Jul 24, 2012

कलियुग केवल नाम अधारा


आज चाय के साथ पोती ने एक पर्ची भी रख दी जिस पर लिखा था- एम. सिंह ।
इस नाम का कोई व्यक्ति हमारे ध्यान में तत्काल नहीं आया । हमारे अखबार वाले का नाम महाबीर सिंह ज़रूर है लेकिन वह कभी इस अंदाज में तो नाम नहीं लिखता । वह स्वयं को महाबीर कहता है और हम भी उसे महाबीर के नाम से ही बुलाते हैं । बनाने को तो हम इससे 'मुलायम सिंह' या 'मनमोहन सिंह' भी बना सकते थे मगर हम अपनी औकात जानते हैं । सो बिना कोई मगज पच्ची किए हमने पोती से उस आगंतुक को अंदर बुलाने के लिए कह दिया ।

देखा तो पाया कि वह आगंतुक है तो तोताराम लेकिन उसने स्केच पेन से पृथ्वीराज चौहान और राणा प्रताप जैसी धाँसू मूँछें बना रखी हैं । हमें हँसी आ गई, पूछा- आज यह क्या नाटक है ? कहने लगा- आज मैंने अपना नाम बदल लिया है । अब मुझमें कोई राम-रहीम नहीं बचा है । अब मैं 'सिंह' हो गया हूँ और 'तोताराम' से मिट्ठू बन गया हूँ । और शोर्ट में मेरा नाम है- एम. सिंह ।

हमने कहा- इस बहादुर और शक्तिशाली प्राणी को 'सिंह' नाम तो हमने दिया है वरना न तो सिंह को अपना नाम मालूम है और न ही हिरण को उसका नाम जानने की ज़रूरत है । एक को मालूम है कि यह मेरा भोजन है और दूसरे को मालूम है कि यह मुझे खा जाएगा इसलिए मुझे इससे बचना है । यह तो मुलायम सिंह के भाग्य और मायावती के सुकर्मों से छींका टूट गया वरना देखा नहीं नतीजे आने से पहले मुलायम 'सिंह' जो आज दहाड़ रहे हैं, कैसे पिलपिले हो गए थे और मनमोहन 'सिंह' को आज कैसे ‘नपुंसक’ कह कर बालठाकरे, ‘सोनिया का गुड्डा’ कह कर ब्रिटेन और ‘अंडर अचीवर’ कह कर अमरीका गरिया रहे हैं ?

तोताराम ने प्रतिवाद किया- नाम का भी महत्त्व होता है । सोच, यदि महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि के नाम घासीराम या चौथमल जैसे होते तो कैसा लगता या कल्पना कर कि यदि अकबर महान के दरबार में आगमन की सूचना केवल यह कह कर दी जाती कि मिस्टर अकबर पधार रहे हैं तो कैसा लगता ? और दूसरी तरफ यदि अलाँ-फलाँ-ए-मुल्क, समथिंग-समथिंग-ए-हिंद, आदि-आदि ज़लवा अफ़रोज़ हो रहे हैं तो बात ही कुछ हो जाती है । लगता है कोई 'चीज़' आ रही है । आज भी किसी 'हरामजादे' नेता के सामने युवा हृदय सम्राट, या 'फलाँ जाति या वर्ग के मसीहा' लगा देने से रौब पड़ता है । ठीक है, मिट्ठू का मतलब 'तोता' ही होता है और 'तोता भी किसी पिंजरे में पड़ा हुआ' मगर आगे वाला 'सिंह' भी तो देख, भले ही पीछे से गोबर निसृत हो रहा हो ।

हमने फिर अपनी टाँग फँसाई, शेक्सपीयर ने भी कहा है- व्हाट्स देअर इन नेम ? नाम में क्या रखा है ?

तोताराम कहाँ मानने वाला था, बोला- नाम में कुछ क्यों नहीं है ? जब से बंबई मुम्बई, कलकत्ता कोलकाता, मद्रास चन्नई, पांडीचेरी पुदुचेरी, पूना पुणे हुआ है तब से वहाँ के लोगों की स्थिति कितनी सुधर गई है । बिजली, पानी, रोजगार, कानून व्यवस्था आदि की कोई समस्या नहीं है ।

हमने छेड़ा- और मुम्बई में आतंकवादी हमला तो नाम परिवर्तन के बाद ही हुआ है ना ?
तोताराम कहाँ चूकने वाला था, बोला- हाँ, यदि पहले वाला नाम रहा होता तो किसे पता है, जितने मरे उससे दुगुने लोग मरते ? मायावती जी द्वारा अमेठी, हापुड, कासगंज, शामली, अमरोहा, हाथरस आदि के नाम बदलने से इन जिलों का कितना विकास हुआ था ? अब जब इनके नाम फिर बदल दिए गए हैं तो इनका विकास और भी अधिक होगा वरना क्या अखिलेश जी को यू.पी. में करने को और कोई काम नहीं हैं जो इन जिलों के नाम बदल रहे हैं ।

और तभी तो तुलसीदास जी ने कहा है- 'कलियुग केवल नाम अधारा' अर्थात कलियुग में काम-धाम करने की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी लोग नाम से ही काम चलाया करेंगे ।

हमने सुझाव दिया- तो फिर क्यों न अपने देश का नाम भूल सुधार करते हुए 'इण्डिया' से 'भारत' रख दिया जाए । शायद गौरव का कुछ भाव जगे ।

तोताराम ने कहा- नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । अल्पसंख्यकों के साथ लोकतंत्र में इतना अन्याय कैसे किया जा सकता है ?

2012-07-23

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. ... तो निष्कर्ष यह निकला कि नाम के साथ स्केच पैन भी ज़रूरी है ...

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