Jun 10, 2014

तोताराम के तर्क और लालच की हद


पहले तो कोई खास रोमांच नहीं होता था और न कोई खटका लेकिन जब से चुनाव खिसक-खिसका कर मई में आ रहे हैं उससे थोड़ा टेंशन हो जाता है । निवर्तमान सरकार जाते-जाते आधा-अधूरा सा बजट घोषित करने के साथ ही महँगाई भत्ते की भी विगत जनवरी से लागू होने वाली एक क़िस्त घोषित कर जाती है । दिल में यह धुकधुकी लगी रहती है कि क्या पता नई सरकार उसे मानेगी या नहीं ? अबकी बार यह धुकधुकी कुछ अधिक थी । इसलिए भी कि मोदी जी मितव्ययी हैं, जब अपने लिए पूरा-सा ब्लेड का खर्चा भी नहीं करते तो क्या पता विकास के लिए संसाधन जुटाने के लिए मास्टरों के महँगाई भत्ते पर ही कैंची न चला दें ।

इसी टेंशन में मार्च, अप्रैल और मई निकल गए, साँसें अटकी रहीं । जुलाई से मिलने वाली क़िस्त का तो बैंक में जाकर पता कर आते थे कि क्रेडिट हुआ या नहीं लेकिन आजकल गरमी के मारे हिम्मत ही नहीं पड़ रही है । तोताराम के पास नहीं है लेकिन हमारे पास एक लेपटोप है । उसी पर हमारी एसोसिएशन के महासचिव ने मेल भेज दी कि डी.ए. क्रेडिट हो गया है । सो आज आते ही हमने तोताराम को सरप्राइज़ दिया- तोताराम, मुँह मीठा करवा, अपना डी.ए. क्रेडिट हो गया ।


खुश होना और मुँह मीठा करवाना तो दूर की बात, सड़ा-सा मुँह बनाकर कहने लगा- पहले तो चालीस बरस तनख्वाह पेली, साढ़े चार हजार पेंशन पर रिटायर हुआ जो बैठे-बिठाए अब तक बढ़कर अठारह हज़ार हो गई तिस पर भी जब देखो - हाय डी.ए., हाय पे कमीशन । अरे, संन्यास आश्रम में घुसने की उम्र आ गई लेकिन यह लालसा, तृष्णा ख़त्म नहीं हुई । कहाँ ले जाएगा इतना धन ? स्विस बैंक में भी जमा करना सुरक्षित नहीं रहा । पता नहीं, कब जेतली जी के महात्मा गाँधी (बाबा रामदेव) अनुलोम प्राणायाम के बल से स्विस बैंक के काला धन भारत खींच लाएँ । फिर क्यों मरा जा रहा है डी.ए.-डी.ए. करके ।


अब तो हमें बर्दाश्त नहीं हुआ । कौन जनसेवक और धर्म सेवक ऐसा है जो आती लक्ष्मी को छोड़ देता है । भले ही संसद में जाए या न जाए, एक दिन भी मुँह नहीं खोले, खोले तो प्रश्न पूछने के भी पैसे ले ले, सांसद-निधि में से बीस प्रतिशत कमीशन खाए, अपने फर्स्ट क्लास के रेल के पास बेच दे, केन्द्रीय विद्यालय के दो एडमीशन भी नीलाम कर दे, मौका लगे तो मुफ्त फोन से पी.सी.ओ. खोल ले, सांसद वाला मकान खाली करना पड़े तो पंखे और परदे उतार कर ले जाए । एक साल भी सांसद या एम.एल.ए. रह जाए तो ज़िन्दगी भर पेंशन पेलता है । हमने तो चालीस बरस नौकरी की है ईमानदारी से ।



तोताराम ने हमें टोकते हुए कहा- मैं जनसेवकों की बात नहीं कर रहा हूँ । इन्हें कौन नहीं जानता । ये सब तो मौसेरे भाई हैं । न किसी लम्पट नेता को आज तक फाँसी हुई है और न ही होगी । जेतली जी ने मोदी जी के शादीशुदा होने के मुद्दे पर कांग्रेस के हल्ला मचाने पर कहा नहीं था, कि राजनीति का एक अघोषित एजेंडा होता है । यह अघोषित एजेंडा क्या है ? यही तो मौसेरा भ्रातृत्त्व है । मैं तो मुकेश अम्बानी की बात कर रहा हूँ । बन्दे का जिगरा देखा, चाहता तो सारा मुनाफ़ा अपनी तनख्वाह में जोड़ लेता लेकिन पाँच साल से उसी तनख्वाह पर काम कर रहा है । डी.ए. तो डी.ए., इन्क्रीमेंट तक नहीं लिया । है कोई ऐसा सादगी पसन्द और मितव्ययी ?

हमने हाथ जोड़ते हुए कहा- नहीं, भैया नहीं । उलटे, बेचारे ने खुद ही घटाकर अपनी तनख्वाह ३९ करोड़ से मात्र पंद्रह करोड़ वार्षिक कर ली है । पता नहीं, कैसे काम चलता होगा बेचारे का ?


तोताराम भी कौन सा कम है, उसी सुर में बोला- मैं सब समझता हूँ तेरा व्यंग्य । लेकिन तू यह क्यों नहीं सोचता कि उसे इसमें कितने बड़े-बड़े खर्चे मेंटेन करने पड़ते हैं । कभी पत्नी को चार सौ करोड़ की नाव, कभी दो सौ करोड़ का पत्नी का पचासवाँ जन्म-दिन, जब भी कहीं जाना हो तो हवाई जहाज में तेल भरवाना, एंटीलिया का सालाना पाँच करोड़ का बिजली का बिल, और तिस पर इतने बड़े मकान का झाड़ू-पोचा । तेरी तरह थोड़े है कि एक ही हवाई चप्पल को पूरे साल फटकारता रहे, दो कुरते-पायजामे में दो साल निकाल दे । कहने को भारत का सबसे धनी व्यक्ति है लेकिन काम चलाता है केवल १५ करोड़ सालाना में ।

हमने कहा- बन्धु, तुमने जो हिसाब बताया है उससे हमारा दिल वास्तव में भर आया है इसलिए तू भी क्या याद करेगा । जा, जब तक सरकार मुकेश अम्बानी की गैस के दाम नहीं बढ़ाती तब तक हम इस बार का डी.ए. मुकेश राहत कोष में देने का वादा करते हैं ।


८ जून २०१४


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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