पड़ी कुएँ में भंग, भगत जी
पड़ी कुएँ में भंग, भगत जी ।
ठीक नहीं हैं ढंग, भगत जी ।
रंग-रँगीले राजा-रानी
पर जनता बदरंग, भगत जी ।
क्या कर ले ससुरी कविताई
सभी काफिये तंग, भगत जी ।
मेहनतकश अधभूखे सोते
खाएँ माल मलंग, भगत जी ।
उधर तोप है, इधर निहत्थे
गैर-बराबर जंग, भगत जी ।
हर लम्हा है रात कतल की
कीलों जड़ा पलंग, भगत जी ।
देखें कितने दिन निभता है
दूध-खटाई संग, भगत जी ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
baddhiys vyangya hai, jee.
ReplyDeleteबिखर गए सब अंग ,भगत जी,
ReplyDeleteचालें सब बेढंग ,भगत जी !
खूब तमचियायो है ,महाराज !
देखें कितने दिन निभता है
ReplyDeleteदूध-खटाई संग, भगत जी ।
निभ रहा है और निभता रहेगा....
दही बिलो - माखन खाया जा रहा है..
आदरणीय कविराय रमेश जोशी जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम !
बहुत पसंद आया आपका यह रंग -
पड़ी कुएं में भंग, भगत जी ।
ठीक नहीं हैं ढंग, भगत जी ।
पीड़ादायी सत्य !
मेहनतकश अधभूखे सोते
खाएं माल मलंग, भगत जी
हां, अब देखना है …
देखें कितने दिन निभता है
दूध-खटाई संग, भगत जी
अच्छा लगा भगत जी :)
राजस्थानी में मैंने भी बहुत संबोधन ग़ज़लें लिखी हैं
मेरी ताज़ा पोस्ट पर आपका भी इंतज़ार है ,
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
वोट से मेरे ही पुश्तें इसकी पलती हैं मगर
मुझपे ही गुर्राए … हद दर्ज़े का ये गद्दार है
मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
घर का जबरन् बन गया मालिक ; ये चौकीदार है
पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार