दरवाजे पर ठक-ठक की आवाज़ हुई । खोलकर देखा तो गले में स्कार्फ बाँधे, काली आड़ी धारियों की लाल टी शर्ट पहने एक पुण्यात्मा खड़ी थी । उसके खड़े होने की मुद्रा देवानंद की तरह कुछ त्रिभंगी थी । शक्ल कुछ बुश, कुछ क्लिंटन और कुछ अंकल सैम से मिलती थी । थोड़ा-थोड़ा हिल रहा था और कंधे भी उचका रहा था । हमने सोचा- कोई देशी-विदेशी का मिक्सचर दादा है । हमने विनम्रतापूर्वक, आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा- भाई आप ? उत्तर मिला- हाँ बाप ।
हम जानते हैं कि ऐसे प्राणी इस ‘विश्व-गाँव’ के बाप है पर अनावश्यक संवाद को टालने के लिए कहा- क्या आज्ञा है ?
अब तो वह और भी विनम्र हो गया और बोला- आपके घर में कोई मुर्गी है ?
हमने कहा- भाई, हम तो खुद ही मुर्गी हैं जिसे काटने के लिए गली के दादा से लेकर आई.एम.एफ., डब्लू.टी.ओ., डंकल तक तैयार बैठे हैं ।
उसकी आवाज़ थोड़ी ऊँची हुई, बोला- हम मानव रूपी मुर्गी नहीं, मुर्गी रूपी मुर्गी की बात कर रहे हैं जिसे काट कर खाया जाता है ।
हमने कहा- हम तो शुद्ध शाकाहारी हैं । हाँ, कभी-कभी छत पर कबूतर आ जाते हैं जिन्हें दाना डाल देते हैं और एक तोता पाल रखा है ।
वह मुस्कराया- तो हम सही जगह आया । तुमको पता है आजकल सारे संसार में ‘बर्ड-फ्लू’ फैला हुआ है । तुम्हारे तोते का भी इलाज़ करना पड़ेगा । लो, ये दस गोलियाँ । कीमत है एक हजार रुपए । हर महिने एक गोली खिलाना । फिर इस तोते को ‘बर्ड-फ्लू’ नहीं होगा ।
हमने निवेदन किया- प्रभु, इस तोते की कीमत है मात्र पन्द्रह रुपए । साढ़े सात साल भी जिया तो दो रुपए साल का शौक है । इसके लिए एक हजार रुपए खर्च करना हमारे बस का नहीं है ।
तो वह बोला- उधार ले लो, पर दवा तो लेनी ही पड़ेगी । दवा नहीं लोगे तो तोते को ‘बर्ड-फ्लू’ हो जाएगा फिर तोते से तुमको हो जाएगा । फिर गली, मोहल्ले, गाँव, देश और फिर सारी दुनिया को ‘बर्ड-फ्लू’ हो जाएगा । दवा न खरीद कर तुम व्यापक विनाश का कारण बनोगे । और ऐसा हम होने नहीं देंगे । जैसे इस दुनिया की रक्षा के लिए सद्दाम को पिंजरे में डालना ज़रूरी था वैसे ही तुम्हारे इस तोते को भी यह दवा लेना ज़रूरी है ।
हमने कहा- हमने इस तोते का मेडिकल करवा लिया है । इसे कोई बीमारी नहीं है । इसे ‘बर्ड-फ्लू’ नहीं है ।
'नहीं है तो हो जाएग'- वह बोला ।
हमने खुद को फँसते देखकर पिंजरे का दरवाजा खोला और तोते को उड़ा दिया ।
दूसरे दिन भाई फिर हाजिर । अब तो हमारे होश ही नहीं बल्कि न होते हुए भी ‘हाथों के तोते उड़ गए’ ।
अब की बार उनके हाथ में तेल की एक बोतल थी । बोले- तुम्हें पता है, सरसों के तेल में अर्जीमोन होता है ? सरसों के तेल से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है । लो, यह सोयाबीन का तेल खाओ ।
हमने हल्का सा प्रतिवाद किया- हम तो हजारों साल से सरसों का तेल खाते आ रहे हैं । आज तक तो न किसी को कोलेस्ट्रोल बढ़ाने की शिकायत हुई और न ही किसी को सरसों के तेल में अर्जीमोन मिला । हाँ, सात साल पहले दिल्ली में ज़रूर आपके कृपा-पात्र व्यापारियों की कृपा से सरसों में अर्जीमोन मिल गया था । हम तो अर्जीमोन जानते ही नहीं थे । सोचते थे हार्मोन जैसी कोई चीज होगी । बाद में डिक्शनरी देखने पर पता चला कि यह तो सत्यानाशी के बीज होते हैं । वैसे तो हर समाज में कुछ न कुछ सत्यानाशी होता ही है । हमारे यहाँ तो यह सर्दी के दिनों में खूब फलता-फूलता है । न कोई जानवर इसे खाता है और न ही किसी सार-सँभाल की ज़रूरत होती है । कहीं भी खाली जगह में उग आता है । बड़ा नकटा पौधा है । फिर भी प्रकृति की माया देखिए कि उसमें कोई भी चीज नितांत फालतू नहीं है । इस सत्यानाशी के बीजों का भी औषधीय उपयोग है । इसके बीज सरसों से भी दस गुने महँगे मिलते हैं । किसी को क्या ज़रूरत कि सस्ती चीज में महँगी चीज मिलाए ?
सुनते हैं कि इसे सरसों के तेल में मिलाने का आइडिया आपका ही रहा था । व्यापारियों का क्या है ? वे तो मिलावट करते ही हैं लेकिन सरसों में अर्जीमोन जैसी नहीं कि खाते ही सात महिने की गर्भवती जैसा पेट हो जाए और यदि शीघ्र इलाज़ न मिले तो मामला खत्म । पर एक बहुत बड़ी योजना के तहत यह काम हुआ इसीलिए सैंकडों लोगों के मरने पर भी किसी को सजा नहीं हुई । अब भी लोग सरसों का तेल खा रहे हैं लेकिन किसी को अर्जीमोन से होने वाली ड्राप्सी वाली बीमारी नहीं हुई । हाँ, आपके सोयाबीन के तेल को जगह ज़रूर मिल गई । पर कुछ भी हो हमें तो सोयाबीन के तेल में एक अजीब सी गंध आती है । हमें तो सरसों का तेल ही ठीक लगता है । वैसे अब साठ से ऊपर हो गए हैं सो सोचते हैं कि चिकनाई खाना छोड़ ही दें । क्या सरसों का और क्या आपका सोयाबीन ।
भाई ने हमारी तरफ ऐसे घूरा जैसे कसाई बकरे को घूरता है और घूरते-घूरते ही विदा हो गए । हमने चैन की साँस ली ।
अगले दिन सवेरे-सवेरे चबूतरे पर बैठे चाय पी रहे थे कि भाई हाज़िर । हमारी हृदय-गति बढ़ गई । हाथ काँपने लगे । चाय गिरते-गिरते बची । अबकी बार भाई के हाथ में एक किलो की पोलीथिन की थैली थी । हमारी तरफ बढ़ाते हुए बोले- लो यह आयोडीनयुक्त नमक है । साधारण नमक खाते-खाते तुम्हारा शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो गया है ।
हमने कहा- यह ठीक है कि हम पहलवान या जीनियस तो कभी नहीं रहे फिर भी उम्र के हिसाब से हमारा शारीरिक और मानसिक विकास ठीक-ठाक ही है । और फिर आयोडीन वाला नमक खाए बिना भी हमारे देश में आर्यभट्ट, रामानुजम, सी.वी.रमण, जगदीश चन्द्र बसु, हर गोविन्द खुराना, भाभा जैसे विद्वान, वैज्ञानिक और हनुमान और गामा जैसे पहलवान भी हो चुके हैं । और फिर आयोडीनयुक्त नमक तो वहाँ के लोगों को खिलाओ जिस इलाके में आयोडीन की कमी हो । वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डाक्टर कहते हैं कि खाने में ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए और यदि सब्जी वगैरह में उबलते समय नमक डाला जाए तो उसका आयोडीन खत्म हो जाता है । इस प्रकार हर हालत में शरीर आयोडीन से वंचित रह जाता है । यदि कोई विशेष परिस्थिति हो तो डाक्टर दवा दे देगा । यह आयोडीन का नाटक हमारी समझ में नहीं आ रहा है । और फिर यह देश जो ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में कभी दुनिया का सिरमौर था क्या इतनी सी समस्या को हल नहीं कर सकता ? आपने बेकार ही कष्ट किया ।
अबकी बार वे कुछ नहीं बोले लेकिन उनकी दृष्टि वैसे ही थी जैसे कि किसी घायल चीते की होती है । हम उस तेज रफ़्तार ट्रक ड्राइवर से डरते रहे, जिससे हम कुचले जाने से बाल-बाल बचे और जिसके पीछे लिखा था- 'फिर मिलेंगे' ।
सचमुच वे अगले दिन फिर आ गए । उनके एक हाथ में एक बोतल में कत्थई रंग का एक पेय पदार्थ था और दूसरे में एक मोटा सा चिल्ला जिस पर कुछ टमाटर, मिर्च और प्याज के टुकड़े पड़े हुए थे । बोले- ले यह पिज्जा खा और कोकाकोला पी ।
हमने कहा- हुजूर, इससे लीवर खराब हो जाता है और यहाँ तक कि केंसर भी हो सकता है । फिर हमारे पूर्वजों ने यहाँ के हिसाब से लस्सी, छाछ, शिकंजी, ठंडाई विकसित किए हैं जो सस्ते और स्वास्थ्यप्रद भी हैं । फिर आपका यह पेय-पदार्थ तो दूध से भी महँगा है और असर में सुनते हैं कि टॉयलेट क्लीनर जैसा है । और यह आपका चिल्ला जिसे आप पिज्जा कहते हैं मैदा से बना हुआ और तेल ही तेल भरा है इसमें तो । हाज़मा खराब और कर देगा हमारा तो ।
अब तो भाई को बहुत क्रोध आ गया । कहने लगे- ज़मीन पर हगने वाले, पिछड़े काले आदमी, तुझमें हीन भावना कूट-कूट कर भरी है । तू विकसित विश्व के साथ चलना नहीं चाहता । तू ऐसे प्यार से नहीं समझेगा । तुझे दूसरी तरह से समझाना पड़ेगा । अब उसने रिवाल्वर निकला और बोला- चूँ-चपड़ करने की ज़रूरत नहीं है । ले, पी सिर उठा के । और कर गौरव का अनुभव, भूल सारी हीन भावनाएँ ।
हम डरकर, जान बचाने के लिए सिर उठाकर वह कत्थई रंग का तरल पदार्थ पीने लगे और वह हमारे जूते और थैला उठाकर चलता बना । अब हमारी हालत महान चित्रकार, पद्मविभूषण, प्रातः स्मरणीय, सरकार के कृपापात्र मकबूल फ़िदा हुसैन द्वारा बनाए गए भारत माता के कुख्यात चित्र जैसी हो रही थी ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
हम जानते हैं कि ऐसे प्राणी इस ‘विश्व-गाँव’ के बाप है पर अनावश्यक संवाद को टालने के लिए कहा- क्या आज्ञा है ?
अब तो वह और भी विनम्र हो गया और बोला- आपके घर में कोई मुर्गी है ?
हमने कहा- भाई, हम तो खुद ही मुर्गी हैं जिसे काटने के लिए गली के दादा से लेकर आई.एम.एफ., डब्लू.टी.ओ., डंकल तक तैयार बैठे हैं ।
उसकी आवाज़ थोड़ी ऊँची हुई, बोला- हम मानव रूपी मुर्गी नहीं, मुर्गी रूपी मुर्गी की बात कर रहे हैं जिसे काट कर खाया जाता है ।
हमने कहा- हम तो शुद्ध शाकाहारी हैं । हाँ, कभी-कभी छत पर कबूतर आ जाते हैं जिन्हें दाना डाल देते हैं और एक तोता पाल रखा है ।
वह मुस्कराया- तो हम सही जगह आया । तुमको पता है आजकल सारे संसार में ‘बर्ड-फ्लू’ फैला हुआ है । तुम्हारे तोते का भी इलाज़ करना पड़ेगा । लो, ये दस गोलियाँ । कीमत है एक हजार रुपए । हर महिने एक गोली खिलाना । फिर इस तोते को ‘बर्ड-फ्लू’ नहीं होगा ।
हमने निवेदन किया- प्रभु, इस तोते की कीमत है मात्र पन्द्रह रुपए । साढ़े सात साल भी जिया तो दो रुपए साल का शौक है । इसके लिए एक हजार रुपए खर्च करना हमारे बस का नहीं है ।
तो वह बोला- उधार ले लो, पर दवा तो लेनी ही पड़ेगी । दवा नहीं लोगे तो तोते को ‘बर्ड-फ्लू’ हो जाएगा फिर तोते से तुमको हो जाएगा । फिर गली, मोहल्ले, गाँव, देश और फिर सारी दुनिया को ‘बर्ड-फ्लू’ हो जाएगा । दवा न खरीद कर तुम व्यापक विनाश का कारण बनोगे । और ऐसा हम होने नहीं देंगे । जैसे इस दुनिया की रक्षा के लिए सद्दाम को पिंजरे में डालना ज़रूरी था वैसे ही तुम्हारे इस तोते को भी यह दवा लेना ज़रूरी है ।
हमने कहा- हमने इस तोते का मेडिकल करवा लिया है । इसे कोई बीमारी नहीं है । इसे ‘बर्ड-फ्लू’ नहीं है ।
'नहीं है तो हो जाएग'- वह बोला ।
हमने खुद को फँसते देखकर पिंजरे का दरवाजा खोला और तोते को उड़ा दिया ।
दूसरे दिन भाई फिर हाजिर । अब तो हमारे होश ही नहीं बल्कि न होते हुए भी ‘हाथों के तोते उड़ गए’ ।
अब की बार उनके हाथ में तेल की एक बोतल थी । बोले- तुम्हें पता है, सरसों के तेल में अर्जीमोन होता है ? सरसों के तेल से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है । लो, यह सोयाबीन का तेल खाओ ।
हमने हल्का सा प्रतिवाद किया- हम तो हजारों साल से सरसों का तेल खाते आ रहे हैं । आज तक तो न किसी को कोलेस्ट्रोल बढ़ाने की शिकायत हुई और न ही किसी को सरसों के तेल में अर्जीमोन मिला । हाँ, सात साल पहले दिल्ली में ज़रूर आपके कृपा-पात्र व्यापारियों की कृपा से सरसों में अर्जीमोन मिल गया था । हम तो अर्जीमोन जानते ही नहीं थे । सोचते थे हार्मोन जैसी कोई चीज होगी । बाद में डिक्शनरी देखने पर पता चला कि यह तो सत्यानाशी के बीज होते हैं । वैसे तो हर समाज में कुछ न कुछ सत्यानाशी होता ही है । हमारे यहाँ तो यह सर्दी के दिनों में खूब फलता-फूलता है । न कोई जानवर इसे खाता है और न ही किसी सार-सँभाल की ज़रूरत होती है । कहीं भी खाली जगह में उग आता है । बड़ा नकटा पौधा है । फिर भी प्रकृति की माया देखिए कि उसमें कोई भी चीज नितांत फालतू नहीं है । इस सत्यानाशी के बीजों का भी औषधीय उपयोग है । इसके बीज सरसों से भी दस गुने महँगे मिलते हैं । किसी को क्या ज़रूरत कि सस्ती चीज में महँगी चीज मिलाए ?
सुनते हैं कि इसे सरसों के तेल में मिलाने का आइडिया आपका ही रहा था । व्यापारियों का क्या है ? वे तो मिलावट करते ही हैं लेकिन सरसों में अर्जीमोन जैसी नहीं कि खाते ही सात महिने की गर्भवती जैसा पेट हो जाए और यदि शीघ्र इलाज़ न मिले तो मामला खत्म । पर एक बहुत बड़ी योजना के तहत यह काम हुआ इसीलिए सैंकडों लोगों के मरने पर भी किसी को सजा नहीं हुई । अब भी लोग सरसों का तेल खा रहे हैं लेकिन किसी को अर्जीमोन से होने वाली ड्राप्सी वाली बीमारी नहीं हुई । हाँ, आपके सोयाबीन के तेल को जगह ज़रूर मिल गई । पर कुछ भी हो हमें तो सोयाबीन के तेल में एक अजीब सी गंध आती है । हमें तो सरसों का तेल ही ठीक लगता है । वैसे अब साठ से ऊपर हो गए हैं सो सोचते हैं कि चिकनाई खाना छोड़ ही दें । क्या सरसों का और क्या आपका सोयाबीन ।
भाई ने हमारी तरफ ऐसे घूरा जैसे कसाई बकरे को घूरता है और घूरते-घूरते ही विदा हो गए । हमने चैन की साँस ली ।
अगले दिन सवेरे-सवेरे चबूतरे पर बैठे चाय पी रहे थे कि भाई हाज़िर । हमारी हृदय-गति बढ़ गई । हाथ काँपने लगे । चाय गिरते-गिरते बची । अबकी बार भाई के हाथ में एक किलो की पोलीथिन की थैली थी । हमारी तरफ बढ़ाते हुए बोले- लो यह आयोडीनयुक्त नमक है । साधारण नमक खाते-खाते तुम्हारा शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो गया है ।
हमने कहा- यह ठीक है कि हम पहलवान या जीनियस तो कभी नहीं रहे फिर भी उम्र के हिसाब से हमारा शारीरिक और मानसिक विकास ठीक-ठाक ही है । और फिर आयोडीन वाला नमक खाए बिना भी हमारे देश में आर्यभट्ट, रामानुजम, सी.वी.रमण, जगदीश चन्द्र बसु, हर गोविन्द खुराना, भाभा जैसे विद्वान, वैज्ञानिक और हनुमान और गामा जैसे पहलवान भी हो चुके हैं । और फिर आयोडीनयुक्त नमक तो वहाँ के लोगों को खिलाओ जिस इलाके में आयोडीन की कमी हो । वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डाक्टर कहते हैं कि खाने में ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए और यदि सब्जी वगैरह में उबलते समय नमक डाला जाए तो उसका आयोडीन खत्म हो जाता है । इस प्रकार हर हालत में शरीर आयोडीन से वंचित रह जाता है । यदि कोई विशेष परिस्थिति हो तो डाक्टर दवा दे देगा । यह आयोडीन का नाटक हमारी समझ में नहीं आ रहा है । और फिर यह देश जो ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में कभी दुनिया का सिरमौर था क्या इतनी सी समस्या को हल नहीं कर सकता ? आपने बेकार ही कष्ट किया ।
अबकी बार वे कुछ नहीं बोले लेकिन उनकी दृष्टि वैसे ही थी जैसे कि किसी घायल चीते की होती है । हम उस तेज रफ़्तार ट्रक ड्राइवर से डरते रहे, जिससे हम कुचले जाने से बाल-बाल बचे और जिसके पीछे लिखा था- 'फिर मिलेंगे' ।
सचमुच वे अगले दिन फिर आ गए । उनके एक हाथ में एक बोतल में कत्थई रंग का एक पेय पदार्थ था और दूसरे में एक मोटा सा चिल्ला जिस पर कुछ टमाटर, मिर्च और प्याज के टुकड़े पड़े हुए थे । बोले- ले यह पिज्जा खा और कोकाकोला पी ।
हमने कहा- हुजूर, इससे लीवर खराब हो जाता है और यहाँ तक कि केंसर भी हो सकता है । फिर हमारे पूर्वजों ने यहाँ के हिसाब से लस्सी, छाछ, शिकंजी, ठंडाई विकसित किए हैं जो सस्ते और स्वास्थ्यप्रद भी हैं । फिर आपका यह पेय-पदार्थ तो दूध से भी महँगा है और असर में सुनते हैं कि टॉयलेट क्लीनर जैसा है । और यह आपका चिल्ला जिसे आप पिज्जा कहते हैं मैदा से बना हुआ और तेल ही तेल भरा है इसमें तो । हाज़मा खराब और कर देगा हमारा तो ।
अब तो भाई को बहुत क्रोध आ गया । कहने लगे- ज़मीन पर हगने वाले, पिछड़े काले आदमी, तुझमें हीन भावना कूट-कूट कर भरी है । तू विकसित विश्व के साथ चलना नहीं चाहता । तू ऐसे प्यार से नहीं समझेगा । तुझे दूसरी तरह से समझाना पड़ेगा । अब उसने रिवाल्वर निकला और बोला- चूँ-चपड़ करने की ज़रूरत नहीं है । ले, पी सिर उठा के । और कर गौरव का अनुभव, भूल सारी हीन भावनाएँ ।
हम डरकर, जान बचाने के लिए सिर उठाकर वह कत्थई रंग का तरल पदार्थ पीने लगे और वह हमारे जूते और थैला उठाकर चलता बना । अब हमारी हालत महान चित्रकार, पद्मविभूषण, प्रातः स्मरणीय, सरकार के कृपापात्र मकबूल फ़िदा हुसैन द्वारा बनाए गए भारत माता के कुख्यात चित्र जैसी हो रही थी ।
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एड्स, स्वाईन फ़्लू, बर्ड फ़्लू जैसे हौव्वों के चक्कर में बहुत खेल किया है इन साहिबान ने| आपके लेखन को सलाम|
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