Apr 9, 2018

तोताराम की शोभायात्रा

 तोताराम की शोभायात्रा 

अखबार में अक्सर तरह-तरह के विज्ञापनी पर्चे निकलते हैं |हालाँकि धंधे के अनुसार पर्चों की साइज़, आकार, छपाई और कागज कि किस्म आदि बदलते रहते हैं |ज्यादा बड़े धंधे वाले किसी अखबार का पहला पेज ही खरीद लेते हैं |उस स्थिति में बड़ी मुश्किल से पता चलता है कि  वास्तव में यह वही अखबार है जो हम हमेशा मँगवाते हैं या किसी संस्थान का विज्ञापनी मिसाइल |

छोटे पर्चे प्रायः किसी डिफेक्टिव कपड़ों-साड़ियों का निर्यात ऑर्डर निरस्त हो जाने से मजबूरी में लगाई जा रही सेल में के बारे में होते हैं जिनमें १००० रु. का माल १०० रु. में खरीद सकने के मौके का लाभ उठा सकने की खुशखबरी होती है |या फिर किसी लाल-पीली किताब या किसी देवी के भक्त द्वारा सौतन,प्रेम में धोखे, वशीकरण आदि से संबंधित किसी सभी समस्या के १० घंटे में,१०१ रुपए में शर्तिया चामत्कारिक समाधान की सूचना होती है |

आज एक छोटे से गुलाबी रंग के पर्चे पर बरबस हमारी निगाह ठहर गई |लिखा था- टी.
राम द्वारा आयोजित हनुमान शोभा यात्रा में भाग लेकर पुण्य-लाभ प्राप्त करें |इस सूचना में निवेदक के नाम 'टी.राम' ने भी हमें आकर्षित किया |लगा कोई दक्षिण भारतीय भक्त तो नहीं आ टपका | हालाँकि हनुमान दक्षिण में हुए लेकिन दक्षिण के बालाजी (विष्णु) प्रसिद्ध हैं |हनुमान तो उत्तर भारत के सर्वसुलभ देवता हैं |

हमारे यहाँ हनुमान जी को बालाजी भी कहते हैं |इसका कारण शायद यह हो कि हमारे यहाँ के भक्त हनुमान के उस बाल रूप को विशेष पसंद करते हों जिसमें उन्होंने उगते हुए सूर्य को निगल लिया था |इसीलिए वे उस बाल रूप को  'बालाजी' कहते हों |ऐसा ही कुछ बच्चन सरनेम के इतिहास में ध्वनित होता है |हो सकता है उस परिवार ने अपने किसी छोटे बच्चे को प्यार से बच्चन कहना शुरू कर दिया जो अब एक प्रसिद्ध सरनेम बन गया |बालरूप वाले हनुमान जी (बालाजी )  हमारे यहाँ विशेष प्रसिद्ध हैं |मीडिया के कारण लोगों ने तिरुपति के बालाजी का नाम भी सुन लिया लेकिन वे उसे अपने प्रिय बाल-रूप हनुमान जी (बालाजी) से आगे विष्णु जी तक नहीं ले जा सके |और कई लोगों ने तिरुपति बालाजी के नाम से हनुमान जी के मंदिर भी बना लिए है |जहाँ बिजली विभाग वालों के 'करंट के बालाजी' और अग्नि शमन विभाग के 'दमकल वाले बालाजी' हो सकते हैं तो तिरुपति नाम तो बालाजी के अतिरिक्त और भी कई कारज सिद्ध कर सकते हैं |

जिस मार्ग के यात्रा गुजरनी थी उसमें हमारी गली का भी नाम है | हमारी गली इस बारे में बहुत रणनीतिक बिंदु पर है जैसे मध्य-पूर्व के कई छोटे-छोटे देश |क्योंकि जयपुर रोड़ यहाँ से कोई दो-सौ मीटर की दूरी पर ही है |सालासर, जीणमाता और खाटू वाले श्याम जी जाने वालों की कई प्रकार की  यात्राएँ धरती हिलाती, ध्वजाएँ फहराती और फुल वोल्यूम पर डी.जे. की आवाज़ से आसमान थर्राती हुईं यहीं से गुजरती हैं |इन्हें रोकना या धर्मप्राण लोगों को अपना डी.जे. धीमे स्वर में करने के लिए कह सकने का साहस हम में नहीं है |इस मजबूरी में हमें न चाहते हुए भी पुण्य-लाभ हो जाता है |

कम या ज्यादा धूमधाम से यात्राएँ हमेशा ही निकलती रही हैं |आजकल यात्राएँ कुछ ज्यादा ही धूमधाम से निकलने लगी हैं |अब तो इन यात्राओं में हथियारों का प्रदर्शन भी होने लगा है |लगता है किसी दंगाग्रस्त क्षेत्र में सेना का फ्लेग मार्च हो रहा हो या कोई सेना अपने प्राणों को हथेली पर रखे किसी बहुत बड़े शत्रु से अंतिम युद्ध लड़ने जा रही हो |उनका तो पता नहीं लेकिन दर्शकों के प्राण ज़रूर हलक में आ अटकते हैं |पता नहीं, कब शौर्य का विस्फोट हो जाए और सामान्य जन लपेट में आ जाएँ |यात्राएँ गुजरने पर लगता है कोई भीषण तूफ़ान कोई बड़ा नुकसान किए बगैर गुज़र गया हो |

हनुमान जी हमारे प्रिय देवता हैं |इसलिए कि वे शांत चित्त से भगवान राम के चरणों में भक्ति भाव से सिर झुकाए बैठे रहते हैं |लगता है वे अपने आराध्य की आज्ञा का इंतज़ार कर रहे हैं |आज्ञा हो और वे अपनी गदा उठाकर चल पड़ें- वायुवेग से |कहीं भी गदा का आतंक नहीं |संजीविनी बूटी लाते हुए भी गदा का कहीं भद्दा प्रदर्शन नहीं |एक आवश्यक वस्तु की तरह अपने साथ |

पर्चे में दिया गया समय हो गया लेकिन कहीं डी.जे. के आतंक की भनक तक नहीं |ऐसे में हमें जुलूस के शालीन होने का विश्वास हो गया तो हम दरवाजे पर जा खड़े हुए |तभी देखा उत्तर दिशा से तीन लोगों का एक मरियल-सा जुलूस, मद्धम आवाज़ में- 'हनुमान जी की जय' बोलता हुआ गली के किनारे पर दिखाई दिया |पास आने पर देखा, न कोई हथियार, न कोई एक दो किलोमीटर की ध्वजा या लंगोट, न कोई छोटी-बड़ी गदा, न डी.जे. |हमें लगा जैसे किसीने हमारी धार्मिक भावना, आस्था और श्रद्धा का मज़ाक उड़ाया हो | 

पास आने पर देखा, तोताराम इस यात्रा का नेतृत्त्व कर रहा है | 

हमने कहा- यह क्या तोताराम |महावीर के नाम को लजा दिया तूने |महावीर का जुलूस और इतना शांत और छोटा ? न गदा, न असुरों की छाती को दहला देने वाले नारे और गर्जना |

बोला- भाईजान, हनुमान वीरता, भक्ति, शांति और अनुशासन के देवता हैं |वे किसी टुच्चे और अहंकारी की तरह अपने हथियारों और बल का प्रदर्शन नहीं करते |कहते हैं, उन्हें तो अपना बल तक याद नहीं रहता |जब कोई संकट आता तब लोग उन्हें पाना बल याद दिलाते हैं | और वे भक्तों का भय-भंजन करने के लिए हुंकार भरकर उठ खड़े होते हैं | अब देश पर कौनसा संकट आ रहा है या धर्म की हानि का भय है जो धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने के लिए बल-प्रदर्शन करें |अब तो देश के विकास के लिए अनुशासन और शांति से कर्म करने का समय है |मेरी यह हनुमान-यात्रा शुद्ध भक्ति से प्रेरित है |बस, जयपुर रोड़ वाले हनुमान को नारियल का प्रसाद चढ़ाकर लौट आएँगे |मुझे कौनसा चुनाव जीतने के लिए लंगोट घुमाना है | 

हमने कहा- ठीक है तोताराम, लेकिन यह भी सच है कि त्रिशूल के बिना शिव, सुदर्शन चक्र के बिना विष्णु, गदा के बिना हनुमान कुछ जँचते नहीं |कई बार तो पता भी नहीं चलता कि यह कोई सामान्य भिखमंगा या बन्दर है या वास्तव में हमारा आराध्य |

बोला- ये तो दुष्ट-दलन के उनके विग्रह हैं |लेकिन वास्तव में देवता तो सुख-शांति के लिए होते हैं |हथियार तो किसी संकट विशेष के निवारण के लिए होते हैं |आज जब देश में सुख शांति है तो देवताओं के भाव की आराधना होनी चाहिए न कि उनके बहाने अपने हथियारों और विनाशक रूप का आंतक फ़ैलाने की | द्रौपदी की लाज बचाने वाले, गज के उद्धार के लिए नंगे पाँव दौड़ पड़ने वाले, शबरी के बेर खाने वाले विग्रह क्या किसी हथियारबंद युद्धोत्सुक भगवान के हैं |हनुमान का क्या हर समय गदा ही भाँजते रहते हैं ? 
उनके परम भक्त तुलसी कहते हैं-
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा |

हमने कहा- तो फिर बंगाल में यह क्या हो रहा है ? वहाँ उत्पात मचाने के लिए हनुमान जी को कौन ले गया ? वहाँ तो दुर्गा पूजा का उत्सव सभी भाषाभाषी प्रेम से मनाते रहे हैं |जब समस्त देवों पर संकट आया था और कोई रास्ता नहीं बचा था तो सबके सम्मिलित तपबल से दुर्गा का आविर्भाव हुआ |अब बंगाल पर कौनसा संकट आगया जो दुर्गा के वश का नहीं रहा |हनुमान की  क्या ज़रूरत आ पड़ी ?और फिर हनुमना तो कहीं भी न व्यर्थ हुंकार और गर्जना करते हैं और न ही गुस्सा |लंकाकांड में देखा नहीं,रावण को कितनी शालीनता से समझाते हैं |और फिर आज तो देश में लोकतंत्र है फिर क्या संवाद का कोई रास्ता ही नहीं बचा था जो हनुमान जी को वहाँ गदा भाँजने के लिए भेज दिया |


बोला- मुझे तो लगता है बंगाल में हनुमान जी गए ही नहीं |हो सकता है शाखाओं से उतरकर कुछ फितरती बन्दर वहाँ पहुँच गए हैं |

हमने कहा- हो सकता है यह काम कुछ फितरती बंदरों का हो लेकिन नाम तो राम का बदनाम हो रहा है |

बोला- स्वार्थी को राम की नहीं, अपनी स्वार्थ सिद्धि की फ़िक्र होती है |चिलम पीने वाले चालाक लोग अपने नशे को शिव-भक्ति के एक कर्मकांड में शामिल कर लेते हैं |


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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