Jan 24, 2011

'भारत-खोज' का निष्कर्ष

(सन्दर्भ- विकीलीक्स द्वारा दिसंबर २०१० के मध्य में उद्घाटित, राहुल गाँधी द्वारा अमरीकी राजदूत टिमथी को ९-१०-२००९ को लिखे विचार कि 'हिंदू आतंकवाद लश्कर-ए-तैयबा से भी बड़ा खतरा है' । )


प्रिय राहुल बाबा,
पहले हम आपको कभी अपने स्तर पर, और कभी मित्रों के आग्रह पर, शादी के बारे में जानने के लिए पत्र लिखा करते थे । मगर जब से आप 'भारत की खोज' के लिए निकले तब से हमने आपको पत्र लिखना बंद सा कर दिया था क्योंकि भारत की खोज ऐसा अनंत काम है जो कभी खत्म होने वाला नहीं है । उन दिनों तो आपको दाढ़ी बनाने का समय भी नहीं मिलता था । इतिहास में बहुत से लोग हुए जिन्होंने भारत को खोजने में सारी ज़िंदगी लगा दी । कुछ दिनों तो लगा कि अमुक ने भारत खोज लिया है मगर बाद में लोगों ने अपनी-अपनी शोध से यह सिद्ध कर दिया कि जिसे खोजा गया है, वह असली भारत नहीं है । । भारत तो यह है जो हमने खोजा है । कुछ दिनों बाद कोई और महापुरुष अपनी खोज से उसे गलत सिद्ध कर देता है । इस प्रकार भारत की खोज निरंतर चलती रहती है ।

कोलंबस भारत खोजने चला और पहुँच गया वर्तमान अमरीका के पूर्व में हैती द्वीपों में और उसी को भारत मान लिया गया । वह अपने साथ वहाँ के ताँबई रँग के कुछ लोगों को भी ले गया जिन्हें उसने रेड-इंडियन नाम दिया । कुछ लोगों ने विश्वास भी कर लिया मगर कुछ लोगों ने शंका भी की कि सिकंदर का मुकाबला करने वाले, उस समय भी बढ़िया इस्पात बनाने वाले, चीनी बनाने वाले, अष्टाध्यायी लिखने वाले पाणिनी के देश के निवासी ऐसे अधनंगे जंगली जैसे तो नहीं हो सकते । और इसकी पुष्टि तब हुई जब वास्को-डि-गामा वास्तव में भारत से लौट कर गया ।

आज भी इस भारत के बारे में कई विशेषण मिलते हैं- गाँधी का भारत, नेहरू का भारत, इंदिरा का भारत, शास्त्री जी का भारत आदि-आदि । उससे पहले के भी भारत हुए हैं- राम का भारत, कृष्ण का भारत, बुद्ध का भारत, चाणक्य का भारत आदि । जब हम कुछ खोजने जाते हैं तो यह तय है कि हमारे दिमाग में उस वस्तु का कोई स्वरूप होता है । उसी के आधार पर हम उसे ढूँढते हैं । यदि पहले से कोई पृष्ठभूमि नहीं हो तो आदमी खोजने जाए संतरा और उठा लाए गड़तुम्बा ( राजस्थान के रेतीले इलाकों में पाया जानेवाला एक कड़ुआ औषधीय फल ) । इसी तरह यह भी सच है कि इस बड़े काम में कोई दुराग्रह और लालच भी नहीं होना चाहिए । नहीं तो आदमी गुलाबजामुन के भरोसे मींगणे (ऊँट की विष्ठा, जो गुलाबजामुन की शक्ल की होती है ) खा जाता है । तो आपके दिमाग में भी भारत की खोज करते समय कुछ कल्पना तो रही ही होगी ही । अब वह कल्पना क्या थी, किसी को पता नहीं ।

भारत खोजने की योजना में आप सबसे पहले दलितों के घर जाकर खाना खाया करते थे । वैसे तो आप अपने कार्यक्रम को गुप्त ही रखते थे मगर फोटोग्राफरों को पता नहीं कैसे खबर लग जाती थी कि दूसरे दिन ही अखबारों में फोटो और समाचार आ जाते थे । और मजे की बात यह भी कि उस दलित के घर में आपको खिलाने के लिए सब्जी, परोसने के लिए थाली, और बैठने के लिए चारपाई और उस पर बिछाने के लिए चद्दर भी मिल जाती थी । हमारे यहाँ तो यदि कोई बिना बताए आ जाता है तो चाय पिलाने के लिए पत्ती मिल जाती है तो दूध नहीं मिलता और यदि ये दोनों मिल जाएँ तो चीनी नहीं । और यदि ये तीनों मिल जाएँ तो डालने के लिए ढंग का कोई कप नहीं मिलता । इसलिए हमने तो सब से कह रखा है कि यदि ढंग से चाय पीनी हो तो दो दिन का नोटिस देकर आया करो ।

इसके बाद आपने ब्रिटेन के विदेश मंत्री के साथ मिलकर भारत की खोज शुरु की । ठीक भी है, इस देश में बाहर से बहुत से लोग आए- शक, हूण, मुग़ल, तुर्क आदि मगर वे सब इस देश के हवा-पानी में घुल-मिल गए । लेकिन अंग्रेज आए, तीन सौ बरस इस देश में राज किया मगर उन्होंने कभी अपने को इस देश के हवा-पानी में अपने को घुलने-मिलने नहीं दिया । यहाँ का धन-संपत्ति, संसाधन सूँत कर अपने देश ले गए मगर वे कभी भी अपने को यहाँ का नहीं समझ पाए और स्वतंत्रता के बाद अपने देश चले गए । यूँ तो और भी राजाओं के राज्य बड़े थे मगर इस देश का सबसे बड़ा भूभाग जिस एक शासन के नीचे रहा वह अंग्रेजों का था । उन्होंने यहाँ अपनी शिक्षा पद्धति शुरु की । और इसी मायने में वे दूसरे शासकों से अलग थे । अपनी शिक्षा पद्धति और पाठ्यसामग्री में उन्होंने हमें जो पढ़ाया, वह किसी भी प्रकार से इस देश की आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं था । इनसे पहले राजा कोई भी रहा मगर उसके राज्य की सारी प्रजा एक ही थी- धर्म, जाति के भेदों के बावज़ूद । इन अंग्रेजों ने अपना शासन सुदृढ़ करने के लिए प्रजा को धर्मों और जातियों में बाँटा, योजनाबद्ध तरीके से यहाँ के उद्योग-धंधों को नष्ट किया और एक धनवान देश को दरिद्र बना दिया । यहाँ की ग्रामस्वराज की आत्मनिर्भर व्यवस्था को नष्ट किया । और ‘फूट डालो, राज करो’ का खतरनाक सिद्धांत दिया ।

दुनिया में जहाँ-जहाँ भी गोरे लोगों के उपनिवेश रहे हैं वहाँ उन्होंने एक जैसी ही नीति अपनाई । जब भी उन्हें मज़बूरी में किसी देश को छोड़ना पड़ा तो उन्होंने उसके टुकड़े कर दिए । ऐसा भारत ही नहीं एशिया, अफ्रीका के सभी देशों में भी किया । मगर जर्मनी के दो टुकड़े वे अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं कर सके । आज भी यदि ध्यान से देखा जाए तो पता चलेगा कि दुनिया के सारे गोरे एक हैं । वे अब आपस में नहीं लड़ते बल्कि अन्य देशों को लड़ाकर अपने आर्थिक और सामरिक हित साधते हैं । पता नहीं, आपने भारत और अंग्रेजों के इस इतिहास के बारे में कुछ अध्ययन किया या नहीं । हमें लगता है, शायद नहीं, अन्यथा आप भारत की खोज में मिलिबैंड को नहीं हमारे जैसे किसी मास्टर को मार्गदर्शक बनाते । अब ऐसे मार्गदर्शन में आपने कौन सा भारत खोज निकाला पता नहीं, पर आजकल आप दीन-दुखियों के घरों में नहीं जा रहे हैं । हो सकता है कि भारत मिल गया । मगर इसके बाद आपने इन दिनों में जो बयान दिए हैं उनके आधार पर हमें लगता है कि आपने कोई और ही भारत खोज लिया है । यह वह भारत तो नहीं है जिसे हम जानते हैं और इतिहास मानता है ।

आपकी भारत की खोज का निष्कर्ष है कि 'हिंदू आतंकवाद लश्कर-ए-तैयबा से भी बड़ा खतरा है' । लगता है कि या तो हमें भारत का गलत इतिहास पढ़ाया गया है या फिर आपको । हमने जो इतिहास पढ़ा उसमें यह कहीं नहीं पढ़ा कि इस देश के राजा इस देश से बाहर गए हों और वहाँ जाकर कत्ले-आम मचाया हो और उस देश के लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन करवा दिया हो और उस देश की संपत्ति लूटकर यहाँ ले आए हों । जब कि आज के योरप की सारी समृद्धि का मूल आधार एशिया और अफ्रीका के देशों के धन और संसाधनों की सैंकडों वर्षों की निरंतर और निर्दय लूट है । यहाँ का तख्ते ताउस और कोहीनूर हीरा पता है आजकल कहाँ है ? ब्रिटेन के म्यूजियम में रखी प्राचीन मूर्तियाँ और अन्य दुर्लभ कलाकृतियाँ कहाँ की हैं ?

इस देश पर एक हज़ार वर्षों तक विदेशियों का शासन रहा है । क्या कोई देश इस दुनिया में हैं जिस पर इतने लंबे समय तक विदेशी शासन रहा हो और वहाँ के लोगों ने विद्रोह नहीं किया हो ? आज किस देश में बहुसंख्यकों के अलावा कितने राष्ट्रपति, शासक पार्टी के अध्यक्ष और मंत्री अल्पसंख्यक समुदाय के हैं ? किस मुस्लिम देश में हिंदुओं को इतने अधिकार हैं जितने यहाँ मुसलमानों को प्राप्त हैं ? किस देश में अल्पसंख्यकों की ( विशेषकर हिंदुओं की ) संख्या बढ़ी है ? बल्कि समाप्ति के कगार पर है । किस देश में अल्पसंख्यकों को तीर्थ यात्रा करने के लिए सरकारी सहायता और विशेष पैकेज दिया जाता है ? किस देश में बहुसंखय्क अपने ही देश में अल्पसंख्यकों द्वारा भगा दिए गए हों और उस पर न तो सरकार बोली हो और न ही बहुसंख्यकों ने कोई आन्दोलन किया हो ?

आपको एक उदाहारण बताते हैं, आपको शायद महत्त्वपूर्ण कामों में पढ़ने-सुनने का समय न मिला हो । पाकिस्तान का एक यूसुफ नामक व्यक्ति जर्मनी चला गया और वहाँ जाकर ईसाई बन गया । इसके बाद वह पाकिस्तान लौट आया तो उसे फिर से मुसलमान बनने के लिए बाध्य किया गया और न बनने की स्थिति में जान से मारने की धमकी दी गई क्योंकि इस्लाम में धर्म परिवर्तन की छूट नहीं है । उसे वापिस सुरक्षित जर्मनी ले जाने के लिए योरप के देशों ने मदद की नहीं तो क्या होता, कल्पना करना कठिन नहीं है ? यहाँ से कब कौन गया किसी दूसरे देश का धर्म परिवर्तन करवाने के लिए ? चीन, जापान, कम्बोडिया, लाओस, लंका, म्यांमार आदि में जो बौद्ध धर्म फैला है वह उन्होंने अपनी मर्जी से स्वीकार किया है । वैसे नहीं जैसे योरप, अफ्रीका, भारत में ईसाइयत और इस्लाम फैले हैं । क्या किसी भारतीय राजा ने 'जजिया' जैसा कर लगाया विधर्मियों पर ? आज भी जजिया कर हटाने वाले अकबर को कट्टर मुसलमान काफ़िर मानते हैं । उनके हिसाब से तो जजिया लगाने वाला, बाप को कैद करके और भाइयों को मारकर गद्दी पर बैठने वाला कट्टर औरंगजेब ही सच्चा मुसलमान है । राम ने तो जीतने के बाद किष्किन्धा का राज सुग्रीव को और लंका का राज विभीषण को दे दिया । कृष्ण ने भी कभी कंस, जरासंघ और शिशुपाल के राज पर कुदृष्टि नहीं डाली । पाकिस्तान में आज भी सुन्नी आतंकवादी शियाओं की हत्या कर रहे हैं । भारत के ही एक अभिन्न अंग में देश का झंडा फहराने और सुप्रीम कोर्ट से फाँसी की सज़ा पाए व्यक्ति को फाँसी दिए जाने पर जम्मू कश्मीर के नेता आग लग जाने की धमकी दे रहे हैं । क्या यही है इस देश के धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की उपलब्धि ? और क्यों ? क्या कभी अपने विचार किया ? आप को लोग भारत का भावी प्रधान मंत्री मानते हैं । क्या इसी भाव से आप इस देश का शासन चलाएँगे कि हिंदू आतंकवाद लश्कर-ए-तैयबा से बड़ा खतरा है । अब तक कितने हिंदू आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए हैं ? जब कि मुसलमान आतंकवादी यहाँ से लेकर ग्वांटेनामो तक की जेलों में बंद हैं ।

आज भी अधिकतर हिंदू शांत और ‘सर्व धर्म समभाव’ में विश्वास करने वाले हैं । यदि नहीं होते तो इस देश में इतनी शांति नहीं होती और न ही इतने वर्षों तक इस देश में मुस्लिमों और अंग्रेजों का शासन रह पाता । यदि कुछ हिंदुओं ने सरकार की छद्म धर्मनिरपेक्षता की नीति से कुढ़ कर कोई तथाकथित अतिवादी कदम उठाया है तो अभी तो उन्हें कोर्ट से सजा भी नहीं हुई है और फिर क्या इतने से हिंदू लश्कर-ए-तैयबा के तुल्य हो गए ? आप जैसे भावी प्रधानमंत्री और इतने उच्च राजनीतिक परिवार के सदस्य को तात्कालिक लाभ के लिए इतना अपरिपक्व बयान नहीं देना चाहिए । इतना बड़ा बयान उगलने के बाद निगला भी नहीं जा सकता । आप जिस भारतीय जनता पार्टी को काटने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं उस भारतीय जनता पार्टी को इस देश के बहुसंख्यक समाज ने विवादित ढाँचे को गिराने के कारण ही नकारा है । इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है हिंदुओं के सहनशील, धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील होने का ? विवादित ढांचे को ढहाने की जितनी निंदा यहाँ के हिंदुओं ने की है उसकी हजारवें हिस्से जितनी भी निंदा किसी भी देश के मुसलमान ने बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ने और पाकिस्तान में शियाओं पर हमले और तालिबानों द्वारा स्कूलों पर बम डालने और बुरका न पहनने पर किसी महिला नाक-काटने पर की है ?

इस देश की आत्मा को समझिए । दुनिया में यही एक संस्कृति है जो दिल से शांति में विश्वास करती है और कट्टर नहीं है । यदि यह समाप्त हो गई तो यह दुनिया और अधिक बर्बर और खतरनाक हो जाएगी, अनुकरण करने के लिए कोई आदर्श ही नहीं बचेगा । मिली बैंड के मार्गदर्शन में भारत को जानने की बजाय खुले दिमाग से इस देश के प्राचीन साहित्य, दर्शन और अध्यात्म का अध्ययन कीजिए तो आपको एक सम्यक दृष्टि मिलेगी । और यदि आपको किसी अर्जुन सिंह की दृष्टि से या पाकिस्तान की किसी टेक्स्ट बुक से भारत को जानना है तो बात और है । हम अब सत्तर के पेटे में चल रहे हैं, इसलिए कुछ नहीं कहा जा सकता है । कुछ समय निकाल कर हमारे साथ बिताइए । हम विश्वास दिलाते है कि आपको नुकसान नहीं होगा ।

और विकिलीक्स द्वारा उद्घाटित उक्त विचार आपने ९ अक्टूबर २००९ अमरीकी राजदूत टिमथी को ही क्यों लिखे ? उनसे बड़ा ज्ञानी और भारत का हितचिन्तक आपको और नहीं मिला ? क्या अमरीका के विश्व शांति, इस्लामी आतंकवाद और कश्मीर में उसकी भूमिका के बारे में आपको किसी भले आदमी ने कुछ नहीं बताया ?

१८-१२-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत और मार्मिक लेख है.. .ईमानदार और सच्चा///

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  2. ये सोचने वाली बात है कि देश पर आजादी से लेकर आज तक लगातार राज करने वाली पार्टी, जिस व्यक्ति को अगले प्रधानमंत्री के रूप में निरुपित कर रही है उसकी सोच पर पत्थर पड़े हुए है.
    बरबाद-ए-गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था
    यहाँ तो हर शाख पर उल्लू बैठा है, फिर अंजाम ऐ गुलिस्ता क्या होगा !!!

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