Sep 13, 2012

ड्रिंक और डेमोक्रेसी उर्फ़ बराक ओबामा की बीयर

ओबामा जी,
थ्री चीयर्स । आशा है चुनाव अभियान अच्छी तरह से चल रहा होगा । दिन, चुनावी वादों से लोगों को बहलाने में और शाम, बीयर पीने-पिलाने में गुजर रहे होंगे । हमें विश्वास है कि आप निश्चय ही चुनाव जीतेंगे । जब से क्लिंटन जी ने दो-दो टर्म कुर्सी पकड़े रखने का चलन शुरू किया है तब से कोई भी दो टर्म से पहले पीछा नहीं छोड़ रहा है । आपके दो टर्म के बाद फिर रिपब्लिकन आने ही हैं जैसे तमिलनाडु की जनता जयललिता और करुणानिधि के बीच पेंडुलम की तरह झूल रही है वैसे ही अमरीकी जनता डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन की बीच धक्के खा रही है । बारी-बारी से नागनाथ जी और साँपनाथ जी में से ही किसी एक को आना है । हम तो आपके जन्म (१९६१) से पहले ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव कराते रहे हैं । २००२ में रिटायर होने के बाद इस लोकतान्त्रिक कर्म से पीछा छूटा है ।

हम अपने इसी अनुभव के आधार पर कह सकते हैं कि यह चुनाव आप ही जीतेंगे । इसीलिए हमने आपको शुरु में ही थ्री चीयर्स कह दिया । यह आपकी विजय के लिए भी है और आपकी बीयर के लिए भी जिसके बारे में अभी २ सितम्बर २०१२ को समाचार आया है कि आप व्हाईट हाउस में अपनी कोई निजी नुस्खे वाली बीयर बनाते हैं और पीते हैं (वीडियो)। जिस तरह से आपने बीयर को राष्ट्रीय सम्मान दिया है वह अनोखा, अद्भुत और अभूतपूर्व है । वैसे यह ओपन सीक्रेट है कि ड्रिंक और डेमोक्रेसी का हमेशा से घनिष्ट संबंध रहा है । हमारे यहाँ तो उम्मीदवार चुनाव के लिए फार्म भरने बाद में जाता है और दारू का भण्डारण पहले करता है । सभी दारू का खुला प्रयोग करते हैं । सभी मतदाता जिससे भी मिले दारू लेते हैं और उसी मधुमती भूमिका में वोट डाल आते हैं । अब नशे की स्थिति में कौन सा बटन दबा, किसे पता ? जो जीत जाता है- सब यही कहते हैं कि हमने उसे ही वोट दिया था । मगर जीतने वाला जानता है कि जीती दारू है । हमारे एक मित्र, जिन्हें हम पूनम पांडे की तरह पूरी पारदर्शिता से जानते थे, की एक बार एक साथ कई अखबारों और पत्रिकाओं में कई गज़लें छपीं तो हमने कहा- बंधु, आजकल तो बहुत छप रहे हो तो वे सकुचाकर बड़ी ईमानदारी से बोले- भाई साहब, आप तो जानते हो । मैं क्या, बोतल छप रही है ।

सो हम तो कहते हैं कि आप पिछली बार भी दारू के बल पर ही जीते थे और इस बार भी दारू के बल पर ही जीतेंगे । आप कहेंगे कि आपने पिछले चुनावों में तो दारू की कोई बात नहीं की थी । लेकिन याद कीजिए आपने कहा था- वी कैन । आपके चुनावी नारे वाले 'कैन' का क्या मतलब होता है पता नहीं, लेकिन बीयर का 'कैन' सभी समझते हैं और उसी की आशा में लोगों ने आपको वोट दे दिया । अब आपने अपने किसी आदमी से सूचना के अधिकार के तहत एक अप्लीकेशन लगवा कर, ईमानदारी का नाटक करते हुए अपना बीयर वाला नुस्खा जग-जाहिर कर दिया । वैसे यदि आपमें जन-कल्याण का इतना ही ज़ज्बा होता तो व्हाईट हाउस में चुपचाप दारू बनवा कर मज़े से पीते रहने की बजाय अंदर बीयर का एक बड़ा सा ओवर-हैड टेंक बनवा देते और उसका एक कनेक्शन बाहर लगवा देते । जिसका मन हो नल खोले और मस्त हो जाए । यदि आप ऐसा करते तो यह नौबत ही नहीं आती । लोग वैसे ही आपको आजीवन राष्ट्रपति बना देते । वैसे इसमें जनता का जाता भी क्या । होना तो वही है जो इस देश की विभिन्न लॉबियाँ जैसे गन लॉबी, पेट्रोल लॉबी, कार लॉबी, कोल्ड ड्रिंक लॉबी, पिज्जा लॉबी आदि चाहेंगी ।
अमरीका की राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि जनता उसी को वोट देती है जिसके साथ उसे बीयर पी सकने की उम्मीद होती है । आप जनता के इस विश्वास पर खरे उतरेंगे । बुश साहब ने तो सुनते हैं कि आखिरी वक्त में तौबा कर ली थी और इन रोमनी महाशय के बारे में तो लोग जानते ही हैं कि ये पीते नहीं ।

सोचिए बिना दारू के क्या जीवन ? कहाँ से हिम्मत आए और कहाँ से ताज़गी और कहाँ से दिन भर भौंकने और धक्के खाने की शक्ति । हमारे इलाके से तो एक सज्जन चुनाव में खड़े हुआ करते थे । उनके हर चुनाव कार्यालय में दारू का अटूट भंडार रहता था । कोई भी आए, कितनी भी पिए, पूरी छूट । वे खुद भी हर चुनाव सभा की समाप्ति पर अगली सभा के लिए जाते समय कार में बैठकर पीते हुए जाते थे । और इस तरह से हर सभा में वैसे ही तरोताज़ा और मस्त । कभी चुनाव नहीं हारे । सो आप तो दारू की सप्लाई बनाए रखिए ।

हमारे बच्चन जी ने ऐसे ही नहीं कहा है- ‘मंदिर मस्जिद बैर कराते, प्यार कराती मधुशाला’ । न पीने वाले के मन में भले ही खोट आ जाए लेकिन हम-पियाला लोगों को देखिए कैसे खुद से पहले, साथ वाले को बढ़-चढ़कर खिलाने-पिलाने की हसरत रहती है । कहने को तो कोई यह भी कह सकता है कि राष्ट्रपति होकर घर में दारू बनाते हैं । तो इसमें क्या है हमारे यहाँ भी ठाकुर लोग अपने घरों में दारू बनाया करते थे । कुछ वर्षों पहले राजस्थान में उन्हें 'रजवाड़ी दारू' के नाम से लाइसेंस दिया गया था । अमरीका में भी राष्ट्रपति को अपने नुस्खे और अपने नाम की दारू बनाने और बेचने का अधिकार होना चाहिए । वैसे तो इस साली कुर्सी में ही इतना नशा है कि आदमी को होश नहीं आता लेकिन जनता के पास तो पाँव के नीचे ज़मीन ही नहीं । ऐसे में उसमें क्या नशा ? उसके तो होश तक हिरण हो रहे हैं । इसलिए उसे तो वास्तविक दारू चाहिए गम गलत करने के लिए । सत्ताओं के भरोसे किसके गम दूर हुए हैं ?

इसलिए आप भी सभी नेताओं की तरह केवल उजले सपनों की ही नहीं बल्कि व्हाईट हाउस की बोतल वाली रजवाड़ी बीयर पिलाते रहिए और चुनाव जीतकर लोकतंत्र को सुरक्षित रखते रहिए । वैसे लोकतंत्र हमेशा सुरक्षित रहता है- कभी डेमोक्रेट का तो कभी रिपब्लिकन का । कुल मिलाकर लोकतंत्र को कभी कोई खतरा नहीं । हो सके तो हमारे जैसे आपके शुभेच्छु को व्हाईट हाउस में खींची बीयर का एक क्रेट भिजवा दें तो यहीं घर बैठे ही आपकी जीत को अभी एडवांस में ही सेलेब्रेट कर लें वरना जीत के बाद कौन किसे याद रखता है ?

वैसे भी न तो आपको तीसरी बार चुनाव में खड़े होना और न हम रिजल्ट वाले दिन यहाँ रहने वाले क्योंकि हमारा वापसी का टिकट नवंबर में है ।

2012-09-11
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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