Apr 14, 2014

तोताराम और छप्पन इंच का सीना


पिछले पचास साल जिन लोगों की लफंगई और हरामज़दगी देखते सुनते आ रहे हैं वे इस चुनाव के मौसम में बरसाती पतंगों की तरह आँखों में आकर गिर रहे हैं । उनकी झूठी मुस्कान के नीचे खलनायक वाली असलियत छुप नहीं पा रही है । निगाहें मिलते ही वे भी समझ जाते हैं और हम भी । दोनों की मज़बूरी है - उनकी सेवा करने की और हमारी जान बचा कर कहीं और न जा सकने की । किसी तरह घर में छुपते-छुपाते १४ मई २०१४ का इंतज़ार कर रहे हैं- जब ये पाँच साल के लिए अपने-अपने दलालों के साथ बंगलों में बंद हो जाएँगे और हम अपने चबूतरे पर जम जाएँगे ।

खैर, अभी तो धूप तेज़ नहीं है सो चबूतरे पर ही बैठे हैं । पत्नी के बुलावे पर जैसे ही चाय लेने अन्दर गए, बाहर से जोर-जोर से आवाज़ आई- मास्टर जी, जल्दी बाहर आइए । बाहर निकल कर देखा- दो लोग एक ठिगने और मोटे से बेहोश आदमी को चबूतरे पर लिटा रहे थे । कह रहे थे- जल्दी से ठंडा पानी लाइए । पता नहीं, बेचारा कौन है ? यहीं कोने पर वाटर वर्क्स वाले ट्यूब वेल के पास पड़ा था । हम जल्दी से अन्दर से ठंडा पानी लेकर आए । लोग गमछे से उसके मुँह पर हवा कर रहे थे । हमने कहा- इसके मुँह पर पानी के छींटे मारो और इसका कोट उतारो और कमीज़ के बटन खोल दो । पता नहीं, कैसा आदमी है जो इस गरमी में कोट पहने हुए है ?

मगर यह क्या ? कपड़े तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे । कोट के नीचे लम्बी बाँहों का स्वेटर, फिर आधी बाँहों का स्वेटर, कमीज़, कुरता, फिर आधी बाँहों की कमीज़ । चबूतरे पर कपड़ों का ढेर लग गया और कपडे हैं की ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे । यह तो वैसे ही हो गया जैसे कोई जादूगर अपने मुँह से रंगीन कागज़ की पन्नियाँ निकालता ही चला जाता है । एक बार एक पत्रिका में एक कार्टून देखा था जिसमें एक बहुत मोटा दिखने वाला आदमी अपने कपड़े उतार रहा है । कपड़े उतरते जा रहे हैं और उसका असली आकार प्रकट होता जा रहा है । अंत में ऊन उतारी हुई भेड़ की तरह डेढ़ पसली का एक मरियल जीव प्रकट होता है जिसके नीचे लिखा था- क्लोद्स मेक अ मैन ।

कपड़े उतारने और मुँह पर ठंडे पानी के छींटे मारने में उस आदमी शक्ल पर ध्यान ही नहीं गया । अचानक लगा- यह तो तोताराम है । हमें बड़ा गुस्सा आया -बेवकूफ, इस ३५ डिग्री गर्मी में तू ये दस-दस कपड़े लादकर कौन सा हठयोग कर रहा था ? क्या यह आत्महत्या करने का नया तरीका निकाला है ?

दस-पाँच मिनट बाद तोताराम ने सामान्य होते हुए कहा- कुछ नहीं भाई साहब, ज़रा पर्सनेलिटी बना रहा था । मेरे इस तीस इंची सीने के कारण कोई मेरी सुनता ही नहीं । अब सीना वास्तव में तो बढ़ने से रहा । मैंने सोचा कुछ एक्स्ट्रा कपड़े पहनकर ही इसे छप्पन इंच का नहीं तो चालीसेक इंच का तो दिखा ही दूँ । सो सीना तो पता नहीं कैसा दिख रहा था लेकिन गरमी के मारे चक्कर ज़रूर आ गया । अब ठीक हूँ ।

हमें गुस्सा तो इतना आ रहा था कि इसके एक-दो हाथ जमा दें लेकिन किसी तरह कंट्रोल करते हुए पूछा- तुझे अब सीना फुलाकर किस हसीना को पटाना है ?

तोताराम ने हमारा हाथ थामते हुए बड़ी विनम्रता से कहा- नहीं मास्टर, ऐसा कैसे सोचा सकता है तू । लेकिन जब से मैंने सुना है कि छप्पन इंच के सीने के बिना देश का विकास नहीं किया जा सकता तो मैंने सोचा कि उस विकास को झेलने के लिए भी तो छप्पन इंच का नहीं तो कम से कम छत्तीस इंच का सीना तो चाहिए ही । सो यह बेवकूफ़ी कर बैठा । अब चल अन्दर चलते हैं, यहाँ बैठे रहे तो क्या पता किधर से आकर कौन विकास-पुरुष कंठ पकड़ ले । भाभी से कह चाय नहीं, थोड़ा-सा शरबत बना दे तो कुछ राहत मिले ।

१४ अप्रैल २०१४

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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