May 8, 2011

आत्मा की शांति


( ‘टीपू सुल्तान मस्जिद’ कोलकाता के शाही इमाम ने ओसामा की नमाज़े-ज़नाज़ा अदा करवाई और कश्मीर में भी अलगाववादी नेता सय्यद अली शाह गिलानी के आह्वान पर कई जगह ओसामा की नमाज़े-ज़नाज़ा अदा की गई- ६-५-२०११ )

शाही इमाम मौलाना बरकती,
टीपू मस्जिद, कोलकाता

इमाम साहब,
आदाब । आपने ओसामा की नमाज़े-ज़नाज़ा अदा करवाई । धार्मिक काम था सो किसी धार्मिक आदमी को ही करवाना था । आप नहीं करवाते तो कोई और करवाता । कश्मीर में भी अलगाववादी नेता गिलानी के आह्वान पर भी कई जगह ऐसा ही हुआ । इसलिए पहले हमने सोचा कि इसके लिए उन्हें भी एक धन्यवाद पत्र लिख दें फिर विचार बदल दिया क्योंकि उनके इस काम में राजनीति हो सकती है और हो सकता है कि लोगों ने डर कर नमाज़े-ज़नाज़ा अदा की हो कि उनका हुक्म न मानने पर वे कोई बन्दूकी एक्शन ले लें । पर आपका काम तो शुद्ध धार्मिक था । वैसे हमने कई फिल्मों में देखा है कि हीरो हीरोइन को उठवा कर मँगवा लेता है और फिर पंडित या मौलाना को भी इसी तरह मँगवा लेता है और फटाफट शादी करवाने को कहता है । ज़रा भी ना-नुकर करने या कोई धार्मिक अड़चन निकालने पर डाकू का कोई साथी बंदूक दिखाता है तो वह डरकर शादी करवा देता है । मगर हमें विश्वास है कि आपको किसी ने बंदूक दिखाकर यह नमाज़े-ज़नाज़ा अदा नहीं करवाई होगी । आपने तो शुद्ध मानवीय संवेदना के तहत यह काम किया होगा ।

करना भी चाहिए । कोर्ट भी किसी के मरने के बाद केस बंद देता है । उसके अनुयायी भी उसके नाम से पहले स्वर्गीय जोड़ने लग जाते हैं । मगर उस आदमी ने जिन लोगों के साथ अच्छा-बुरा बर्ताव किया हुआ होता है वे उसे उसी तरह से याद करते हैं । आज भी रावण का पुतला जलाया जाता है और दूर-दूर से लोग गाँधीजी की समाधि पर फूल चढ़ाते हैं । महमूद गज़नी या चंगेज खान की कब्र को न तो कोई ढूँढता है और न ही उस पर सज़दा करता है । फकीरों की मज़ार पर लोग मन्नत मानने आते हैं । ख्वाज़ा अजमेर वाले को चादर चढ़ाने जाने कहाँ-कहाँ से लोग आते हैं । हमारे यहाँ तो तुलसीदास जी ने लिखा है -
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।
जो जस करहि सो तस फल चाखा ।

किसी के अंत से ही हिसाब लगाया जाना चाहिए । बीच-बीच में तो मामला ऊपर-नीचे होता रहता है । जैसे दुर्योधन, कंस, रावण आदि ने शुरु में तो बहुत मज़े किए और पांडवों, राम, कृष्ण ने बहुत कष्ट उठाए और ईसा को तो फाँसी तक पर चढ़ा दिया मगर हम किसको आदरणीय मानते है इसीसे उसका मूल्यांकन होता है । रावण जैसा अंत कोई नहीं चाहता मगर खुराफात करते समय आदमी भूल जाता है इन उदाहरणों को । हमने तो कर्मों की बात की है और कर्मों का सही-सही सच तो भगवान ही जानता है या जिसका व्यक्तिगत सबका पड़ा हो उसे पता होता है । जहाँ तक आदमी की बात है तो साला, सच बोलता कहाँ है ? यमदूतों से भी कहता है कि मुझे राजनीति के चक्कर में फँसाया गया है, वैसे मैं निर्दोष हूँ ।

अब किसे पता कि ओसामा कैसा था ? यह तो या तो भगवान जनता है या फिर कोई सच्चा धार्मिक । हम तो सांसारिक प्राणी हैं, जैसा अखबार में पढ़ते हैं वैसा ही विचार बना लेते हैं । हाँ, इतना ज़रूर जानते और मानते हैं कि किसी को सताना पाप है और किसी का भला करना पुण्य है । फिर तुलसीदास जी की एक चौपाई सुनाते हैं-
पर हित सरिस धरम नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।

अब यह, या तो आप जाने या ओसामा, कि कश्मीर, मुम्बई, अमरीका आदि में निर्दोष लोगों को मारना या मरवाना परहित है पर पीड़ा ? कश्मीर के मूल निवासियों को वहाँ से भगा देना, उनकी हत्याएँ करना, उनकी ज़ायदाद पर कब्ज़ा कर लेना कौन-सा धार्मिक कार्य था यह आप जाने या फिर गिलानी जी से पूछ कर तय करें । हमारे हिसाब से तो जो जहाँ शताब्दियों से रह रहा है उसे शांति से क्यों नहीं रहने दिया जाए । अपने भारत में तो जो यहाँ रह रहा है उसे सब तरह के अधिकार हैं और यह देश उसका भी उतना ही है जितना किसी और का । अब आप या और भी किसी धर्म के लोग यहाँ रह ही रहे हैं और स्वाभाविक रूप से फल-फूल भी रहे हैं । मगर पाकिस्तान और बंगलादेश में हिंदुओं और ईसाईयों की संख्या बढ़ने की बजाय घट रही है ।

हाँ, तो हम नमाज़े-ज़नाज़ा की बात कर रहे थे । मरने के बाद तो सभी की आत्मा की शांति की प्रार्थना करनी चाहिए । अशांत आत्मा जाने किस-किस को परेशान करती है । इसीलिए जो बेटा अपने जीते बाप को भरपेट रोटी नहीं देता वह भी पिता की मृतात्मा की शांति के लिए हरिद्वार जाता है, गया में श्राद्ध करवाता है । मृतात्मा जिंदा आत्मा से ज्यादा खतरनाक होती है । उसमें भगवानी नहीं तो, शैतानी शक्ति तो आ ही जाती है । वैसे नेताओं और आतंकवादियों की आत्मा की शांति करवाना ज्यादा ज़रूरी है । भले आदमी ने जीते जी ही जब किसी को परेशान नहीं किया तो मरने के बाद क्या करेगा । ये तो दुष्टात्माएँ है जो जब जिंदा रहती हैं तब तो परेशान करती ही हैं और मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती । इसलिए इनकी शांति तो बहुत ज़रूरी है । पाकिस्तान वैसे तो ओसामा जी को विशिष्ट मेहमान की तरह रखता था मगर अब अमरीका से डर कर उसकी आत्मा की शांति के लिए कोई अनुष्ठान नहीं करवा रहा है । और यह भी पढ़ने में आया है कि ओसामा के एबटाबाद वाले अन्तिम निवास को भी मटियामेट करवा देगा ।

पर अपना भारत देश वास्तव में बहुत मानवीय और संवेदनशील देश है । दुनिया में कहीं भी ओसामा की आत्मा की शांति की इतनी फ़िक्र नहीं की गई जितनी अपने भारत में । यही तो इस देश की विशेषता है । आपके इस्लाम का हमें ज्यादा पता नहीं मगर हिंदू धर्म में तो श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है और इस दिन अपने ही नहीं बल्कि उन सभी आत्माओं के नाम से भी कुछ अछूता निकाला जाता है जिनका श्राद्ध करने वाला कोई नहीं हो । और यहाँ तक कि सभी जीवात्माओं की भी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है ।

आपने ओसामा की आत्मा की शांति के लिए नमाज़ अदा करवाई तो आपकी संवेदना से प्रेरित होकर हम आपको लिखने बैठ गए । आपके कलकत्ता के पास की बंगलादेश पड़ता है और हमारा ख्याल है कि आपको १९७१ का पकिस्तान द्वारा वहाँ किया गया कत्ले-आम आपको ज़रूर याद होगा । वहाँ यहीं कोई २०-३० लाख लोग क़त्ल किए गए थे । पता नहीं बेचारों का श्राद्ध, नमाज़े-ज़नाज़ा अदा हुई या नहीं । चालीसा करने वाला भी कोई बचा था या नहीं । यदि आपने उनके लिए कुछ नहीं किया हो तो अब कर दीजिए । बड़ा सबब का काम होगा ।

किसी के मरने के बाद, यदि उस व्यक्ति में कुछ अच्छा हो तो उसे याद रखो, नहीं तो उसकी आत्मा जाने और भगवान । आकबत के दिन अल्लाह करेगा उससे हिसाब । ज़िंदगी को चलते रहना है सो बिना अनावश्यक बोझा लादे चलते चलो । मगर कुछ हैं कि किसी के मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते और घावों को भरने ही नहीं देते । हमने सुना है कि काबुल में पृथ्वीराज चौहान की कब्र है जिसको देखने के लिए जाने वालों को उस पर जूते मारने के लिए कहा जाता है । अब देखिए कहाँ तो हम ओसामा की आत्मा की शांति के लिए नमाज़े-ज़नाज़ा अदा करवा रहे हैं और कहाँ काबुल में हजार साल पहले बहादुरी से लड़े एक वीर के साथ ऐसा सलूक किया जा रहा है । जब सिकंदर ने पोरस से पूछा था कि तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव लिए जाए तो उसने कहा- जैसा कि एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है । सिकंदर खुश हुआ और उसका राज्य लौटा दिया । और कहाँ काबुल में पृथ्वीराज के साथ यह व्यवहार ?

आप तो मौलाना हैं इस तरह के सभी कुफ्रों का भी विरोध कीजिए । धर्म केवल कर्मकांड करवाना ही नहीं है बल्कि आदमी को इंसान बनाना, एक दूसरे की इज्ज़त करना, शांति से रहना ज्यादा ज़रूरी और सच्चा धर्म हैं ।

७-५-२०११
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. आपकी पोस्ट बहुत ही पसंद आयी है, उम्मीद है कि आगे भी ऐसे ही बेहतरीन लेख मिलते रहेंगे,

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  2. हम आंखों के अन्धे कहां चेतने वाले..
    नोटों के सौदागर हम ईमान बेचने वाले..

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