राजावत, राजा और राजा का बाप
आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने अखबार का एक पेज रखा जिसमें एक फोटो में साफा बाँधे एक रोबदार व्यक्ति के सामने दो आदमी कान पकड़े खड़े हैं और कुछ लोग उन्हें घेरे हुए तमाशा देख रहे हैं | तोताराम ने फोटो के नीचे के केप्शन छुपाते हुए पूछा- बता, साफा बाँधे हुए यह व्यक्ति कौन है ?
हमने कहा- साफा, शरीर का आयतन और रुआब को देखते हुए तो यह शख्स किसी न किसी रूप में राजा या राजा का बाप या राजावत लगता है |
तोताराम हमारे चरण छूते हुए बोला- भाई साहब, भले ही आपकी क्षमता को साहित्य और राजनीति ने आज तक स्वीकार नहीं किया हो लेकिन आपमें कुछ तो है |फोटो देखते ही आपने कैसे पहचान लिया कि ये शिक्षा नगरी के पूर्व माननीय राजावत हैं |
हमने कहा- तोताराम यदि विश्लेषण करोगे तो तुम पाओगे कि हर युग में राजा का काम लोगों को कान पकड़वाने का ही रहा है या फिर दारू पीने का या गरीबों की बहू-बेटियों को परेशान करने का | ये न कुछ मेहनत करते हैं और न कोई भला काम |यदि ये ही कुछ करते होते तो क्यों इस देश में विदेशी आते और सफल होते | इन्होंने केवल मूंछों पर ताव दिया है या तरह तरह से साफे बांधते-बंधवाते रहे हैं |आज जब लोकतंत्र है तो जो एक बार विधानसभा या लोकसभा रूपी महल में घुस गया वह किसी न किसी रूप में राजा या राजावत बना ही रहता है |इस आधार पर राजत्व के तीन स्वरूप होते हैं | केंद्र और राज्य में सत्ता वाली पार्टी का किसी दमदार विभाग का मंत्री राजा का भी बाप होता है | जहां जिस दल की सरकार हो वहाँ किसी पद पर स्थापित नेता राजा होता है |यदि कोई माननीय भूतपूर्व एम.एल.ए. या एम.पी. है और कहीं न कहीं उस पार्टी की सरकार है तो वह भी राजा न होते हुए भी राजा के सामान अर्थात 'राजावत' होता है |
मराठी में शिक्षा को 'दंड' भी कहते हैं और ये किसी को कान पकड़वाकर दंड ही तो दे रहे हैं इसलिए इनका संबंध शिक्षा नगरी से अवश्य होना चाहिए |इसी आधार पर मध्यप्रदेश की शिक्षा नगरी इंदौर के बैटेश्वरानंद ने भी तो नगर निगम के एक अधिकारी को ज्ञान दे ही दिया था |राजा के बाप होते तो उसी समय सज़ा-ए-मौत भी फरमा सकते थे |ऐसे में एक 'राजावात' जी का इतना अधिकार तो बनता ही है कि बिजली विभाग के एक छोटे-मोटे कर्मचारी से कान पकड़वा सकें |
बोला- लेकिन इससे तो देश में अव्यवस्था फ़ैल जाएगी |
हमने कहा- जब असामाजिक तत्त्वों के समर्थन पर पार्टियाँ सत्ता में आएँगीं तो ऐसा ही होगा | और जब अति हो जाती तो ये 'राजावत' नहीं 'भीड़' ही कानून अपने हाथ में ले लेगी |
बोला- भाई साहब, मुझे तो लगता है भले आदमी के लिए तो गली का कुत्ता भी 'राजावत' है |यदि ये कर्मचारी भी इनकी तरह दबंग होते या किसी 'मार्शल रेस' के होते तो ये कान पकड़वाने की बजाय इन्हें चाय पिला रहे होते |तभी तो अपने राजस्थान में कहावत है- ठाकरां, सूरमा कस्याक ? बोले- कमजोर का तो बैरी ही पड्या हाँ |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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