Apr 16, 2020

ठाले बैठे क्या करें....

ठाले बैठे क्या करें.... 

हम डरते हुए इस सच का उद्घाटन कर रहे हैं कि न तो हम किसी के मन की बात सुनते हैं और न ही किसी का राष्ट्र के नाम सन्देश |जब कोई हमारे मन की बात नहीं सुनता तो हम क्यों किसी के मन की बात सुनें |जहाँ तक सन्देश की बात है तो सलाह की तरह सभी सन्देश देते हैं, आचरण कोई नहीं करता |

२१ मार्च को देर रात कोई साढ़े ग्यारह बजे हमारी 'पेट' मीठी बड़े जोर से भौंकने लगी |बाहर निकलकर देखा तो दरवाजे पर दोनों बड़ी पोतियाँ |अच्छा तो लगा लेकिन अजीब भी कि बिना बात रात में ड्राइविंग की क्या ज़रूरत थी |दिन-दिन से ही आ जाते |कारण पूछा तो बोलीं- रात बारह बजे से कर्फ्यू लग जाएगा |
हमारे अलावा सभी को पता था कि क्या होने वाला है |हमारी स्थिति तो राजनीति में अडवाणी जी जैसी हो रही है | जो, जहाँ ले जाकर बैठा देता वहीँ बैठकर आ जाते हैं |
अगले दिन कहने को कर्फ्यू था लेकिन बीच-बीचे में लोग बिना काम ही गली में निकलकर देख लेते थे कि कर्फ्यू कैसा होता है लेकिन 'अच्छे दिनों' की तरह कर्फ्यू भी किसी को दिखाई नहीं दिया |

अचानक शाम को जोर-जोर से थालियाँ बजाए जाने की आवाज़ आने लगी | एक साथ ! हमारे यहाँ पुत्र जन्म पर ख़ुशी में थाली बजाते हैं |अच्छी बात है ! 'कुलदीपक' की असलियत तो 'बढ़ने' पर ही पता चलती है |रहीम जी कहा है- 

जो रहीम गति दीप की कुल कपूत की सोय  |
बारे उजियारो लगे बढ़े अंधेरो होय ||
यहाँ 'बारे' और 'बढ़े' में श्लेष अलंकार है ( बारे=  बचपन और जलाना तथा बढ़े=उम्र बढ़ना और बुझाना ) बड़ा अजीब लगा |मोहल्ले में एक साथ इतने पुत्र जन्म ! बड़ा विचित्र संयोग है |

बाद में पता चला कि यह सब मोदी जी के कहने पर हुआ है |उनकी माता जी ने भी थाली बजाई |

हीराबेन मोदी (फोटो-स्क्रीनशॉट)

हमें एक विचित्र-सा ख्याल आया लेकिन तभी हमने उसे झटक दिया |ऐसा कैसे संभव हो सकता है ? काश, ऐसा संभव होता !

'थाली-ताली' की गरम चर्चा के मौके पर तोताराम कैसे चूक सकता |समय से पहले ही हाज़िर |कई देर तक चार्चा होती रही |तभी पोतियाँ भी बरामदे में आ गईं | बोलीं- दादा-द्वय आज का क्या कार्यक्रम है ?

हमने कहा- अन्याक्षारी खेलेंगे |आज हमारी भूतपूर्व शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी का जन्म दिन है | उन्होंने कहा है- मोदी ने जो 'जनता कर्फ्यू' लगाया है उसमें समय बिताने के लिए अन्त्याक्षरी खेली जाए | हालाँकि कहने को 'जनता कर्फ्यू' है लेकिन हमसे किसी ने कुछ नहीं पूछा |पूछ लिया होगा उनसे जो प्रश्न और जिज्ञासा जैसा कुछ नहीं करते |सही अर्थों में 'यस मैन' | 

छोटी पोती बोली- पहले बच्चों को कविताएँ कंठस्थ करवाने के लिए यह खेल खेला जाता था लेकिन आजकल सब उलटे-सीधे फ़िल्मी गानों वाली अन्त्याक्षरी खेलते हैं |और फिर क्या आपके पास इतना फालतू समय है कि उसे इस तरह बेशर्मी और बेरहमी से नष्ट किया जाए |ये सब तो निठल्ले लोगों के काम हैं | 



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डाक्टरों का कहना है कि कोरोना में दवा से अधिक परहेज का महत्त्व है |इसलिए क्या आप दोनों 'मास्क' बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचते ? इस बहाने हमें भी सिलाई मशीन चलाने का मौका मिलेगा |

जो आनंद हाथ से काम करने में है वह किसी चीज में नहीं है |काम के बिना जीवन व्यर्थ है |तुलसी ने तभी तो कहा है-

सकल पदारथ हैं जग माहीं |
करम हीन नर पावत नाहीं || 

पोतियों ने हम दोनों को आईना दिखा दिया |क्या करते ? मास्क बनाने का कार्यक्रम तय करने का वादा किया |


    


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