Apr 24, 2020

छुपा हुआ कौशल



छुपा हुआ कौशल 

बहुत कुछ जीव के जींस में होता है |उसी के अनुसार जीव को कमोबेश आचरण करना पड़ता है |यदि किसी नेता का पुत्र तत्काल राजनीति में नहीं आता तो थोड़े दिन बाद या उसके पिता श्री की मृत्यु के बाद, उनके सपनों को साकार करने के लिए पार्टी के अनुशासित सिपाहियों की बेहद माँग पर, सुपुत्र राजनीति में आ ही जाता है |चूँकि राजनीति जींस में होती ही है इसलिए परेशानी नहीं होती | अधिकतर लोग तो अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते, बड़ी मेहनत से दरी बिछाते-बिछाते 'राष्ट्र के नाम सन्देश' देने लग जाते हैं |इसे स्किल डेवेलपमेंट कहते हैं |स्किल के बिना डेवलपमेंट नहीं होता और अगर अपना और परिवार का डेवलपमेंट न हो तो किसी स्किल का फायदा ही क्या ?

हमने बी.ए. में अर्थशास्त्र विषय लिया था |जब एम.ए. करने की बात आई तो हमारे गुरूजी ने कहा- तू भले ही श्यामसुंदर दास जी या बाबू गुलाबराय जी की तरह बी.ए. ही रहा जाना लेकिन अर्थशास्त्र में एम.ए. मत करना |तू खुद तो दुखी होगा ही, देश की अर्थव्यवस्था का भी सत्यानाश करेगा |हमने अर्थशास्त्र में एम.ए. नहीं किया |यह बात और है कि हमारे किसी सहयोग के बिना ही नेताओं और अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था का जो हाल किया है वह आप सब जानते हैं |हम उसके लिए किसी भी रूप में दोषी नहीं हैं |

भले ही हमने अर्थशास्त्र में एम.ए. नहीं किया लेकिन मोदी जी की तरह अर्थशास्त्र के साथ प्रयोग करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी |हमने किसी सिक्ख को भीख माँगते नहीं देखा | इससे हमने निष्कर्ष निकाला कि दाढ़ी और हजामत न बनवाने से व्यक्ति जीवन में लाखों रुपए की बचत कर सकता है और इस फालतू काम से जो समय बचता है उसमें व्यक्ति अपनी स्किल का सदुपयोग करके अपनी अर्थव्यवस्था सुधार सकता है |इसलिए कोई चार महिने पहले हमने फिलिप्स का एक ट्रिमर मँगवाया | सोचा बुढ़ापे में ही सही बचत और स्किल डेवलपमेंट दोनों कर लेंगे |अब साबुन, ब्लेड का खर्च ख़त्म |बस, जब मन हुआ दाढ़ी पर घुमा लिया |पहले हमने ट्रिमर से दाढ़ी बनाने में केवल साबुन और ब्लेड की बचत को ही जोड़कर २५ रु. महिने की बचत का हिसाब लगाया था लेकिन अब कुछ और तरह से कल्कुलेट करते हैं जैसे यदि हम बाज़ार में किसी सैलून में जाकर दाढ़ी बनवाते तो ? बीस रुपए दोनों तरफ का ऑटो का खर्च, बीस रुपए दाढ़ी बनवाने के |महीने में यदि दस बार दाढ़ी बनवाएँ तो हुए कुल चार सौ रुपए महिना | साल में पाँच हजार | अगर बीस साल और जी लिए तो एक लाख रुपए की बचत |वर्चुअल ही सही; सुख तो सुख ही है |

जैसे ही पिछला क्वेरेंटाईन  शुरू हुआ था तो पढ़ा कि अनुष्का शर्मा ने अपने पति विराट कोहली की कटिंग बनाई |स्किल भी डेवलप हुई और सौ-पचास रुपए की बचत भी |

आज लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें वे अपने पिता एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की दाढ़ी बनाते दिख रहे हैं | चिराग ने ट्वीट किया- 'मुश्किल वक़्त लेकिन लॉक डाउन का भी एक उजला है | पता नहीं था कि यह कौशल भी है |आइए, कोविस-१९ से पड़ते हैं और सुन्दर स्मृतियाँ भी बनाते हैं |घर पर रहें, सुरक्षित रहें |

 यह बात और है कि किसी ने भी मास्क नहीं लगा रखा था और डिस्टेंस भी एक फुट से अधिक नहीं था | खैर, हमारा काम कौन सोशियल डिस्टेंसिंग कायम करवाना है |यह तो सत्ताधारी दल का निजी मामला है | मूँडने की कला तो सबको आनी चाहिए, विशेषरूप से जनता के सेवकों को |यदि आप किसी को नहीं मूँडेंगे तो लोग आपको मूँडेंगे |सामान्य लोगों में स्किल डेवलप करनी पड़ती है |नेताओं और नेतापुत्रों में जन्मजात होती है |

Chirag Paswan trims father Ram Vilas Paswans beard - Sakshi

हम अमूमन तीन महिने में एक बार कटिंग बनवाते हैं |अबकी बार जब कटिंग बनवाने का समय हुआ तो जनता-कर्फ्यू लग गया |एक महिना ऊपर हो गया |पीछे के बाल ऐसे हो गए जैसे अम्बानी के बेटे की शादी में नृत्य कर रहे शाहरुख खान की चुटिया | पोतियाँ आजकल यहीं आई हुई हैं |हमने सोचा समय का सदुपयोग, स्किल का डेवलपमेंट और पचास-साठ रुपए की बचत; सब काम हो जाएँगे |

हमने जब यह योजना पोती को बताई तो बोली- आपको कौनसा पासवान जी की तरह  प्रधानमंत्री के साथ टेलीकांफ्रेंसिंग करनी है |कौन आपकी कटिंग करते हुए हमारा फोटो अखबार में फोटो छापने वाला है ? और आप भले ही नाई को सौ रुपए दे देंगे लेकिन हमें पचास रुपए देते हुए भी नखरे करेंगे जैसे सरकार पेंशनरों को बढ़ा हुआ महँगाई भत्ता देने में करती है |

इस राष्ट्रीय महत्त्व के कृत्य का वीडियो हमने नहीं बनवाया क्योंकि कोई अखबार या चेनल इसे नहीं दिखाता | हम भी ऐसा नहीं चाहते क्योंकि क्रमशः दोनों तरफ के बाल काटते-काटते और सन्तुलन बैठाते-बैठाते दोनों तरफ के बाल साफ़ हो गए और कटिंग विराट कोहली की तरह 'मशरूम कट' हो गई |अंत में सदन ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि इसे जोस बेजोस कट या प्रीतीश नंदी या अनुपम खेर कट बना दिया जाए |







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हम जानते हैं कि बार-बार मुँडने से भी भेड़ वैकुण्ठ नहीं जाती |हाँ, मूँडने वाले ज़रूर मज़े करते हैं |हम वैकुण्ठ जाना भी नहीं चाहते |हम यह भी जानते हैं कि मूँड मुँडाने पर ओले गिराने की संभावना भी बढ़ जाती है | हमने तो मूँड इसलिए मुँडाया है कि वैकुण्ठ को इस धरती पर ही लाया जा सके |

हम चाहें तो कैलाश विजयवर्गीय जी की तरह 'इंदौर में हनुमान जी की दुनिया की सबसे बड़ी अष्टधातु की प्रतिमा न बनने तक अन्न सेवन न करने; केवल फल, दूध और मेवों से ही काम चलाने की कठोर प्रतिज्ञा कर सकते हैं'  लेकिन हमारी पेंशन में यह संभव नहीं | फिर भी चाहें तो इस मुंडन-संस्कार को एक वैश्विक सन्दर्भ तो दे ही सकते हैं कि जब तक दुनिया के कोरोना समाप्त नहीं हो जाता, हम ऐसे हो घोटम-घोट रहेंगे |


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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