Jun 12, 2025

2025-06-07 निर्जला बकरीद


 

2025-06-07   

 

निर्जला बकरीद  

 

आज दूध फट गया जैसे कि स्वार्थ सिद्धि न होने पर कोई भी छुटभैय्या नेता अपने दो विधायकों को लेकर अलग हो जाता है और लोकतंत्र पर संकट आ जाता है । लेकिन फट जाने के बाद दूध में वह बेशर्मी नहीँ कि फिर हीं-हीं करके आत्मा की आवाज की आड़ में अलग हुए छेने मिल जाए । तत्काल कोई विकल्प था सो जैसे ही  तोताराम आया पत्नी ने उसे कल शाम का बचा हुआ बील के शर्बत का एक गिलास दिया ।  

आदत के विपरीत तोताराम ने कहा- भाभी, कोई और दिन होता तो बात और थी लेकिन आज निर्जला एकादशी है इसलिए मैं जल ग्रहण नहीं कर सकता ।  

हमने बात का सिरा पकड़ा- देख तोताराम, हम मुसलमानों की तरह कट्टर नहीं हैं कि अगर रोजा रखा है तो दिन भर पानी की एक बूँद भी हलक से नीचे नहीं उतारेंगे । हमारा धरम बहुत उदार है । वैसे सिद्धि तो संकल्प से ही मिलती है लेकिन हमारे यहाँ हर चीज का विकल्प है । अगर हनुमान जी से काम नहीं निकलता तो शिव जी की पार्टी में चले जाते हैं । भोमियाँ जी से बात नहीं बनती तो गोगा पीर से सेटिंग कर लेते हैं । उपवास में भी हम चाय, बीड़ी, गुटका आदि को अलाऊ कर देते हैं तो यह पानी नहीं, बील का शर्बत है । बील शिव का प्रिय वृक्ष है । अगर कुछ हुआ तो भी वे तुम्हें उसी तरह बचा लेंगे जैसे सत्ताधारी पार्टी में मिल जाने पर आरोपी, अपराधी को सीबीआई, ईडी आदि से बचाने की जिम्मेदारी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की हो जाती है । इसलिए बील का शर्बत पीने से अगर कोई संकट आएगा तो तुझे नरक से बचाने की जिम्मेदारी शिव जी भगवान की है । जैसे किसी अपराधी नेता को उसके पक्ष में कोई जुलूस या रैली निकल जाने से बल मिल जाता है वैसे ही  हमारे इस तर्क से तोताराम को निर्जला एकादशी के दिन बील का शर्बत पीने का बहाना मिल गया ।  

इसके बाद हमने तोताराम को फटे हुए दूध में चीनी मिलाकर देते हुए कहा- चल, लगे हाथ यह कोरमा भी खाले ।  

तोताराम उछला, बोला-  यह क्या ? कोरमा ? अरे ये कोरमा, कबाब, बिरयानी आदि तो सब मुसलमानों के हिंसक व्यंजन हैं । मैं तो शुद्ध सनातनी ब्राह्मण हूँ । क्यों मेरा धर्म भ्रष्ट कर रहा है ।  

हमने कहा- भारत में मुसलमान तो 20 प्रतिशत है फिर जब सर्वे के अनुसार  70 प्रतिशत मांसाहारी हैं तो उसमें 30-40 प्रतिशत तो हिन्दू भी होंगे । और जब देश के सभी बूचड़खाने हिंदुओं के हैं तो तुझे किसका भय लगता है । वैसे डर मत यह फटे हुए दूध में चीनी मिलाई हुई है । शुद्ध शाकाहारी ।  

 

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कुछ संतों और नेताओं ने सुझाव भी दिया है कि मुसलमान बकरे के आकार का केक बनाकर काट लें जैसे कई शेफ लौकी का शाकाहारी  मुर्ग मुसल्लम बना देते हैं । जैसे कि किसी दुष्ट नेता का सिर न फोड़ सकने वाले भक्त उसका पुतला जलाकर गुस्सा निकाल लेते हैं ।  

हमने सोचा इस प्रकार हम निर्जला एकादशी और बकरीद एक साथ मना लेंगे- ‘निर्जला बकरीद’ ।  

बोला- ये सब बदमाशियाँ हैं । अरे जब मुर्ग मुसल्लम खाना है तो मुर्ग मुसल्लम खाओ । यह लौकी का मुर्ग मुसल्लम क्या होता है ? लेकिन याद रख इस प्रकार के नाटकों से तुम्हारी नीयत का पता चलता है और तुम्हें लौकी का मुर्ग मुसल्लम खाने से भी वास्तविक मुर्ग मुसल्लम खाने का पाप लगेगा क्योंकि तुम्हारे मन में मुर्ग मुसल्लम है । सारा खेल भावनाओं का ही तो है । जब तुम गोडसे की प्रशंसा करते हो तो तुम गाँधी की हत्या का पाप भी कर रहे होते हो ।   

हमने कहा- तुम्हारी इस बात में दम तो है लेकिन पहले हज यात्री काबा में कुरबानी देते थे । ऐसे में वहाँ हजारों जानवर काट काट कर फेंके जाते थे  । न कोई ढंग कि व्यवस्था, न उन काटे जानवरों का कोई विशेष सदुपयोग । सो वहाँ के समझादार व्यवस्थापकों ने उस कुरबानी के जानवर के बदले पैसे जमा करवाना शुरू कर दिया ।  

बोला- मास्टर, इस बात से मुझे एक आइडिया आया है कि भक्तों द्वारा बिना बात तीर्थस्थानों में जाकर भीड़ करने या भगदड़ में दबकर मरने से अच्छा है कि वे घर बैठे की ईश्वर या अल्लाह से सभी कामों के रेट पता कर लें  और फिर उस (ईश्वर-अल्लाह ) के खाते में ओन लाइन रकम जमा करवा दें । मरने के बाद अपने पैसों के हिसाब से जितनी बनती हों हूरें या अप्सराएं प्राप्त कर मजे करें । बिचौलियों का कोई झंझट ही नहीं ।  

हमने कहा- तोताराम, यह धंधा भगवान का नहीं बल्कि उसके नाम से एजेंसी खोले बैठे बदमाशों का है । उन्होंने भगवान का बैंक खाता भी हैक कर रखा है । नाम भगवान, गॉड, अल्लाह का लेकिन रकम इनकी जेब में ।  

इसलिए बस, मन साफ रख फिर किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं । रैदास ने ऐसे ही थोड़े कहा है- मन चंगा तो कठौती में गंगा ।    


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