ओबामा जी,
नमस्ते । पत्र का शीर्षक देखकर अन्यथा नहीं लीजिएगा । हमने आपसे पहले बुश साहब को बधाई दी है इसलिए यह शीर्षक दे दिया है । बुश साहब को पहले इसलिए कि इस शुभ अवसर के मूल प्रणेता वे ही हैं । यदि उनके काल में ९/११ नहीं हुआ होता तो यह शुभ अवसर आता ही नहीं । कुछ भी हो, मुद्दा खूब चला । इसी के सहारे बुश साहब दो टर्म खींच गए और हमारा विश्वास है कि अब आप भी दो टर्म बने रहेंगे ।
इसके लिए आपको कोई दोष नहीं देगा । आपके गले में तो ये रोज़े बुश साहब डाल गए । आपने चुनाव-प्रचार के समय जो नारा दिया था- 'वी कैन', वह नारा चला और आप जीत गए । बाद में बहुत से विज्ञापनों में भी हमने इस नारे का उपयोग करते लोगों को देखा । बुश साहब के काल में शुरु हुए बैंकों के फेल होने के सिलसिले ने आपको बहुत चक्कर में डाला और आपकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे जाने लगा । मगर आपने बुश साहब द्वारा गले में डाले गए इन रोज़ों को बड़ी चतुरता से निबटाया और उसे एक लाभ का सौदा बना लिया ।
यह ज़रूरी भी था । उस दुष्ट ने तो अमरीका की नाक ही काट ली थी । बात यह है कि बड़े आदमियों की नाक भी बड़ी होती है । वह सारी दुनिया में फैली होती है, इसलिए उसका कहीं भी कटना संभव है । और फिर नाक का कटना मानने पर भी निर्भर करता है । अब हमें देखिए, हमले हमारे यहाँ भी होते हैं मगर हमारी नाक कभी नहीं कटती । विपक्षी कभी कसाब तो कभी कंधार तो कभी अफज़ल के नाम से उसे काटने की कोशिश करते हैं । मगर हम उसे बचा ही लेते हैं और नहीं बचा पाते तो भी हम कभी मानते ही नहीं कि नाक कटी है । आपने किसी दूसरे के कार्यकाल में कटी देश की नाक को अपनी मान कर उसे फिर से लाकर सर्जरी करवाकर जुड़वा लिया । चलो इज्ज़त बची और लाखों पाए । अब इस विजय का बहाना बनाकर अफगानिस्तान से निकलना आसान हो जाएगा । वियतनाम में तो बड़ी भद्द हुई थी ।
हम तो यही सोच कर हैरान हैं कि इस ग्लोबल-गाँव हो चुकी छोटी सी दुनिया में छः फुट लंबे दुबले-पतले से आदमी को नहीं ढूँढ़ पाए । हमारी पुलिस को ठेका दे दिया हो तो अब तक दस-पन्द्रह ओसामाओं को पकड़ कर आपके सामने हाज़िर कर देती । आप कह सकते हैं कि वे असली थोड़े ही होते ? ठीक है, ओसामा तो एक है, दस-पन्द्रह कैसे हो सकते हैं ? मगर हमारे यहाँ एक रक्त-बीज नाम के राक्षस का किस्सा आता है जिसके रक्त की जितनी बूँदें गिरती थीं उतने ही रक्त-बीज और पैदा हो जाते थे । यह सब प्रतीकात्मक है पर है विचारणीय क्योंकि ओसामा एक विचारधारा की उपज है । भले ही वह विचारधारा कैसी भी हो । वरना केवल पैसे के लिए कोई मानव-बम नहीं बनता । इसलिए यदि ओसमाओं के 'रक्त-बीज' को खत्म करना है तो घृणा की विचारधारा को सभी स्तरों पर समाप्त किया जाना चाहिए, फिर चाहे वह धर्म की हो या रंग की हो या देश की हो । मानव को मानव समझे बिना यह दुनिया शांत और सुरक्षित नहीं हो सकती ।
बुश साहब वैसे बहुत बहादुर हैं । हमला होते ही बदला लेने निकल पड़े और पूरे आठ साल तक गरजते रहे । पर हमें शुरु से ही लगता था कि यह इनके बस का काम नहीं है । क्योंकि जब आदमी बूढ़ा हो जाता है तो उसे कोई भी पुरानी प्रेमिका आसानी से धोखा दे सकती है । उम्र बढ़ने पर प्रेमी, यदि बर्लुस्कोनी की तरह घुटा हुआ नहीं हुआ तो, सोचता है कि अब पता नहीं दूसरी मिलेगी कि नहीं सो पुरानी वाली से ही निभाना चाहता है । और इस निभाने के चक्कर में ही प्रेमिका और भी कइयों से टाँका भिड़ा लेती है । पुराना प्रेमी पलंग पर होता है तो नया बेड के नीचे छुपा हुआ अपनी बारी का इंतज़ार करता रहता है । सफल प्रेमिका वही है जो एक साथ कई प्रेमियों को उलझाकर रखे । पाकिस्तान की भूमिका पर यह रूपक फिट बैठता है । वह बुश और ओसामा दोनों को निभाता रहा और अब भी उसने अपने को ओसामा वाले कांड से बिलकुल अलग करके अपने यहाँ के आतंकवादियों को भी छिटकाया नहीं है ।
आप जवान हैं इसलिए आजकल की प्रेमिकाओं को अच्छी तरह से समझते हैं । इसलिए आपने उसके प्रेमी को उसके बिस्तर के नीचे से ही बरामद कर लिया । हम तो पहले से ही जानते थे कि यह संत वहीं होगा पर पता नहीं क्यों हमारी बात को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया । हो सकता है कि गंभीरता से लिया भी हो तो माना नहीं क्योंकि सोचा हो कि ब्राह्मण कहीं इनाम न माँगने लग जाए पर अब हमारा अनुमान सच सिद्ध हो गया है ।
आप को अभी बहुत समय अमरीका की राजनीति में रहना है और बहुत से ओसामाओं को पकड़ना है । इसलिए बताते हैं कि कभी ऐसी प्रेमिकाओं के चक्कर में न पड़ें और यदि किसी से नैना लड़ भी जाएँ तो फटाफट शादी करके पाँच-चार बच्चे पैदा कर देने चाहिएँ कि वह किसी और को पटाने लायक ही नहीं रहे जैसे कि सोवियत रूस के विघटन के बाद नए समीकरणों के अनुसार अमरीका ने भारत के साथ किया ।
आपने ओसामा के शव को जल-समधि भी फटाफट दिलवा दी । ठीक भी है, ऐसे काम को फटाफट ही निबटा देना चाहिए । पता नहीं कब कोई मानवाधिकार का मुद्दा उठ खड़ा हो । सद्दाम को तो जब फाँसी दी गई तो लोग उसका मजाक उड़ा रहे थे , गाली निकाल रहे थे और फोटो खींच रहे थे । मगर आपने बहुत शालीनता बरती । जल-समाधि देने से पहले मन्त्र पढ़े गए, उनका अरबी में अनुवाद भी किया गया और ओसामा को नहलाया भी गया यदि नहीं भी नहलाते तो समुद्र में कौन सी पानी की कमी थी । लोग सोचते हैं अब उसका कोई मज़ार या समाधि बनाना संभव नहीं है । मगर किसी का असली मज़ार तो दिलों में होता है । मन से ऐसे दुर्विचार निकलें तो बात बने ।
२-५-२०११
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दुखविजय जी बनवा सकते हैं..
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