Jul 23, 2012

माँगे का कम्बल

प्राहजी मनमोहन जी,
सतश्री अकाल । यह क्या हुआ हाल ? हमारे भारत छोड़ते ही लोग खींचने लगे खाल । चलो, अपनों की तो उन्नीस-बीस बर्दाश्त भी की जा सकती है पर अब तो जिसके जो मन में आया बक रहा है ।

बाल ठाकरे जी तो अभी तक 'बाल' हैं इसलिए वे चाहे जिस को कुछ भी कहने का बचपना कर सकते हैं । जब किसी की पत्नी मैके चली जाती है तो साठ साल के बूढ़े ठूँठ में भी दो दिन बाद कल्ले फूटने लग जाते हैं । फिर वे तो विधुर हैं इसलिए पौरुष की बातें कर सकते हैं पर यह क्या कि पाँच-सात दिन पहले आपको 'राजनीतक रूप से नपुंसक' कह दिया ? अब लोग नपुंसकता के प्रकार को तो याद नहीं रखेंगे बस उन्हें तो 'नपुंसक' ही याद रहेगा । आदमी अपनी मर्ज़ी से ब्रह्मचर्य धारण कर ले तो संत या ब्रह्मचारी जी के नाम से आदरणीय हो जाता है । स्त्री अपनी मर्जी से अपने फिगर के लिए बच्चे पैदा न करे तो यह बात और है वरना पुरुष के लिए नपुंसक और स्त्री के बाँझ सबसे बड़ी गाली है ।

हमारे एक मित्र है जो कल तक चौहत्तर वर्ष की उम्र में भी जवानों जैसी डींगें मारते थे । गत वर्ष उनकी पौरुष ग्रंथि में कुछ समस्या पैदा हो गई तो डाक्टरों के उस ग्रंथि को निकाल ही दिया । हमारे मित्र कहते हैं कि इससे उनके पौरुष पर कोई असर नहीं पड़ा पर लोगों को विश्वास हो तब ना ? लोग अब उन्हें नपुंसक मानने लगे हैं । कुछ लोग किसी ग्रंथि के कारण कुंठित होते हैं और हमारे मित्र हैं कि ग्रंथि से मुक्त होकर कुंठित रहने लग गए हैं । और फिर आपकी तो इस ग्रंथि के ऑपरेशन का समाचार सारी दुनिया में फ़ैल चुका है ।

हमें आपकी सच्चरित्रता पर पूरा विश्वास है । आप हमेशा से इतने ही सज्जन हैं । एक बुजुर्ग कह रहे थे कि हम जवानी में जितने ताकतवर थे आज भी उतने ही ताकतवर हैं । हमारी जवानी पर उम्र ने कोई असर नहीं डाला । लोगों ने आश्चर्यचकित होकर पूछा तो कहने लगे- वो पत्थर देख रहे हैं ना, वह हमसे न तब उठता था और न अब उठता है ।

जब आप १९९१ में पहली बार योरप और अमरीका की पसंद के रूप में उनकी सिफारिश पर वित्त मंत्री बनाए गए थे तब आपने इस देश की गुलाम अर्थव्यवस्था को पहली बार मुक्त किया और देश की सारी श्रम-शक्ति को बँधुआ बना दिया । परिणाम यह हुआ कि मजदूर को पीलिया हो गया और और शेयर बाजार एक छिनाल औरत या बेलगाम मुँहजोर घोड़ी की तरह अनियंत्रित हो गया । लोग कहने लगे कि अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है जब कि अब पता लग रहा है कि यह विकास किसी नाजायज़ गर्भवती औरत के निखार की तरह था । इसी रास्ते पर चल कर खुद योरप और अमरीका की हालत खराब हो रही है तो आप कौनसे ऊपर से उतर कर आए हैं ?

पर हमें तो इस बात से सबसे अधिक दुःख हो रहा है कि कल तक जो योरप और अमरीका आपको अवतारी और चमत्कारी पुरुष बताया करते थे वे ही आज कल आपकी पगड़ी उछालने लगे हैं । कल तक ओबामा जी कहा करते थे कि उन्हें आपसे मिलने का इंतज़ार रहता है या जब मनमोहन जी बोलते हैं तो सारी दुनिया सुनती है । आपको उनके यहाँ की संस्थाओं ने कई अवार्ड दे दिए और अब टाइम मैगजीन वाले आपको अंडर अचीवर अर्थात् फिसड्डी बता रहे है । आप कहेंगे कि यह तो उस मैगजीन की अपनी राय है । इसमें ओबामा जी क्या कर सकते हैं ? यदि अमरीका की सरकार और वहाँ के मीडिया की राय अलग-अलग होती तो ९/११ के मामले में कोई तो अमरीका के खिलाफ बोलता लेकिन कोई नहीं बोला । इसका मतलब है कि आज जब टाइम वाला आपको फिसड्डी कह रहा है तो कहीं न कहीं ओबामा जी की भी यही राय है । वरना आपके चमत्कार का हाल तो तब भी यही था जब आपने ५०० अरब का परमाणु समझौता अमरीका से किया था । आप अब विमानों वाला ठेका फ़्रांस से लेकर अमरीका को दे दीजिए फिर देखिए कि आप किस तरह फिर अमरीका और उसके मीडिया के लिए चमत्कारी और अवतारी पुरुष बन जाते हैं ? मतलब कि जब तक आप उन्हें देश का पैसा लुटाते रहेंगे तब तक वे आपकी प्रशंसा करते रहेंगे । जब ओबामा जी दिवाली पर भारत आए थे तभी दुनिया के चार अन्य महारथी ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस, चीन के नेता भी आए थे परमाणु और हथियारों का सौदा करने । यह कोई कुंती द्वारा निकाला गया द्रौपदी की समस्या का हल तो है नहीं । इसमें तो पैसा खर्च करना पड़ता है जो कि पहले से ही अपनी औकात से बाहर है फिर पाँच-पाँच को संतुष्ट करना कैसे संभव है ? तो ठेका न मिलने वाले दो-तीन जनों को तो नाराज़ होना ही था सो ब्रिटेन ने भी ठेका न मिलने पर आपको सोनिया जी का गुड्डा कह दिया । हमारी अपनी लोकंतान्त्रिक व्यवस्था की बात और है । उसमें तो गुड्डा और फिसड्डी ही क्या, गाली-गलौच तक सब कुछ चलता है । सबको ऐसे वक्तव्यों से अपनी-अपनी राजनीतिक हँडिया के नीचे आँच देनी होती है । मगर हम तो कहते हैं कि ये अमरीका और ब्रिटेन वाले कौन होते हैं ?

वैसे हमें तो ये सब दुष्ट ही नहीं अज्ञानी भी लगते हैं । ये नहीं जानते कि हर जीव नियति के हाथ की कठपुतली या गुड्डा है । और यह नियति किसी के लिए किस रूप में आती है और किसी के लिए किस रूप में । जब सब ही किसी न किसी के गुड्डे हैं तो किसी के भी गुड्डे होने से क्या फर्क पड़ता है ? आपके नेतृत्त्व में जो अर्थव्यवस्था की गिलहरी इतना उछल रही थी, अब भारत की जनता की हालत दुनिया की निगाह में भी, धोने के बाद निचोड़ कर सुखाई गई बिल्ली की तरह से हो गई है । खैर, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना । आप तो एक किस्सा सुनिए ।

एक ठाकुर साहब थे । जब से राज गया है हालत खस्ता है । बस नाम के ही ठाकुर रह गए हैं । अंदर से हालत यह है कि दो जून की रोटी भी भारी हो रही है । बस, मूँछों पर ताव देकर काम चला रहे हैं । सो एक बार ठाकुर साहब को एक शादी में अपनी ससुराल जाना था । सर्दी के दिन थे और ठाकुर साहब के पास एक कम्बल तक नहीं । सर्दी तो किसी तरह मुट्ठी काँख में दबाकर झेल जाएँ पर दिखाने के लिए, कैसा भी हो एक कंबल तो चाहिए ही । कम्बल उनके एक नाई मित्र के पास था जो शादी में साथ ले चलेने की शर्त पर कम्बल देने को तैयार हुआ । पुराना समय और गाँव का इलाका सो लोग आने-जाने वालों से बिना बात सी.बी.आई. की तरह पूछताछ करने लग जाते थे । सो ठाकुर साहब से भी लोग कुछ पूछते तो ज़वाब नाई देता । और ज़वाब भी क्या ? बड़े विस्तार से बताता- जी, हम फलाँ गाँव से आ रहे हैं और फलाँ गाँव, फलाँ के यहाँ बरात में जा रहे हैं । ये ठाकुर साहब फलाँ-फलाँ हैं और मैं इनका नाई फलाँ-फलाँ हूँ और इन्होंने अपने कंधे पर जो कम्बल रखा है वह मेरा है ।

जब भी जो भी पूछता, नाई यही ज़वाब देता । अब आप सोच लीजिए कि ठाकुर साहब की ठकुराई और रुतबे का क्या कचरा हुआ होगा ? सो भाई जान, माँगे के कम्बल से इज्ज़त में ऐसे ही इज़ाफा होता है ।

2012-07-17


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