Jul 6, 2019

वचने भी दरिद्रता



 वचने भी दरिद्रता 


चाय का कप उठाते हुए तोताराम ने कहा- मास्टर, इस देश की संस्कृति वास्तव में बहुत दोमुँही और ढोंगी है |

हमें बड़ा आश्चर्य हुआ |जब सारी दुनिया इस देश की महान संस्कृति के गुण गा रही है, दुनिया में देश का मान-सम्मान अचानक सेंसेक्स की तरह उछल रहा है तब ऐसी विवादी बकवास और वह भी अपने को गर्व से हिन्दू कहने वाले तोताराम के मुँह से |

हमें हार्दिक पटेल नहीं हार्दिक कष्ट हुआ, पूछा- प्रिय तोताराम, इस निराशा का कारण ?

बोला- एक तरफ तो हम कहते हैं- वचने किम दरिद्रता और दूसरी तरफ देश के प्रथम नागरिक, महामहिम राष्ट्रपति जी को संसद में बड़ी मेहनत से तैयार किए और बड़े शालीन ढंग से पढ़े गए उनके अभिभाषण पर धन्यवाद देने के लिए इतनी औपचारिकता और कंजूसी ! आश्चर्य है |

हमने कहा- तोताराम, तुम समझते नहीं हो |यह मात्र धन्यवाद का मामला नहीं है |यदि ऐसा होता तो किसी भी बात के लिए किसी को भी धन्यवाद देने वाले, हर किसी दिवस की फटाफट शुभकामनाएं देने वाले हम ढपोरशंखी वाग्वीर एक मिनट नहीं लगाते धन्यवाद देने में |लेकिन ऐसे मौकों पर धन्यवाद मात्र औपचारिक नहीं होता |ऐसे मामलों में धन्यवाद बहुत सोच-समझकर देना होता है सौ बार ठोक-बजाकर |सत्ता पक्ष का नेता अभिभाषण को अलौकिक, अद्भुत और अनुपम सिद्ध करना चाहता है और विपक्षी उसे दो कौड़ी का |

बोला- जब मन में इतने पूर्वाग्रह और कटुताएं हैं तो फिर संसद में दिखावे के लिए प्रेम, मानवता, लोकतंत्र और शालीनता की बातें करने का ढोंग करने की क्या ज़रूरत है ?

हमने कहा- तोताराम, राजनीति में कोई स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता |सब जानते हैं कि कुर्सी प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के लिए पता नहीं कब किस मौसेरे भाई  से मदद लेनी पड़ जाए |इसलिए सेवा का अवसर पाने के संघर्ष में कभी भी इतना नहीं डूब जाना चाहिए कि गठबंधन की सभी संभावनाएं समाप्त हो जाएं |फिर भी यदि तुम्हें कहीं, किसी प्रकार की कुछ अमर्यादा जैसा कुछ लगा हो तो उसे भ्रम मनाकर भुला दे |फिर भी बता तो सही कि तुझे किस बात से लगा कि हमारी संस्कृति में वचनों में दरिद्रता आ गई है |

बोला- मेरा रोना अपने लिए नहीं है |और फिर माननीयों के इस देश में मेरे जैसे एक सामान्य आदमी की क्या औकात और क्या उसका सम्मान |मैं तो मोदी जी के कथन पर विचार कर रहा था |उन्होंने राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए संसद में कहा कि कांग्रेस नेहरू-गाँधी परिवार के अतिरिक्त किसी और की प्रशंसा नहीं करती फिर चाहे वे नरसिंह राव हों या मनमोहन सिंह ही क्यों न हों |

हमने कहा- वैसे तुझे और मोदी जी को याद दिला दें कि नेहरू जी ने कई विदेशी मेहमानों के सामने अटल जी की प्रशंसा की थी |फिर भी आज के सन्दर्भ में इस बात में कुछ तो दम है |जब कांग्रेस ने अपने वालों की ही प्रशंसा नहीं की तो मोदी जी की प्रशंसा करने का तो सवाल ही नहीं उठता |वैसे ऐसा नहीं होना चाहिए |जब मोदी जी को केवल पांच साल के कार्यकाल में ही मालदीव, दक्षिणी कोरिया जैसे बड़े-बड़े देशों के सर्वोच्च सम्मान मिल चुके हैं तो कांग्रेस को कम से कम मोदी जी को बधाई तो देनी ही चाहिए |जबकि मोदी जी तो इमरजेंसी तक को 'राष्ट्रीय दिवस' घोषित करवाने में लगे हुए हैं |

बोला- और तो और मोदी जी कांग्रेस के शास्त्री जी और पटेल को कितना महत्त्व देते हैं ?
हमने कहा- वह तो गाँधी और नेहरू को कमतर दिखाने के लिए | यदि वास्तव में ऐसा नहीं है तो मुगलसराय का नाम बदलने का समय आया तो शास्त्री जी याद क्यों नहीं  आए ? और जहां तक लोकतंत्र में विचार भिन्नता को स्वीकृति देने की बात है तो उसकी आड़ में तो गोडसे तक को स्वीकृति प्रदान करने में संकोच नहीं है |

बोला- भले ही कांग्रेस अपनों तक को भुला दे लेकिन मोदी तो एक क्षण के लिए भी नेहरू-इंदिरा को नहीं भूल पाते हैं | 

हमने कहा- तोताराम, नाम स्मरण चाहे उल्टा हो या सीधा वह सिद्धि तक ज़रूर पहुंचता है |तभी कहा है-

उलटा नाम जपत जग जाना 
बालमीकि भये ब्रह्म समाना

 




 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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