मनमोहन जी,
आपके चुप रहने पर भारत के विरोधी दल विशेष रूप से भाजपा और उसके सहयोगी दल हल्ला मचा रहे हैं और अब तो आपकी अमरीकी अखबारों में होने वाली निंदा का सन्दर्भ भी देने लगे हैं । आजकल हम अमरीका में हैं लेकिन हमने तो कहीं भी आपकी कोई निंदा नहीं सुनी । अरे, यहाँ जब लोगों को अपने बीवी-बच्चों से बात करने की फुर्सत नहीं है तो किसके पास फुर्सत है किसी की निंदा करने की । जिनके पास कोई काम नहीं, वे ही समय बिताने के लिए ऐसी अन्त्याक्षरी कर रहे हैं । जब खुद सत्ता में आ जाएँगे तो अभिनन्दनों और विदेश यात्राओं से ही फुर्सत नहीं मिलेगी ।
यहाँ तो आपकी बात तो दूर, हमने सोनिया जी के आने-जाने की ही कोई खबर नहीं पढ़ी । वैसे भी आजकल यहीं क्या, भारत तक में अखबार और किताबें पढ़ना बंद हो चुका है फिर किसी एक दिन के कोई एक अखबार में कोई कुछ लिख देता है तो क्या फर्क पड़ता है । अब तक तो उस दिन का अखबार कूड़ा उठाने वाला ट्रक लेकर कहाँ लैंड फिलिंग में डाल चुका होगा । और फिर समझदार लोग जानते हैं कि अमरीका में आपकी आलोचना इसलिए हो रही कि आपने हवाई जहाजों का ठेका उसे देने की बजाय फ़्रांस को दे दिया । अब यह तो नहीं हो सकता कि आप सारे ठेके अमरीका को ही दे दो । और भी देश हैं । राजनीति में बेलेंस बनाकर रखना ही पड़ता हैं ।
आप अपनी आलोचना करने वालों को आपके बारे में बुश साहब और ओबामा जी द्वारा दिए गए वक्तव्य दिखा सकते हैं लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं क्योंकि जिसे आलोचना करनी है वह तो करेगा ही । आपने तो बाप-बेटे की वह कहानी पढ़ी ही होगी जिसमें वे अपने गधे के साथ बाजार जा रहे हैं । बेटा गधे पर बैठा था और बाप पैदल । उन्हें देखकर बुजुर्गों ने कहा कैसा ज़माना आ गया है कि बाप पैदल चल रहा है और बेटा गधे पर बैठा है । बेटे ने बाप को गधे पर बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा । आगे कुछ औरतें मिलीं और कहने लगीं- देखो, बुड्ढे को शर्म नहीं आती । खुद तो ठाठ से गधे पर बैठा है यह मासूम बच्चा पैदल चल रहा है । तो पिता-पुत्र दोनों गधे पर बैठ गए । तो लोगों ने कहा- अरे ठीक है, अपना जानवर है पर क्या बेचारे जानवर को मार ही देंगे, देखो दो-दो लदे हुए हैं । कुढ़कर दोनों पैदल चलने लगे तो लोगों ने कहना शुरु कर दिया- कैसे बेवकूफ हैं जो जानवर होते हुए भी पैदल चल रहे हैं ।
सो हमारे अनुसार आप उन आप्त वाक्यों की तरह ठीक कर रहे है- 'जोशी पड़ोसी कुछ भी बोले' या 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना' । मीना कुमारी की भी एक बहुत हिट फिल्म है- मैं चुप रहूँगी । और फिर भारतीय कहावतों में ही नहीं, अंग्रेजी में भी कहा गया है- स्पीच इज सिल्वर, साइलेंस इज गोल्डन । सो ऐसे ही थोड़े कहा है ? दुनिया की सारी अर्थव्यवस्था ही सोने के आधार पर चलती है । और अगर सोने का दूसरा अर्थ लिया जाए तो अधिक सोने वाला दीर्घायु होता है जैसे कि अपने खोल में छुपा कछुआ । सोने से ताज़गी आती है, स्लीपिंग ब्यूटी सबसे सुन्दर मानी जाती है । जब डाक्टरों को कुछ समझ में नहीं आता तो वे मरीज को सोने की दवा दे देते हैं ।
आप तो नरसिंह राव जी की पसंद है और उन्हीं के आग्रह पर ही इस पिछड़े देश को अपने आर्थिक सुधारों द्वारा विश्व-पटल पर स्थापित करने के लिए मंत्रीमंडल में शामिल हुए । हमने 'राजनीति में आए' नहीं कहा क्योंकि राजनीति में तो आप न तब थे और न अब । हमें आपके दक्षिण दिल्ली से विजय कुमार मल्होत्रा के सामने लड़े गए आपके लोकसभा-चुनाव की याद है । जब 'नर सिंह' होकर भी राव साहब कभी नहीं दहाड़े तो आप ही को क्या पड़ी है । जैसे उन्होंने मौन के बल पर पाँच साल शांति से निकाल दिए तो आपके भी पन्द्रह बरस निकल जाएँगे । यदि आप भी इन्हीं लोगों की तरह झखते रहते तो उलझे रहते मगर यह मौन का ही प्रताप है कि लोग कोमनवेल्थ गेम्स, टू जी भूल चुके हैं सो कुछ दिन में यह 'कोयला' भी भूल जाएँगे ।
हमारे एक मित्र थे । वे मास्टरी के अलावा एक्स्ट्रा इनकम के लिए डाक्टरी में हाथ आजमा लिया करते थे । एक बार एक रोगी को बुखार था सो उन्होंने इंजेक्शन लगा दिया और दुर्भाग्य से वह इंजेक्शन पक गया । मरीज कहने लगा- मास्टर जी, बुखार की तो देखी जाएगी आप तो मेरा यह जो इंजेक्शन पक गया है इसे ठीक कर दो । सो आप निश्चिन्त रहिए । इसी सिद्धांत के आधार पर सब ठीक हो जाएगा ।
और फिर यह भी है कि अधिक बोलने वाले की कोई सुनता भी नहीं । जो कम बोलता है उसका एक-एक शब्द लोग ध्यान से सुनते है, तरसते है जैसे कि अटल जी के बोलते-बोलते बीच में आने वाले ब्रेक के दौरान लोग अगले शब्द की कितना उत्सुक होकर प्रतीक्षा करते थे ? जैसे कि 'पाकीज़ा' में 'पायल निगोड़ी' में । सुषमा स्वराज के लंबे और ओजस्वी भाषण पर कैसे आपका वह शे'र 'माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं' भारी पड़ा था । ऐसे ही जब कोई चंदा या भीख माँगने आता है तो जो लोग उसको समझाने लगते हैं वे उलझ जाते है और जो उनकी किसी बात का उत्तर नहीं देते उनका पीछा जल्दी छूट जाता है । कालीदास की विद्वान बनने से पहले की कहानी तो सब जानते ही हैं कि वे मौन रहे और विद्यावती से जलने वाले विद्वानों ने ही कालीदास के संकेतों का अर्थ लगाकर कैसे विद्यावती को हरा दिया और कालीदास को जिता दिया । सो आप भी दिग्विजय सिंह जैसे मनीषियों की व्याख्या-क्षमता पर विश्वास कीजिए और चुप रहिए । वैसे हमें विश्वास है कि आप हमारी सलाह के बिना भी इस व्रत और समाधि को भंग नहीं करते । हम तो कहते है कि आप तो गाँधी जी के तीन बंदरों की तरह बोलना ही क्या, सुनना और देखना भी बंद कर दीजिए । और हमारा तो मानना है कि व्यक्ति सच्चे मौन में तभी तक रह सकता है जब तक वह सुनना और देखना बंद रखता है ।
एक कहानी है । एक राजा के सिर में सींग थे लेकिन किसी को पता नहीं था । एक बार एक नाई ने उनकी हजामत बनाते हुए उन सींगों को देख लिया । उस गरीब का तो यह देखकर पेट ही फूल गया । किसी को बताए तो राजा का डर और न बताए तो पेट दर्द । अंत में सुनसान स्थान पर जाकर एक पेड़ से लिपटकर उसे अपनी बात कह दी । अब संयोग देखिए कि उस पेड़ की लकड़ी से एक कारीगर ने एक सारंगी बनाई । जब उसे बजाया जाता तो उसमें से आवाज़ निकलती- राजा के सिर में सींग । सो कहीं भी, कभी भी, कुछ भी बोला हुआ पता नहीं कब दुःख दे जाए इसलिए सबसे भली चुप ।
आप तो जानते हैं कि साधना और भक्ति में बाधा डालने के लिए इंद्र तरह-तरह के भूत-प्रेत, शैतान और अप्सराएँ भेजता है लेकिन सच्चे साधक निर्विकार भाव से साधना में लीन रहते हैं । वाचाल लोग मौन का महत्त्व क्या जानें ? जब बाहर के शोर से विरत होकर साधक स्वयं में स्थापित होता है तो 'अनहद' नाद सुनता है । तब सहस्रार से अमृत झरता है । जैसे योगासनों में सबसे कठिन है शवासन वैसे की सबसे बड़ी साधना है- मौन व्रत । गाँधी जी का भी अनशन के बाद दूसरा सबसे बड़ा हथियार मौन ही था ।
गाँधी को कुछ आलोचकों ने 'मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी' कह-कह कर उन्हें एक 'प्रतीक' बना दिया । किसी का जीते जी प्रतीक बन जाना सबसे बड़ी उपलब्धि है । भले ही आपका पूनम पांडे के साथ कोई संबंध नहीं है लेकिन मान लीजिए कि जब कोई ‘चिकनी चमेली’ या ‘शीला की जवानी’ या ‘बीड़ी जलाइले’ जैसा महान गीतकर यह लिखे-
मैं पूनम पांडे हो गई रे
पप्पू तेरे कारण ।
तो पूनम पांडे का अर्थ बताने की जरूरत नहीं रह जाती । वह एक क्रिया का पर्याय बन गई है । यही जीते जी प्रतीक या मिथक बनना है । आप भी उस ऊँचाई तक पहुँच गए है सो हमारे हिसाब से तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है जो महात्मा गाँधी के बाद केवल आपको ही हासिल हुई है ।
मुबारक हो ।
2012-09-08
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
आपके चुप रहने पर भारत के विरोधी दल विशेष रूप से भाजपा और उसके सहयोगी दल हल्ला मचा रहे हैं और अब तो आपकी अमरीकी अखबारों में होने वाली निंदा का सन्दर्भ भी देने लगे हैं । आजकल हम अमरीका में हैं लेकिन हमने तो कहीं भी आपकी कोई निंदा नहीं सुनी । अरे, यहाँ जब लोगों को अपने बीवी-बच्चों से बात करने की फुर्सत नहीं है तो किसके पास फुर्सत है किसी की निंदा करने की । जिनके पास कोई काम नहीं, वे ही समय बिताने के लिए ऐसी अन्त्याक्षरी कर रहे हैं । जब खुद सत्ता में आ जाएँगे तो अभिनन्दनों और विदेश यात्राओं से ही फुर्सत नहीं मिलेगी ।
यहाँ तो आपकी बात तो दूर, हमने सोनिया जी के आने-जाने की ही कोई खबर नहीं पढ़ी । वैसे भी आजकल यहीं क्या, भारत तक में अखबार और किताबें पढ़ना बंद हो चुका है फिर किसी एक दिन के कोई एक अखबार में कोई कुछ लिख देता है तो क्या फर्क पड़ता है । अब तक तो उस दिन का अखबार कूड़ा उठाने वाला ट्रक लेकर कहाँ लैंड फिलिंग में डाल चुका होगा । और फिर समझदार लोग जानते हैं कि अमरीका में आपकी आलोचना इसलिए हो रही कि आपने हवाई जहाजों का ठेका उसे देने की बजाय फ़्रांस को दे दिया । अब यह तो नहीं हो सकता कि आप सारे ठेके अमरीका को ही दे दो । और भी देश हैं । राजनीति में बेलेंस बनाकर रखना ही पड़ता हैं ।
आप अपनी आलोचना करने वालों को आपके बारे में बुश साहब और ओबामा जी द्वारा दिए गए वक्तव्य दिखा सकते हैं लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं क्योंकि जिसे आलोचना करनी है वह तो करेगा ही । आपने तो बाप-बेटे की वह कहानी पढ़ी ही होगी जिसमें वे अपने गधे के साथ बाजार जा रहे हैं । बेटा गधे पर बैठा था और बाप पैदल । उन्हें देखकर बुजुर्गों ने कहा कैसा ज़माना आ गया है कि बाप पैदल चल रहा है और बेटा गधे पर बैठा है । बेटे ने बाप को गधे पर बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा । आगे कुछ औरतें मिलीं और कहने लगीं- देखो, बुड्ढे को शर्म नहीं आती । खुद तो ठाठ से गधे पर बैठा है यह मासूम बच्चा पैदल चल रहा है । तो पिता-पुत्र दोनों गधे पर बैठ गए । तो लोगों ने कहा- अरे ठीक है, अपना जानवर है पर क्या बेचारे जानवर को मार ही देंगे, देखो दो-दो लदे हुए हैं । कुढ़कर दोनों पैदल चलने लगे तो लोगों ने कहना शुरु कर दिया- कैसे बेवकूफ हैं जो जानवर होते हुए भी पैदल चल रहे हैं ।
सो हमारे अनुसार आप उन आप्त वाक्यों की तरह ठीक कर रहे है- 'जोशी पड़ोसी कुछ भी बोले' या 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना' । मीना कुमारी की भी एक बहुत हिट फिल्म है- मैं चुप रहूँगी । और फिर भारतीय कहावतों में ही नहीं, अंग्रेजी में भी कहा गया है- स्पीच इज सिल्वर, साइलेंस इज गोल्डन । सो ऐसे ही थोड़े कहा है ? दुनिया की सारी अर्थव्यवस्था ही सोने के आधार पर चलती है । और अगर सोने का दूसरा अर्थ लिया जाए तो अधिक सोने वाला दीर्घायु होता है जैसे कि अपने खोल में छुपा कछुआ । सोने से ताज़गी आती है, स्लीपिंग ब्यूटी सबसे सुन्दर मानी जाती है । जब डाक्टरों को कुछ समझ में नहीं आता तो वे मरीज को सोने की दवा दे देते हैं ।
आप तो नरसिंह राव जी की पसंद है और उन्हीं के आग्रह पर ही इस पिछड़े देश को अपने आर्थिक सुधारों द्वारा विश्व-पटल पर स्थापित करने के लिए मंत्रीमंडल में शामिल हुए । हमने 'राजनीति में आए' नहीं कहा क्योंकि राजनीति में तो आप न तब थे और न अब । हमें आपके दक्षिण दिल्ली से विजय कुमार मल्होत्रा के सामने लड़े गए आपके लोकसभा-चुनाव की याद है । जब 'नर सिंह' होकर भी राव साहब कभी नहीं दहाड़े तो आप ही को क्या पड़ी है । जैसे उन्होंने मौन के बल पर पाँच साल शांति से निकाल दिए तो आपके भी पन्द्रह बरस निकल जाएँगे । यदि आप भी इन्हीं लोगों की तरह झखते रहते तो उलझे रहते मगर यह मौन का ही प्रताप है कि लोग कोमनवेल्थ गेम्स, टू जी भूल चुके हैं सो कुछ दिन में यह 'कोयला' भी भूल जाएँगे ।
हमारे एक मित्र थे । वे मास्टरी के अलावा एक्स्ट्रा इनकम के लिए डाक्टरी में हाथ आजमा लिया करते थे । एक बार एक रोगी को बुखार था सो उन्होंने इंजेक्शन लगा दिया और दुर्भाग्य से वह इंजेक्शन पक गया । मरीज कहने लगा- मास्टर जी, बुखार की तो देखी जाएगी आप तो मेरा यह जो इंजेक्शन पक गया है इसे ठीक कर दो । सो आप निश्चिन्त रहिए । इसी सिद्धांत के आधार पर सब ठीक हो जाएगा ।
और फिर यह भी है कि अधिक बोलने वाले की कोई सुनता भी नहीं । जो कम बोलता है उसका एक-एक शब्द लोग ध्यान से सुनते है, तरसते है जैसे कि अटल जी के बोलते-बोलते बीच में आने वाले ब्रेक के दौरान लोग अगले शब्द की कितना उत्सुक होकर प्रतीक्षा करते थे ? जैसे कि 'पाकीज़ा' में 'पायल निगोड़ी' में । सुषमा स्वराज के लंबे और ओजस्वी भाषण पर कैसे आपका वह शे'र 'माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं' भारी पड़ा था । ऐसे ही जब कोई चंदा या भीख माँगने आता है तो जो लोग उसको समझाने लगते हैं वे उलझ जाते है और जो उनकी किसी बात का उत्तर नहीं देते उनका पीछा जल्दी छूट जाता है । कालीदास की विद्वान बनने से पहले की कहानी तो सब जानते ही हैं कि वे मौन रहे और विद्यावती से जलने वाले विद्वानों ने ही कालीदास के संकेतों का अर्थ लगाकर कैसे विद्यावती को हरा दिया और कालीदास को जिता दिया । सो आप भी दिग्विजय सिंह जैसे मनीषियों की व्याख्या-क्षमता पर विश्वास कीजिए और चुप रहिए । वैसे हमें विश्वास है कि आप हमारी सलाह के बिना भी इस व्रत और समाधि को भंग नहीं करते । हम तो कहते है कि आप तो गाँधी जी के तीन बंदरों की तरह बोलना ही क्या, सुनना और देखना भी बंद कर दीजिए । और हमारा तो मानना है कि व्यक्ति सच्चे मौन में तभी तक रह सकता है जब तक वह सुनना और देखना बंद रखता है ।
एक कहानी है । एक राजा के सिर में सींग थे लेकिन किसी को पता नहीं था । एक बार एक नाई ने उनकी हजामत बनाते हुए उन सींगों को देख लिया । उस गरीब का तो यह देखकर पेट ही फूल गया । किसी को बताए तो राजा का डर और न बताए तो पेट दर्द । अंत में सुनसान स्थान पर जाकर एक पेड़ से लिपटकर उसे अपनी बात कह दी । अब संयोग देखिए कि उस पेड़ की लकड़ी से एक कारीगर ने एक सारंगी बनाई । जब उसे बजाया जाता तो उसमें से आवाज़ निकलती- राजा के सिर में सींग । सो कहीं भी, कभी भी, कुछ भी बोला हुआ पता नहीं कब दुःख दे जाए इसलिए सबसे भली चुप ।
आप तो जानते हैं कि साधना और भक्ति में बाधा डालने के लिए इंद्र तरह-तरह के भूत-प्रेत, शैतान और अप्सराएँ भेजता है लेकिन सच्चे साधक निर्विकार भाव से साधना में लीन रहते हैं । वाचाल लोग मौन का महत्त्व क्या जानें ? जब बाहर के शोर से विरत होकर साधक स्वयं में स्थापित होता है तो 'अनहद' नाद सुनता है । तब सहस्रार से अमृत झरता है । जैसे योगासनों में सबसे कठिन है शवासन वैसे की सबसे बड़ी साधना है- मौन व्रत । गाँधी जी का भी अनशन के बाद दूसरा सबसे बड़ा हथियार मौन ही था ।
गाँधी को कुछ आलोचकों ने 'मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी' कह-कह कर उन्हें एक 'प्रतीक' बना दिया । किसी का जीते जी प्रतीक बन जाना सबसे बड़ी उपलब्धि है । भले ही आपका पूनम पांडे के साथ कोई संबंध नहीं है लेकिन मान लीजिए कि जब कोई ‘चिकनी चमेली’ या ‘शीला की जवानी’ या ‘बीड़ी जलाइले’ जैसा महान गीतकर यह लिखे-
मैं पूनम पांडे हो गई रे
पप्पू तेरे कारण ।
तो पूनम पांडे का अर्थ बताने की जरूरत नहीं रह जाती । वह एक क्रिया का पर्याय बन गई है । यही जीते जी प्रतीक या मिथक बनना है । आप भी उस ऊँचाई तक पहुँच गए है सो हमारे हिसाब से तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है जो महात्मा गाँधी के बाद केवल आपको ही हासिल हुई है ।
मुबारक हो ।
2012-09-08
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