Feb 18, 2019

उत्तरायण दक्षिणायन

उत्तरायण-दक्षिणायन 


चूँकि हम बंगलुरु में हैं और तोताराम के पास यहाँ चाय पीने के लिए आने की कोई व्यवस्था नहीं है |यदि उसके पास व्यक्तिगत हवाई जहाज होता तो कोई आश्चर्य नहीं कि वह यहाँ भी चाय पीने के लिए आ धमकता | एक दो दिन तो सोचा- चलो, रोजाना की परनिंदा से पीछा छूटा |कुछ दिन शांति से भगवान को याद करेंगे |लेकिन भगवान भी आदमी को दुःख में ही याद आते हैं | ज़रा-सा सुख मिला नहीं कि फिर वही छल-छंद चालू |

अपने देश में याद करते ही सामने वाले के पास आत्मिक समाचार पँहुच जाने की ज़बरदस्त तकनीक है |सो हमारे सोचते ही फोन की घंटी बजी, आवाज़ तोताराम की थी, बोला- मास्टर, गुड मोर्निंग |लगता है बरामदे में बैठा चाय पी रहा है | तेरे वहाँ तो सूर्य उत्तरायण हो गया लेकिन यहाँ तो सूरज का ही पता नहीं है |उत्तरायण-दक्षिणायन की क्या कही जाए ? 

हमने कहा- इस दुनिया में एक ही सूरज है और वह अपने नियमों के अनुसार उत्तरायण-दक्षिणायन होता रहता है |

बोला- नहीं, ऐसी बात नहीं है |मैंने आज ही सुना है कि बेंगलुरु में सूर्य उत्तरायण हो गया |वहाँ हर संसदीय क्षेत्र में लोगों के मन की बात जानने के लिए 'भारत के मन की बात' नामक रथ घूमने लगे हैं |लोग उन रथों में बैठे जन-सेवकों को अपने मन की बात बता सकेंगे | उसी के आधार पर पार्टी अपना चुनाव घोषणा-पत्र तैयार करेगी | हो सकता है मन की बात के साथ-साथ उनसे अपने प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाएँ | यहाँ तो अभी मौसम और जन-मन की बात दोनों के मामले में दक्षिणायन ही चल रहा है | हो सके तो तू उन रथ वालों के पास जाकर केवल एक शब्द कहना- पे कमीशन | वे कहें -हाउदू,  तो मुझे तत्काल फोन कर देना | 'इल्ला' कहें तो फोन के पैसे बेकार करने की ज़रूरत नहीं है | 

हमने कहा- उतावला मत हो |जल्दी ही सीकर में मिल लेना, ऐसे ही किसी 'देश के मन की बात' वाले रथ से और जन सेवकों से जान लेना सभी प्रश्नों के उत्तर |अब मई तक देश में ये ही नहीं, और भी कई तरह के रथ ही रथ घूमेंगे |वह बात अलग है कि उसके बाद जनता पथ-पथ में इन्हें ढूँढ़ती फिरेगी |और फिर यदि ज्यादा ही जल्दी है तो मानवता के सभी प्रश्नों का उत्तर दे सकने में समर्थ 'उत्तर प्रदेश' कौन-सा दूर है ? जा और जान ले आत्मा से लेकर परमात्मा तक के सभी प्रश्नों के उत्तर |

बोला- बन्धु, वहाँ तो हालत बहुत खराब है | कैसे उत्तर ? सभी प्रश्नों पर शीत-लहर की ठिठुरन पड़ी हुई है |

हमने कहा- लेकिन डरने की क्या बात है ? अब भी देश-दुनिया के भक्त, गंगा की गन्दगी से बेखबर, आस्था के बल पर, संगम में डुबकी लगा ही रहे हैं और अपने-अपने पाप बहा ही रहे हैं |तू भी लगा दे एक डुबकी |या तो इस पार या उस पार |या तो मोक्ष या अमित शाह की तरह 'वराह ज्वर' | 

बोला- ठीक है, अभी तो नहीं |लेकिन तू आ जा |इस बारे में भी विचार करेंगे |तब तक शायद यह ठिठुरन भी कम हो जाएगी और तरह-तरह के अखाड़ों की अखाड़ेबाजी भी |
हमने कहा- इस देश में अखाड़ेबाजी कभी कम नहीं हो सकती जैसे कि हर मौसम चुनावों का मौसम होता है | कभी लोकसभा, कभी विधान सभा तो कभी नगर निकाय |और कुछ भी नहीं छात्र संघों के चुनाव ही सही |





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