तोताराम का मंथन
होली के दिन चुनाव परिणाम सुनने के बाद तोताराम आज पहली बार आया है |तोताराम की इतने दिन की अनुपस्थिति के बारे में हमें कोई शिकायत नहीं क्योंकि जाते-जाते सर्दी ने एक झटका और दे दिया है |हम खुद जुकाम और हलके बुखार में उलझे रजाई में घुसे पड़े हैं |हो सकता वह भी बचाव की मुद्रा में घर बैठा हुआ था |वैसे भी ये कुछ दिन एहतियात बरतने के ही है |चुनाव भले ही उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में हुए हों लेकिन आजकल लोग गाँव-गली-मोहल्ले के न होकर सीधे-सीधे राष्ट्रीय हो गए हैं |भले ही पड़ोसी के बीमार होने या मरने की खैर-खबर न हो लेकिन भाजपा और कांग्रेस की हार-जीत को लेकर मरने-मारने को उतारू हो जाते हैं |और ऐसे में होली का दिन ऊपर से- मर्कटस्य सुरापानं ....वाला मामला | क्या पता, चुनाव नहीं तो होली के बहाने से हो कोई उत्साही कार्यकर्ता खुन्नस निकाल ले और रंग के बहाने तेज़ाब फेंक जाए |देखिए, ना आगरा में जीत से उत्साहित नेता जी के बेटे ने पुलिस पर हमला कर दिया |
जीत की ख़ुशी और हार की खीझ दोनों ही बहुत खतरनाक होती हैं |दोनों में ही आदमी का दिमाग खराब हो जाता है जैसे कि फागुन में भडुए, ठलुए और जनम के कुँवारे कार्यकर्त्ताओं का |
आज तोताराम आया तो बोला- आ जा बाहर, अब कोई खतरा नहीं है |उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के बल पर और गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी न होते हुए भी सरकारें बन गईं |जीत के जश्न ख़त्म हुए |अब फिर आधे पेट उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचने के लिए शौचालय के निर्माण में जुटना है |
हमने कहा- तुझे सोचना है तो जा पहले शौचालय हो आ |
बोला- नहीं, आज तो मुझे मंथन करना है |
हमने कहा- तो फिर दही और बिलोवना कहाँ है ?
बोला- बिलोवना बातों का और दही परिणामों का |यह चुनावों के परिणामों का मंथन है जो हर जीत और हार के बाद हर पार्टी करती ही है |
हमने कहा- जो होना था सो हो चुका |अब तो गई बात अगले पाँच साल पर |और जीतने वाले को मंथन की क्या ज़रूरत है ?विकास की मेहंदी बाँटो, हाथ पीले करो और अगले चुनाव के लिए संसाधनों की व्यवस्था करो |हारने वाले को भी पाँच साल इंतज़ार करना ही पड़ेगा |
बोला- जब अपनी उम्मीद से ज्यादा वोट मिल जाते हैं तब भी मंथन की ज़रूरत पड़ती है कि यह हुआ कैसे ?
बोला- इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है |जनता को नोटबंदी वाला कार्यक्रम इतना पसंद आया कि सबने जमकर वोट दे दिए |
हमने कहा- हो सकता है जनता ने यह सोचा हो कि दे दो भैया इसीको सारे वोट |नहीं तो क्या पता, विकास के लिए और काले धन के नाम पर फिर से नोटबंदी न कर दे |
हमने कहा- हमें तो लगता है कहीं बंदा यह न समझले कि इस देश में नोटबंदी से ही वोट मिलते हैं और उत्साहित होकर हर साल नोटबंदी करना शुरू कर दिया तो ?वैसे नोटबंदी से हमारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा |अपने पास कौनसा काला धन है या व्यापार-धंधा |पर हमें तो लगता है कि सरकार नोटबंदी के हल्ले में हमारा सातवाँ पे कमीशन खा गई है |तू तो इस बात का मंथन कर कि सरकार सातवाँ पे कमीशन देगी या माँगने वालों का विकास और देशभक्ति की आड़ में मुँह बंद कर देगी |
होली के दिन चुनाव परिणाम सुनने के बाद तोताराम आज पहली बार आया है |तोताराम की इतने दिन की अनुपस्थिति के बारे में हमें कोई शिकायत नहीं क्योंकि जाते-जाते सर्दी ने एक झटका और दे दिया है |हम खुद जुकाम और हलके बुखार में उलझे रजाई में घुसे पड़े हैं |हो सकता वह भी बचाव की मुद्रा में घर बैठा हुआ था |वैसे भी ये कुछ दिन एहतियात बरतने के ही है |चुनाव भले ही उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में हुए हों लेकिन आजकल लोग गाँव-गली-मोहल्ले के न होकर सीधे-सीधे राष्ट्रीय हो गए हैं |भले ही पड़ोसी के बीमार होने या मरने की खैर-खबर न हो लेकिन भाजपा और कांग्रेस की हार-जीत को लेकर मरने-मारने को उतारू हो जाते हैं |और ऐसे में होली का दिन ऊपर से- मर्कटस्य सुरापानं ....वाला मामला | क्या पता, चुनाव नहीं तो होली के बहाने से हो कोई उत्साही कार्यकर्ता खुन्नस निकाल ले और रंग के बहाने तेज़ाब फेंक जाए |देखिए, ना आगरा में जीत से उत्साहित नेता जी के बेटे ने पुलिस पर हमला कर दिया |
जीत की ख़ुशी और हार की खीझ दोनों ही बहुत खतरनाक होती हैं |दोनों में ही आदमी का दिमाग खराब हो जाता है जैसे कि फागुन में भडुए, ठलुए और जनम के कुँवारे कार्यकर्त्ताओं का |
आज तोताराम आया तो बोला- आ जा बाहर, अब कोई खतरा नहीं है |उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के बल पर और गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी न होते हुए भी सरकारें बन गईं |जीत के जश्न ख़त्म हुए |अब फिर आधे पेट उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचने के लिए शौचालय के निर्माण में जुटना है |
हमने कहा- तुझे सोचना है तो जा पहले शौचालय हो आ |
बोला- नहीं, आज तो मुझे मंथन करना है |
हमने कहा- तो फिर दही और बिलोवना कहाँ है ?
बोला- बिलोवना बातों का और दही परिणामों का |यह चुनावों के परिणामों का मंथन है जो हर जीत और हार के बाद हर पार्टी करती ही है |
हमने कहा- जो होना था सो हो चुका |अब तो गई बात अगले पाँच साल पर |और जीतने वाले को मंथन की क्या ज़रूरत है ?विकास की मेहंदी बाँटो, हाथ पीले करो और अगले चुनाव के लिए संसाधनों की व्यवस्था करो |हारने वाले को भी पाँच साल इंतज़ार करना ही पड़ेगा |
बोला- जब अपनी उम्मीद से ज्यादा वोट मिल जाते हैं तब भी मंथन की ज़रूरत पड़ती है कि यह हुआ कैसे ?
बोला- इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है |जनता को नोटबंदी वाला कार्यक्रम इतना पसंद आया कि सबने जमकर वोट दे दिए |
हमने कहा- हो सकता है जनता ने यह सोचा हो कि दे दो भैया इसीको सारे वोट |नहीं तो क्या पता, विकास के लिए और काले धन के नाम पर फिर से नोटबंदी न कर दे |
हमने कहा- हमें तो लगता है कहीं बंदा यह न समझले कि इस देश में नोटबंदी से ही वोट मिलते हैं और उत्साहित होकर हर साल नोटबंदी करना शुरू कर दिया तो ?वैसे नोटबंदी से हमारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा |अपने पास कौनसा काला धन है या व्यापार-धंधा |पर हमें तो लगता है कि सरकार नोटबंदी के हल्ले में हमारा सातवाँ पे कमीशन खा गई है |तू तो इस बात का मंथन कर कि सरकार सातवाँ पे कमीशन देगी या माँगने वालों का विकास और देशभक्ति की आड़ में मुँह बंद कर देगी |
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