Aug 25, 2017

विकास-मुक्त भारत

 विकास-मुक्त भारत

आज फिर तोताराम हाज़िर |वही उत्सवी सज-धज |चलता-फिरता राष्ट्र और संस्कृति मंत्रालय |

हमने पूछा-आज क्या कार्यक्रम है उत्साही लाल ?

बोला- वही कल वाला कार्यक्रम, एक और संकल्प |

हमने कहा- बन्धु, हम सब घर-गृहस्थी वाले लोग हैं | सुबह-सवेरे चाय के साथ अखबार चबा लें, वहाँ तक तो ठीक है | सुबह-सवेरे सब को जल्दी रहती है, किसी को ड्यूटी तो किसी को स्कूल जाना होता है |इसलिए रोज-रोज ऐसे नाटक अजीब लगते हैं | जिन्हें अगले दस-बीस साल सत्ता में रहने का लालच है, जिन्हें जनता को बहलाए रखना है और कुछ करते हुए नज़र आना है उनकी तो मजबूरी है |उन्हें तो ऐसे नाटक करने ही पड़ेंगे | अब हम निदेशक मंडल में पहुँच चुके लोग हैं | हमें अब अडवानी जी की तरह शांत रहना चाहिए | यदि कोई ज्यादा ही पीछे पड़ जाए तो नामांकन-जुलूस में शामिल होने की औपचारिकता निभा देना चाहिए, बस |अब तू जल्दी-जल्दी बोल |हम तेरे पीछे फटाफट दोहरा देंगे |

तोताराम आगे-आगे बोला और हमने दोहरा दिया- हम सच्चे मन से भारत को विकास-मुक्त करने का संकल्प लेतें हैं |और तोताराम के पीछे जोर-जोर से तीन बार नारा लगाया- विकास भारत छोड़ो, विकास भारत छोड़ो, विकास भारत छोड़ो |

नारे लगाने के बाद जैसे ही साँस सामान्य हुई, हमें ख़याल आया- अरे, हमने यह क्या नारा लगा दिया, यह क्या संकल्प कर लिया |

हमने तोताराम को डांँटा- भले आदमी, हमसे यह क्या संकल्प करवा दिया |यदि भगवान ने स्वीकार कर लिया तो क्या होगा ? विकास के लिए ज़मीन आसमान एक कर रहे लोगों के मंसूबों का क्या होगा ? आज पहली बार कोई इस सिद्दत से विकास के कृतसंकल्प हुआ है |

बोला- जब सब संकल्प ले रहे हैं तो हमने भी ले लिया |वैसे इन नाटकों से कुछ नहीं होना-हवाना |इस देश के लोग १९४२ जैसे सीधे नहीं रहे | वे मौका देखकर नारे लगते हैं, मौका देखकर जय बोलते हैं, मौका देखकर पार्टी बदलते हैं | इस समय संकल्प में सिद्धि दीख रही है तो संकल्प ले रहे हैं |वैसे मन में हर क्षण सत्ता में बने रहने का विकल्प तैयार रहता है |

हमने कहा- फिर भी विकास हो जाए तो क्या बुरा है ? तुझे विकास से इतनी चिढ़ क्यों है ?

बोला- आजकल वह पहले वाला विकास नहीं रह गया |वह बहुत खतरनाक हो गया |आजकल वह महँगी कार में चलता है, रास्ते में बैठकर दोस्तों के साथ दारू पीता है, किसी भी लड़की का पीछा करता है, उसे छेड़ता है | कोई ठिकाना नहीं क्या कर बैठे |आजकल उसके डर के मरे लडकियाँ रात को घर से नहीं निकलतीं |नेता लोग भी कहते हैं कि लड़कियों को अपने आप को विकास से बचाने के लिए बुरका पहनना चाहिए और घर में ही रहना चाहिए |यह विकास जब आदिवासी इलाकों में या खेतों में पहुँच जाता है तो आदिवासी जंगल और किसान खेत छोड़कर या तो आत्महत्या कर लेते हैं या शहरों में रोटी-रोजी के लिए भिखारियों की तरह भटकते रहते हैं |

हमने कहा- तो फिर ठीक है तोताराम, ऐसे विकास से तो मुक्ति ठीक ही है |और नहीं तो किसान, आदिवासी और लड़कियाँ तो शांति से रह सकेंगे |



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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