May 4, 2011

बधाई हो, बुश साहब

( १ मई २०११ को आधी रात के बाद पाकिस्तान में अमरीकी कमांडो द्वारा ओसामा मारा गया )

बुश साहब,
बधाई हो । ओसामा मारा गया । अगर आप वाली स्पीड से काम किया जाता तो हो सकता है कि चालीस-पचास वर्ष और लग जाते । फिर तो किसी को कुछ करना ही नहीं पड़ता । दुष्ट अपने-आप ही अपनी स्वाभाविक मौत ही मर जाता । जैसे कि हम कसाब और अफज़ल गुरु के स्वाभाविक मौत मरने का इंतज़ार कर रहे हैं ।

अब यह समाचार हम आपको अपने ब्लॉग के द्वारा दे रहे हैं । पहले वाली बात तो रही नहीं जब हम आपको ओसामा के बारे में ताज़ा जानकारियाँ तत्काल हॉट लाइन से दिया करते थे । खैर, आपने तो ओसामा वाली नमाज़, रोज़े समेत, ओबामा के गले डाल दी थी । अब वह जाने और उसका काम । समझदार पूर्ववर्तियों का काम तो अपने उत्तराधिकारियों के लिए कुछ न कुछ ऐसी आफ़त छोड़कर जाना होता है कि बच्चू जब तक कुर्सी पर रहे सादर स्मरण करता रहे । एक चोर मरने लगा तो उसने अपने बेटे को बुलाकर कहा- बेटे, मैनें जीवन भर चोरी की है और लोगों की बद्दुआ ही पाई है । तू कोई ऐसा काम करना जिससे लोग श्रद्धा से याद करें । बेटा समझदार था सो उसने अपने पिता के नाम पर कोई अच्छा काम करने की बजाय लोगों के जूते, चप्पल और चड्डी, बनियान चुराने शुरु कर दिए । पहले तो चोरी से बड़े लोग ही दुःखी थे पर अब तो गरीब लोग भी परेशान हो गए और कहने लगे- इस साले से तो इसका बाप ही अच्छा था जो कम से कम हम ग़रीबों को तो परेशान नहीं करता था । सो भला आदमी कोई भी हो- क्या पूर्ववर्ती या उत्तरवर्ती, सब को अपने सत्कार्यों से धन्य करता है । वैसे हम यह व्यंग्य में कह रहे हैं कि आपने ओबामा को उलझा दिया । आप तो उसे एक ऐसा मुद्दा सौंप गए जिससे वह अपना दूसरा टर्म भी जीत जाए । भले ही ओबामा जी आपको ओसामा वाली समस्या छोड़ जाने के लिए धन्यवाद न दें पर हम आपके इस परोपकार को समझते हैं ।

वैसे आप सोच रहे होंगे कि हम आपको बधाई क्यों दे रहे हैं । आपने तो कुछ किया भी नहीं ओसामा को पकड़ने के लिए । यदि २००४ से २००८ के बीच पकड़ भी लेते तो क्या फायदा होने वाला था । दो टर्म से ज्यादा तो आपके यहाँ एक ही आदमी राष्ट्रपति बन नहीं सकता और आप दूसरी टर्म के लिए चुन ही लिए गए थे । क्यों बेकार सिर खपाना । फिर भी ओसामा दूसरी टर्म में चुने जाने के लिए आपके काम तो आया ही । इसी तरह ओसामा दूसरी टर्म के लिए ओबामा जी के भी काम आएगा । सो जितना ओसामा का उदय काम का था उसी तरह से उसका मरण भी काम का है – घटोत्कच की तरह । सो बधाई । जब भी २००० से २०१६ तक का अमरीकी राजनीति का इतिहास लिखा जाएगा तो आपके और ओबामा के साथ ओसामा का भी नाम आएगा ही ।

आपको याद होगा कि जब आप ओसामा को पकड़ने की बात किया करते थे तब हम भी तरह-तरह के सात्त्विक और अहिंसात्मक उपाय बताकर आपको इस मामले में सहयोग दिया करते थे । भले ही अब ओसामा को मारने के लिए घोषित इनाम में से हमें कुछ भी दिलवाने के लिए आप ओबामा जी से हमारी सिफारिश न करें या ओबामा जी भी हमारी सेवाओं को मान्यता न दें पर जैसे हम आपको बधाई दे रहे हैं वैसे ही आप भी हमें ओसामा के मारे जाने पर बधाई तो दे ही सकते हैं यदि आप बधाई न देंगे तो भी हम बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि- परोपकाराय सतां विभूतयः । दुनिया खुशी मना रही है, हमें भी इस पर बधाई देनी पड़ रही है जब कि हमारे अपने दो-दो ‘ओसामा’ तो हमारे घर में ही बैठे हैं और दो-चार पाकिस्तान में बैठे हैं । जब आप उन्हें पकड़ने में या मारने में हमारी मदद करेंगे तब हम मानेंगे कि आप और आपका देश वास्तव में आतंकवाद को बुरा समझता है । अपनी भूख, प्यास मिटाना और अपनी खुजली खुजाना तो पशु भी जानता है । भले ही चिदबरम जी या मनमोहन जी आपसे हमारे आतंकवाद को मिटाने में मदद की उम्मीद कर रहे हों पर हमें तो नहीं है । हम तो मानते हैं कि 'खुद मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता' ।

आपके पास अब तो समय ही समय है । इसलिए थोड़ा चिंतन कीजिए और सोचिए कि आतंकवाद पैदा ही क्यों होता है ? एक ओसामा को मारने में एक महाशक्ति को दस वर्ष लग गए तो अभी भी जाने कितनी ओसामा इस दुनिया में पड़े हैं । कब तक इन्हें इस तरह से शारीरिक रूप से मारने के लिए समय और पैसा बर्बाद करते रहेंगे ? कोई ऐसा उपाय नहीं है क्या कि ऐसे आतंकवादियों और कट्टरपंथियों को पैदा होने लायक हवा-पानी और खाद न मिले । सोचिए, फुर्सत से सोचिए, सोचने से ही मार्ग निकलेगा । और फिर आपके पीछे कौनसा अन्ना हजारे, रामदेव या २-जी स्पेक्ट्रम पड़ा है जो टेंशन के मारे सोच ही न पाएँ ।

२-५-२०११
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