Aug 18, 2011

पड़ी कुएँ में भंग, भगत जी


पड़ी कुएँ में भंग, भगत जी ।
ठीक नहीं हैं ढंग, भगत जी ।

रंग-रँगीले राजा-रानी
पर जनता बदरंग, भगत जी ।

क्या कर ले ससुरी कविताई
सभी काफिये तंग, भगत जी ।

मेहनतकश अधभूखे सोते
खाएँ माल मलंग, भगत जी ।

उधर तोप है, इधर निहत्थे
गैर-बराबर जंग, भगत जी ।

हर लम्हा है रात कतल की
कीलों जड़ा पलंग, भगत जी ।

देखें कितने दिन निभता है
दूध-खटाई संग, भगत जी ।

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

4 comments:

  1. बिखर गए सब अंग ,भगत जी,
    चालें सब बेढंग ,भगत जी !

    खूब तमचियायो है ,महाराज !

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  2. देखें कितने दिन निभता है
    दूध-खटाई संग, भगत जी ।

    निभ रहा है और निभता रहेगा....
    दही बिलो - माखन खाया जा रहा है..

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  3. आदरणीय कविराय रमेश जोशी जी
    सादर प्रणाम !

    बहुत पसंद आया आपका यह रंग -
    पड़ी कुएं में भंग, भगत जी ।
    ठीक नहीं हैं ढंग, भगत जी ।


    पीड़ादायी सत्य !
    मेहनतकश अधभूखे सोते
    खाएं माल मलंग, भगत जी


    हां, अब देखना है …
    देखें कितने दिन निभता है
    दूध-खटाई संग, भगत जी


    अच्छा लगा भगत जी :)
    राजस्थानी में मैंने भी बहुत संबोधन ग़ज़लें लिखी हैं


    मेरी ताज़ा पोस्ट पर आपका भी इंतज़ार है ,

    काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
    मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

    वोट से मेरे ही पुश्तें इसकी पलती हैं मगर
    मुझपे ही गुर्राए … हद दर्ज़े का ये गद्दार है

    मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
    घर का जबरन् बन गया मालिक ; ये चौकीदार है

    पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)

    विलंब से ही सही…
    ♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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