेजों में मिस फ्रेशर या मिस फर्स्ट ईयर का चुनाव होता है । क्या इसका शिक्षा से कोई संबंध है ? चीयर लीडर्स का होना भी ऐसी ही एक सांस्कृतिक गतिविधि है । इससे अधिक इसके औचित्य के बारे में तुझे और क्या प्रमाण चाहिए ?

हमने कहा- तोताराम, तेरी बात कुछ हद तक मान लेते हैं । दाल में नमक तो चलता है । कहा भी गया है कि बिना नामक के कैसा भोजन मगर केवल नमक तो नहीं खाया जा सकता ना ? बिना पौष्टिक भोजन के केवल नामक खाकर तो वही हालत हो जाएगी कि ....भूके नूं गश आ गया' ।

१४-१-२०११

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