( मायावती विशेष प्लेन से मुम्बई से चप्पलें मँगवाती हैं- असांजे के विकिलीक्स ने खुलासा किया- ५ सितम्बर २०११ )
मायावती जी,
२०१२ के चुनाव को ध्यान में रखते हुए आपके विरुद्ध एक बहुत बड़ा षडयंत्र किया जा रहा है । हमें लगता है कि ब्राह्मणवादी, मनुवादी, कांग्रेस, भाजपा, मुलायम, पुरुषवादी सभी आपके पीछे पड़े हुए हैं । एक तो आप महिला, फिर दलित और ऊपर से कुँवारी । न किसी के मन में दया है और न ममता । दुनिया का तो हमें पता नहीं मगर रज़िया सुलतान को उसी के दरबारियों ने केवल इसलिए षडयंत्र का शिकार बनाया कि वह महिला थी ।
जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया के सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री और वह भी एक नहीं कई-कई बार । दुनिया में इतने छोटे-छोटे देश हैं कि बीसियों को मिला दो तो जनसंख्या में अपने उत्तर प्रदेश के बराबर न हों । और यह स्थिति तो उत्तरांचल को निकाल देने के बाद है । ऐसी शक्तिशाली, लोकप्रिय और जनाधार वाली नेत्री पर आरोप कौन लगा रहा है ? दो करोड़ की जनसंख्या वाले एक छोटे से देश आस्ट्रेलिया का, ब्रिटेन में शरण लिया हुआ, कैद में पड़ा, एक अविवाहित व्यक्ति । उसे क्या पता कि सेवा क्या होती है ? और कितना बलिदान देना पड़ता है उसके लिए । अरे, उसी में कोई गुण होते तो क्यों ब्रिटेन की जेल में होता । अपने देश में रहता, कोई ढंग का काम करता ।
अब कोई पूछने वाला हो कि यह भी कोई काम है कि आप ढूँढते फिरो कि किसने, किसको, क्या कहा ? कौन कहाँ गया ? किसने, किस होटल में खाना खाया ? किसने, कितने रुपए के मोज़े पहने ? किस को कब दस्त लगे या किसे, कितने दिनों से कब्ज है । जब सोनिया जी की बीमारी के बारे में किसी को कुछ भी जानने का अधिकार नहीं है तो आपकी निजता का इतना उल्लंघन क्यों ? आप अपनी मर्जी की चप्पलें तक नहीं पहन सकतीं ? लोग तो जाने कहाँ-कहाँ से सामान मँगाते हैं और आपने मुम्बई से एक जोड़ी चप्पलें क्या मँगवा लीं कि आसमान टूट पड़ा ।
देश स्वतंत्र होने के बाद की बात है । राजाओं का राज जा चुका था । पोरबंदर की महारानी वहाँ के महाराजा की अति रसिकता के कारण नाराज़ हो गईं तो उन्होंने पोरबंदर का पानी पीना तक छोड़ दिया । उनका पानी उनके पीहर गोंडल से आता था । जयपुर के महाराजा जब इंग्लैण्ड जाते थे तो अपने साथ चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में भर कर गंगाजल ले जाया करते थे । वहाँ का पानी तक नहीं पीते थे । आपने कभी कोई ऐसा मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं किया ।
हमने तो सुना है कि जब लालू जी रेल मंत्री थे तब उनकी भैंस के लिए रोज पटना से हरा चारा कटकर, बिहार केडर के एक प्रशासनिक अधिकारी की देखरेख में, ए.सी. कोच में लदकर दिल्ली आता था । मुलायम सिंह जी जब रक्षामंत्री थे तो वायु सेना के प्लेन से अपने घर से छाछ मँगवाया करते थे । छाछ तो रोजाना की चीज है मगर चप्पलें तो कोई साल दो साल में एक बार खरीदनी होती हैं । हम दिन में दो बार मंदिर जाते हैं और एक बार सब्जी लेने तो भी हमारी चप्पलें दो-तीन साल चल जाती हैं । आप तो प्लेन से आती जाती हैं तो एक कार्यकाल में एक जोड़ी चप्पलें बहुत । जय ललिता जी के पास तो सुना है कोई सात हजार जोड़ी सेंडिल और चप्पलें हैं मगर उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता । यह ब्राह्मण और दलित के बीच भेदभाव है कि नहीं ?
मान लीजिए यदि आप चप्पल लेने मुम्बई जातीं तो भी तो उतना ही पेट्रोल लगता जितना कि अब लगा होगा । यदि आप ट्रेन से जातीं तो यू.पी. के बीस करोड़ लोगों को आप द्वारा मिलने वाली एक दिन की सेवा का नुकसान उठाना पड़ता मतलब कि बीस करोड़ मानव दिवसों का नुकसान । जीवन को ही चार दिन का माना गया है और इतने दिन तो मुम्बई से चप्पल लाने में ही बीत जाएँगे । फिर जनता की सेवा कब करेंगी । यदि बस से बरेली या कानपुर जाओ तो भी एक डेढ़ दिन लग ही जाता है । और फिर जिसने सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है उसे चप्पल खरीदने जैसे छोटे काम में अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए । गाँधी जी सूत कातने जैसे छोटे-छोटे कामों में ही लगे रहे इसलिए देश के लिए कुछ खास नहीं कर पाए । जीवन भर सूत कात कर भी दो-चार ढंग के सूट नहीं सिलवा सके । ऐसे ही अधनंगे ब्रिटेन गए और वहाँ की जनता के बीच भारत की इज्जत का कचरा करवा आए । आप जैसी रुआब वाली कोई हस्ती जाती और ब्रिटेन के सम्राट को हड़काती तो बच्चू के होश ठिकाने आ जाते और फटाफट आज़ादी दे देता । और ऊपर से माफ़ी माँगता सो अलग । अब बताइए कि आपका चप्पल लेने जाना सस्ता और समझदारी का काम है कि आपका चप्पल मँगवाना ?
अब यह हमारी तरह कोई रिटायर्ड मास्टर का चप्पल खरीदना या उसकी मरम्मत करवाना थोड़े ही है कि कहीं भी पटरी के किनारे उकड़ू बैठ कर हो गया । मान लीजिए कि हमारी नई चप्पल दो दिन काटे भी तो क्या फर्क पड़ता है । मगर प्रधान मंत्री के जूते काटने लगें या किसी मुख्यमंत्री की चप्पलें काटने लगें तो वहाँ की सारी जनता लंगड़ाने लग जाएगी । और फिर आज के ज़माने में आदमी के गुणों को समझने की फुर्सत किसे है ? आजकल तो आदमी जूतों और कपड़ों से ही तो पहचाना जाता है । वैसे जहाँ तक जूतों और चप्पलों का प्रश्न है लोग अपने प्रिय नेता को जब चाहे माला बनाकर पहनाने को तत्पर रहते हैं या फिर पास जाने की सुविधा न मिलने पर दूर से ही प्रक्षेपित कर देते हैं । ऐसे अवसरों पर प्राप्त होने वाले जूते या चप्पल प्रायः एकवचन में ही होते हैं । इनका द्विवचन के बिना उपयोग भी तो नहीं किया जा सकता और फिर इनकी क्वालिटी प्रायः अच्छी नहीं होती ।
अपने देश में तो शाहजहाँ नामका एक बादशाह हुआ है जो आज से तीन सौ बरस पहले बीस करोड़ की कुर्सी पर बैठता था जो आज के हिसाब से एक लाख करोड़ की होगी । आपने एक जोड़ी चप्पल मँगवा लीं तो गुनाह हो गया । और फिर यह भी नहीं कि आपने कोई वैसे ही चप्पलें उठवा ली हों जैसे कि कोई पुलिस वाला सड़क के किनारे किसी ठेले से केले उठा कर खा जाए । बाकायदा पैसे दिए हैं । नेता होने का यह मतलब तो नहीं कि आदमी अपनी पसंद की चप्पलें भी नहीं पहन सके । अब आप देश के सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री क्या ममता या मेधा पाटकर की तरह से हवाई चप्पल फटकारती अच्छी लगेंगी ?
जहाँ तक दुनिया की बात है तो आधे से ज्यादा पागल है । एक असांजे के लिए ही क्या दिमाग खराब करना । कितनों को पागलखाने में डालेंगे ? लोगों का क्या, कुछ काम तो है नहीं, बस निठल्ले बैठे बातें बनाते रहेंगे । और कुछ नहीं तो दिल्ली में बैठकर अनशन करने लग जाएँगे । अरे भाई, यदि खाने को रोटी नहीं है तो बताओ । बी.पी.एल. कार्ड बनवा देंगे । इनकी बातें मानने लगे तो चल लिया देश । सुरक्षित हो लिया लोकतंत्र । इनकी बातें मानने की जरूरत भी नहीं है । त्रेता में राम ने इनकी बातें मानी तो क्या हुआ ? सब जानते हैं । बड़ी मुश्किल से चौदह बरस का बनवास काट कर कहीं सुख के दिन आए थे कि गर्भवती पत्नी को वन में भेजना पड़ा । आप इन असान्जों पर ध्यान न दें । यह तो चाहता ही यह है कि आप इसे आगरे के पागलखाने में डाल दें तो यह ब्रिटेन की जेल से छूटे और फिर यहाँ के डाक्टरों से मिल कर अस्पताल में ही मज़े करे जैसे कि अपने यहाँ तरह-तरह के भैया और पप्पू और साधू जेलों में जन्मदिन मनाते हैं, कैबरे करवाते हैं, मोबाइल से अपना धंधा चलाते हैं । इसने तो अमरीका के बारे में जाने कितने लाख पेज फोटो स्टेट करके भेजे थे ? कुछ हुआ क्या ? लोकतंत्र में ऐसी छोटी-मोटी आतिशबाजियाँ होती ही रहती हैं । होनी भी चाहिएँ । इससे माहौल बना रहता है वरना तो लोगों को पता भी नहीं चलता कि कौन कब मर गया या कौन कब, कहाँ का मुख्यमंत्री बन गया ? जिस अभिनेत्री के बारे में कुछ भी नहीं छपता उसे फ़िल्में मिलनी बंद हो जाती हैं ।
और भी एक बात लाया है यह असांजे । कहता है कि आप खुद खाने से पहले कुछ आदमियों को खाना चखावाती हैं कि कहीं खाने में ज़हर तो नहीं है । दोष देखने वालों को क्या कहा जाए । बड़े आदमी केवल अपने लिए ही नहीं जीते । वे पहले चार आदमियों को खिला कर खाते हैं । ब्राह्मण खाने से पहले दो-चार ग्रास कुछ अछूता निकालते हैं वैसे ही आप खाने से पहले यदि दो आदमियों का पेट भरती हैं तो यह आलोचना की बात हो गई ? आज तक मरा है क्या कोई आपके खाने में से खाना खाने से ? आप उन लोगों में से नहीं हैं जो अपना खाना खाने का खर्च बचाने के लिए किसी गरीब के घर जा धमकें और बेचारे का किसी तरह से जुटाया खाना चट कर आएँ ।
और कहा गया है कि जो कुछ आदमी अपने हाथ से दान कर जाता है वही उसके साथ जाता है । तो आप तो वैसा भी कुछ नहीं कर रही है कि जनता के पैसे से अपने लिए स्वर्ग में कुछ जमा करवा रही हैं । जहाँ तक बैंक बैलेंस की बात है या मकान की बात है या चप्पलों का सवाल है तो ये क्या आप अपने साथ ले जाएँगी ? कितने हैं जो जनता की सेवा के लिए ब्रह्मचर्यव्रत धारण करते हैं ? लोग तो सरकारी खर्चे पर बच्चों का उत्पादन कर रहे हैं । आपके तो कोई बालबच्चे भी नहीं हैं जो आपके पीछे से भोगेंगे यह सब । जो कुछ है वह सब इसी देश में रह जाएगा । इसी जनता के काम आएगा । और वैसे भी मरने के बाद जूते-चप्पल ही क्या, मृतक का सारा सामान ही दान कर दिया जाता है
अब पता नहीं, लोग क्या सोच कर आपकी आलोचना कर रहे हैं । हमारी तो समझ में आता नहीं । आप तो गौतम बुद्ध, साहू जी महाराज, अम्बेडकर जी, कांसीराम जी का नाम लेकर इसी तरह से निःस्वार्थ भाव से, बिना एक भी पल फालतू के कामों में व्यर्थ किए, लगी रहिए सेवाकार्य में । बड़े भाग्य से मिलता है जनसेवा का अवसर । वैसे भी जनता तो पैदा ही सेवा करवाने के लिए होती है । आप नहीं करेंगी तो कोई और यू.पी. की जनता का 'कल्याण' करने के लिए 'मुलायम' होकर 'अमर' हो जाएगा । तो फिर आप ही क्या बुरी हैं ।
६ सितम्बर २०११
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
मायावती जी,
२०१२ के चुनाव को ध्यान में रखते हुए आपके विरुद्ध एक बहुत बड़ा षडयंत्र किया जा रहा है । हमें लगता है कि ब्राह्मणवादी, मनुवादी, कांग्रेस, भाजपा, मुलायम, पुरुषवादी सभी आपके पीछे पड़े हुए हैं । एक तो आप महिला, फिर दलित और ऊपर से कुँवारी । न किसी के मन में दया है और न ममता । दुनिया का तो हमें पता नहीं मगर रज़िया सुलतान को उसी के दरबारियों ने केवल इसलिए षडयंत्र का शिकार बनाया कि वह महिला थी ।
जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया के सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री और वह भी एक नहीं कई-कई बार । दुनिया में इतने छोटे-छोटे देश हैं कि बीसियों को मिला दो तो जनसंख्या में अपने उत्तर प्रदेश के बराबर न हों । और यह स्थिति तो उत्तरांचल को निकाल देने के बाद है । ऐसी शक्तिशाली, लोकप्रिय और जनाधार वाली नेत्री पर आरोप कौन लगा रहा है ? दो करोड़ की जनसंख्या वाले एक छोटे से देश आस्ट्रेलिया का, ब्रिटेन में शरण लिया हुआ, कैद में पड़ा, एक अविवाहित व्यक्ति । उसे क्या पता कि सेवा क्या होती है ? और कितना बलिदान देना पड़ता है उसके लिए । अरे, उसी में कोई गुण होते तो क्यों ब्रिटेन की जेल में होता । अपने देश में रहता, कोई ढंग का काम करता ।
अब कोई पूछने वाला हो कि यह भी कोई काम है कि आप ढूँढते फिरो कि किसने, किसको, क्या कहा ? कौन कहाँ गया ? किसने, किस होटल में खाना खाया ? किसने, कितने रुपए के मोज़े पहने ? किस को कब दस्त लगे या किसे, कितने दिनों से कब्ज है । जब सोनिया जी की बीमारी के बारे में किसी को कुछ भी जानने का अधिकार नहीं है तो आपकी निजता का इतना उल्लंघन क्यों ? आप अपनी मर्जी की चप्पलें तक नहीं पहन सकतीं ? लोग तो जाने कहाँ-कहाँ से सामान मँगाते हैं और आपने मुम्बई से एक जोड़ी चप्पलें क्या मँगवा लीं कि आसमान टूट पड़ा ।
देश स्वतंत्र होने के बाद की बात है । राजाओं का राज जा चुका था । पोरबंदर की महारानी वहाँ के महाराजा की अति रसिकता के कारण नाराज़ हो गईं तो उन्होंने पोरबंदर का पानी पीना तक छोड़ दिया । उनका पानी उनके पीहर गोंडल से आता था । जयपुर के महाराजा जब इंग्लैण्ड जाते थे तो अपने साथ चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में भर कर गंगाजल ले जाया करते थे । वहाँ का पानी तक नहीं पीते थे । आपने कभी कोई ऐसा मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं किया ।
हमने तो सुना है कि जब लालू जी रेल मंत्री थे तब उनकी भैंस के लिए रोज पटना से हरा चारा कटकर, बिहार केडर के एक प्रशासनिक अधिकारी की देखरेख में, ए.सी. कोच में लदकर दिल्ली आता था । मुलायम सिंह जी जब रक्षामंत्री थे तो वायु सेना के प्लेन से अपने घर से छाछ मँगवाया करते थे । छाछ तो रोजाना की चीज है मगर चप्पलें तो कोई साल दो साल में एक बार खरीदनी होती हैं । हम दिन में दो बार मंदिर जाते हैं और एक बार सब्जी लेने तो भी हमारी चप्पलें दो-तीन साल चल जाती हैं । आप तो प्लेन से आती जाती हैं तो एक कार्यकाल में एक जोड़ी चप्पलें बहुत । जय ललिता जी के पास तो सुना है कोई सात हजार जोड़ी सेंडिल और चप्पलें हैं मगर उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता । यह ब्राह्मण और दलित के बीच भेदभाव है कि नहीं ?
मान लीजिए यदि आप चप्पल लेने मुम्बई जातीं तो भी तो उतना ही पेट्रोल लगता जितना कि अब लगा होगा । यदि आप ट्रेन से जातीं तो यू.पी. के बीस करोड़ लोगों को आप द्वारा मिलने वाली एक दिन की सेवा का नुकसान उठाना पड़ता मतलब कि बीस करोड़ मानव दिवसों का नुकसान । जीवन को ही चार दिन का माना गया है और इतने दिन तो मुम्बई से चप्पल लाने में ही बीत जाएँगे । फिर जनता की सेवा कब करेंगी । यदि बस से बरेली या कानपुर जाओ तो भी एक डेढ़ दिन लग ही जाता है । और फिर जिसने सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है उसे चप्पल खरीदने जैसे छोटे काम में अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए । गाँधी जी सूत कातने जैसे छोटे-छोटे कामों में ही लगे रहे इसलिए देश के लिए कुछ खास नहीं कर पाए । जीवन भर सूत कात कर भी दो-चार ढंग के सूट नहीं सिलवा सके । ऐसे ही अधनंगे ब्रिटेन गए और वहाँ की जनता के बीच भारत की इज्जत का कचरा करवा आए । आप जैसी रुआब वाली कोई हस्ती जाती और ब्रिटेन के सम्राट को हड़काती तो बच्चू के होश ठिकाने आ जाते और फटाफट आज़ादी दे देता । और ऊपर से माफ़ी माँगता सो अलग । अब बताइए कि आपका चप्पल लेने जाना सस्ता और समझदारी का काम है कि आपका चप्पल मँगवाना ?
अब यह हमारी तरह कोई रिटायर्ड मास्टर का चप्पल खरीदना या उसकी मरम्मत करवाना थोड़े ही है कि कहीं भी पटरी के किनारे उकड़ू बैठ कर हो गया । मान लीजिए कि हमारी नई चप्पल दो दिन काटे भी तो क्या फर्क पड़ता है । मगर प्रधान मंत्री के जूते काटने लगें या किसी मुख्यमंत्री की चप्पलें काटने लगें तो वहाँ की सारी जनता लंगड़ाने लग जाएगी । और फिर आज के ज़माने में आदमी के गुणों को समझने की फुर्सत किसे है ? आजकल तो आदमी जूतों और कपड़ों से ही तो पहचाना जाता है । वैसे जहाँ तक जूतों और चप्पलों का प्रश्न है लोग अपने प्रिय नेता को जब चाहे माला बनाकर पहनाने को तत्पर रहते हैं या फिर पास जाने की सुविधा न मिलने पर दूर से ही प्रक्षेपित कर देते हैं । ऐसे अवसरों पर प्राप्त होने वाले जूते या चप्पल प्रायः एकवचन में ही होते हैं । इनका द्विवचन के बिना उपयोग भी तो नहीं किया जा सकता और फिर इनकी क्वालिटी प्रायः अच्छी नहीं होती ।
अपने देश में तो शाहजहाँ नामका एक बादशाह हुआ है जो आज से तीन सौ बरस पहले बीस करोड़ की कुर्सी पर बैठता था जो आज के हिसाब से एक लाख करोड़ की होगी । आपने एक जोड़ी चप्पल मँगवा लीं तो गुनाह हो गया । और फिर यह भी नहीं कि आपने कोई वैसे ही चप्पलें उठवा ली हों जैसे कि कोई पुलिस वाला सड़क के किनारे किसी ठेले से केले उठा कर खा जाए । बाकायदा पैसे दिए हैं । नेता होने का यह मतलब तो नहीं कि आदमी अपनी पसंद की चप्पलें भी नहीं पहन सके । अब आप देश के सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री क्या ममता या मेधा पाटकर की तरह से हवाई चप्पल फटकारती अच्छी लगेंगी ?
जहाँ तक दुनिया की बात है तो आधे से ज्यादा पागल है । एक असांजे के लिए ही क्या दिमाग खराब करना । कितनों को पागलखाने में डालेंगे ? लोगों का क्या, कुछ काम तो है नहीं, बस निठल्ले बैठे बातें बनाते रहेंगे । और कुछ नहीं तो दिल्ली में बैठकर अनशन करने लग जाएँगे । अरे भाई, यदि खाने को रोटी नहीं है तो बताओ । बी.पी.एल. कार्ड बनवा देंगे । इनकी बातें मानने लगे तो चल लिया देश । सुरक्षित हो लिया लोकतंत्र । इनकी बातें मानने की जरूरत भी नहीं है । त्रेता में राम ने इनकी बातें मानी तो क्या हुआ ? सब जानते हैं । बड़ी मुश्किल से चौदह बरस का बनवास काट कर कहीं सुख के दिन आए थे कि गर्भवती पत्नी को वन में भेजना पड़ा । आप इन असान्जों पर ध्यान न दें । यह तो चाहता ही यह है कि आप इसे आगरे के पागलखाने में डाल दें तो यह ब्रिटेन की जेल से छूटे और फिर यहाँ के डाक्टरों से मिल कर अस्पताल में ही मज़े करे जैसे कि अपने यहाँ तरह-तरह के भैया और पप्पू और साधू जेलों में जन्मदिन मनाते हैं, कैबरे करवाते हैं, मोबाइल से अपना धंधा चलाते हैं । इसने तो अमरीका के बारे में जाने कितने लाख पेज फोटो स्टेट करके भेजे थे ? कुछ हुआ क्या ? लोकतंत्र में ऐसी छोटी-मोटी आतिशबाजियाँ होती ही रहती हैं । होनी भी चाहिएँ । इससे माहौल बना रहता है वरना तो लोगों को पता भी नहीं चलता कि कौन कब मर गया या कौन कब, कहाँ का मुख्यमंत्री बन गया ? जिस अभिनेत्री के बारे में कुछ भी नहीं छपता उसे फ़िल्में मिलनी बंद हो जाती हैं ।
और भी एक बात लाया है यह असांजे । कहता है कि आप खुद खाने से पहले कुछ आदमियों को खाना चखावाती हैं कि कहीं खाने में ज़हर तो नहीं है । दोष देखने वालों को क्या कहा जाए । बड़े आदमी केवल अपने लिए ही नहीं जीते । वे पहले चार आदमियों को खिला कर खाते हैं । ब्राह्मण खाने से पहले दो-चार ग्रास कुछ अछूता निकालते हैं वैसे ही आप खाने से पहले यदि दो आदमियों का पेट भरती हैं तो यह आलोचना की बात हो गई ? आज तक मरा है क्या कोई आपके खाने में से खाना खाने से ? आप उन लोगों में से नहीं हैं जो अपना खाना खाने का खर्च बचाने के लिए किसी गरीब के घर जा धमकें और बेचारे का किसी तरह से जुटाया खाना चट कर आएँ ।
और कहा गया है कि जो कुछ आदमी अपने हाथ से दान कर जाता है वही उसके साथ जाता है । तो आप तो वैसा भी कुछ नहीं कर रही है कि जनता के पैसे से अपने लिए स्वर्ग में कुछ जमा करवा रही हैं । जहाँ तक बैंक बैलेंस की बात है या मकान की बात है या चप्पलों का सवाल है तो ये क्या आप अपने साथ ले जाएँगी ? कितने हैं जो जनता की सेवा के लिए ब्रह्मचर्यव्रत धारण करते हैं ? लोग तो सरकारी खर्चे पर बच्चों का उत्पादन कर रहे हैं । आपके तो कोई बालबच्चे भी नहीं हैं जो आपके पीछे से भोगेंगे यह सब । जो कुछ है वह सब इसी देश में रह जाएगा । इसी जनता के काम आएगा । और वैसे भी मरने के बाद जूते-चप्पल ही क्या, मृतक का सारा सामान ही दान कर दिया जाता है
अब पता नहीं, लोग क्या सोच कर आपकी आलोचना कर रहे हैं । हमारी तो समझ में आता नहीं । आप तो गौतम बुद्ध, साहू जी महाराज, अम्बेडकर जी, कांसीराम जी का नाम लेकर इसी तरह से निःस्वार्थ भाव से, बिना एक भी पल फालतू के कामों में व्यर्थ किए, लगी रहिए सेवाकार्य में । बड़े भाग्य से मिलता है जनसेवा का अवसर । वैसे भी जनता तो पैदा ही सेवा करवाने के लिए होती है । आप नहीं करेंगी तो कोई और यू.पी. की जनता का 'कल्याण' करने के लिए 'मुलायम' होकर 'अमर' हो जाएगा । तो फिर आप ही क्या बुरी हैं ।
६ सितम्बर २०११
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बेचारी के जूते मंगाने पर भी आफत,दलित है ना !
ReplyDeleteदेखना ऊ फिर कुर्सी पा लेगी !!
मुआ बड़ा ही दुष्ट है असांज, बेचारा एक दलित मुख्यमन्त्री को परेशान किये जा रिया है.
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