Feb 25, 2017

 तोते का धर्म 

आज जैसे ही तोताराम आया हमने पूछा- तोताराम, तोते का धर्म क्या होता है ?

बोला- जो चाय पिलाने वाले का धर्म होता है वही उसके यहाँ चाय पीने वाले तोताराम का होता है |

हमने कहा- हम मास्टर तोताराम की बात नहीं कर रहे हैं |हम तोता नाम के पक्षी की बात कर रहे हैं |

कहने लगा- पशु-पक्षी का क्या धर्म ? रोटी-पानी का क्या मज़हब ? सूरज-चाँद और धरती का क्या रिलीजन ? जिस भी नाम से चाहो पुकार लो |

हमने कहा- तो फिर मुहावरे में 'अपने मुँह मियाँ मिट् ठू  बनना' में मियाँ ही क्यों कहा गया है ? 'अपने मुँह पंडित मिट् ठू   बनना' क्यों नहीं कहा गया | 

बोला- किसी और की प्रशंसा करने में लोग हमेशा से ही कंजूस रहे हैं इसलिए आदमी को बेशर्म होकर खुद ही खुद की बड़ी करना पड़ती है |

'लेकिन अपनी प्रशंसा करने से कोई मुसलमान हो जाता है क्या, हमने कहा |

बोला- तेरे  'अपने मुँह मियाँ मिट् ठू बनने'  का उदाहरण सुनकर तो लगता है-हो सकता है हो जाता हो मुसलमान | तभी तो शुद्ध राष्ट्रीय हिन्दू सीधे-सीधे अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करते |वे राम-कृष्ण के बहाने से अपनी प्रशंसा करते हैं |

हमने पूछा- जैसे ? 

तोताराम ने उत्तर दिया- जैसे, मोदी जी और राजनाथ जी |एक राम की तरह कह रहे हैं- चौदह वर्ष से बनवास भोग रहे हैं | हे उत्तर प्रदेश वालो,  अब तो गद्दी दे दो | उन्हें पता नहीं है कि राम को जनता ने भगाया नहीं था बल्कि राम खुद ही वनवास जाना चाहते थे रावण को मारने |और ये चौदह वर्ष कहीं नहीं गए |घर के पिछवाड़े छुपे रहे कि कब चौदह वर्ष पूरे हों और फ़टाफ़ट गद्दी पर विराजमान हों |राम के नाम पर गद्दी माँगते हैं और राम के लिए एक बेड रूम का फ्लेट भी नहीं |विभीषण ने जब देखा कि रावण रथ पर सवार है और राम पैदल, तो बोला- आप भी रथ पर सवार हो जाइए |राम ने कहा- विभीषण जिस रथ से विजय प्राप्त होती है वह धर्म का रथ होता है |और फिर राम ने उस रथ का पूरा रूपक स्पष्ट किया |इस प्रकार बहाने से उन्होंने विभीषण को रजा के धर्म का उपदेश दिया |और ये तो ज़मीन पर पाँव ही नहीं रखते |राम पग-पग वन में भटके और ये राम के नाम पर करोड़ों रुपए की सर्व सुविधायुक्त लक्ज़री बस को रथ बना कर चलते हैं |

हमने कहा- और मोदी जी जो रणछोड़ बनकर द्वारिका चले गए थे अब फिर उत्तर प्रदेश लौटे हैं कि उग्रसेन उन्हें गोद ले लें तो वे नरक में पड़े उत्तर प्रदेश का उद्धार करें |उनके बारे में भी कुछ बता दे |

बोला- बताना क्या है ? कृष्ण का इतिहास कौन नहीं जानता | चाहते तो मथुरा का राज्य ले सकते थे लेकिन नहीं अपने नाना उग्रसेन को ही सँभला दिया |द्वारिका गए चले गए |फिर मथुरा नहीं लौटे |लौटे तो महाभारत में पांडवों की सहायता के लिए न कि कहीं का राज्य कबाड़ने के लिए |राज्य के लिए किसी के गोद जाने का नाटक कृष्ण का काम नहीं हो सकता |वे तो महाभारत के युद्ध के बाद भी तो सब कुछ पांडवों के लिए छोड़ गए थे |और लोग हैं कि उनके नाम पर फिर मक्खन खानाऔर रास रचाना चाहते हैं |

राम और कृष्ण बनने की लालसा करना बहुत आसान है लेकिन उनकी तरह जीवन भर भटकने की हिम्मत और त्याग किसी में नहीं है |इसलिए अपने मुँह कितने ही राम कृष्ण बन लो कोई मानने वाला  नहीं | सब वही 'अपने मुँह मियाँ मिट् ठू' ही समझेंगे |



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