Feb 21, 2019

उनका पचपन, इनका पचपन और हमारा बचपन



उनका पचपन, इनका पचपन और हमारा बचपन 

आज तोताराम ने आते ही पूछा- सुना, मोदी जी का भाषण ?

हमने कहा- हमारे पास टी.वी. नहीं है | रेडियो के सेल ख़त्म हो गए हैं | और फिर हम कौनसा लोकसभा चुनाव के टिकटार्थी हैं या स्कूल के मास्टर जो 'मन की बात' सुनने और उसका प्रमाण प्रस्तुत करने को बाध्य हैं | यदि पे कमीशन के एरियर की घोषणा कर दी हो तो बता दे | इस शुभ समाचार के पुरस्कार स्वरूप चाय के साथ पकौड़े भी खिला देंगे  |

बोला- हर समय एरियर-एरियर |कभी देश के बारे में भी सोचा कर |मोदी जी ने पूरा खाका खींचकर रख दिया कि किस तरह उनके पचपन महिने कांग्रेस के पचपन साल से बेहतर रहे |

हमने कहा- बन्धु, हमारे पिताजी ने पचास की उम्र में वानप्रस्थ ले लिया था |चाचाजी पचपन साल की उम्र में रिटायर हो गए थे |बड़ी मुश्किल से रिटायर होने की उम्र अठावन, फिर साठ और अब कुछ नौकरियों में बासठ और पैंसठ हुई है |एक बड़ी प्रसिद्ध सिगरेट हुआ करती थी-५५५ | शायद उससे फेफड़े मज़बूत होते हों | एक बच्चों की दवा हुआ करती थी मुगली घुट्टी ५५५ | कपड़े धोने का एक पाउडर भीआता है ५५५ | अब पचपन हो या पाँच सौ पचपन | पचपन साल हों या पचपन महिने या कि पचपन दिन; सब उन्हीं के हैं |हमसे तो यह धरती पिछले सतत्तर साल में हिली नहीं |दाढ़ी की क्या हैसियत ? उसे तो हर हाल में मूँछों के नीचे ही रहना है |सच पूछो तो यह हमारा बचपन है कि इनके-उनके पचपन में उलझे रहते हैं |

बोला- जैसे कहावत है- 'आसार कह रहे हैं, इमारत बुलंद थी' वैसे ही जो नींव मोदी जी ने रखी है उस पर बनने वाली इमारत की भव्यता का तो अनुमान लगा |

हमने कहा- अनुमान से पेट नहीं भरता | हम तो फटाफट में विश्वास करते हैं |अब हमारे पास पचपन महिने तो क्या पचपन दिन का भी धैर्य नहीं है | जिसको कुछ करना होता है पचपन मिनट भी नहीं लगाता |ट्रंप ने आते ही मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने की घोषणा कर दी |पैसे कम पड़े तो कई ज़रूरी काम रोक दिए |शपथ ग्रहण के बाद रजिस्टर में हस्ताक्षर करते ही पेन भी बंद नहीं किया |वैसे ही खुला का खुला लिए हुए व्हाईट हाउस में जाकर ओबामा केयर  को केंसिल किया |इसे कहते हैं काम करना |
भिश्ती ने एक दिन का बादशाह बनते ही चमड़े के सिक्के चला दिए कि नहीं ? 

बोला- क्या किया जाए इस देश में लोकतंत्र के चलते विकास की गति बाधित होती है फिर भी नोटबंदी की या नहीं ? अब एक टर्म और मिला तो इस भव्य नींव पर इमारत भी खड़ी हो ही जाएगी |

हमने कहा- तोताराम, जिस तरह क़र्ज़ माफी, आरक्षण और बेरोजगारी-पेंशन आदि के झाँसे देकर चुनाव जीते जा रहे हैं उसे देखते हुए अब कोई भी कुछ नहीं कर सकेगा फिर चाहे पचपन साल वाले हों या पचपन महिने वाले हों |















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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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