महाबली की महाबली से गुहार
अभिमान कहना तो उचित नहीं होगा क्योंकि तुलसी बाबा ने कहा है- 'पाप मूल अभिमान'; लेकिन आज तोताराम कुछ विशिष्ट नज़र आ रहा था |चाल में एक मस्ती-सी, आँखों में खुमारी-सी |हमने कारण पूछा तो बोला- मास्टर, अब तो मान ले हमारा जलवा ! अब तो दुनिया के सबसे धनवान और शक्तिशाली लोकतंत्र ने ही नहीं, योरप के स्पेन और इटली जैसे देशों ने भी घुटने टेक दिए |
हमने पूछा- क्या चीन ने भारत की नेफा वाली भूमि लौटा दी ? क्या पाकिस्तान ने सारे जम्मू कश्मीर पर हमारा कब्ज़ा स्वीकार कर लिया ? क्या हमें सुरक्षा परिषद् में वीटो पॉवर के साथ स्थायी सदस्यता मिल गई ?
बोला- ये सब तो छोटी-मोटी बातें हैं |अब तो खुद ट्रंप ने कोरोना से लड़ने के लिए भारत से गुहार लगाई है हाइड्रोक्लोरोक्वीन की गोलियाँ देने के लिए |उस अमरीका का राष्ट्रपति जिसके द्वारे कभी हम अनाज माँगने जाया करते थे |
हमने कहा- लेकिन पहले तो भारत ने निर्यात बंद करने की बात की थी लेकिन जब ट्रंप ने धमकी दी तो मानवता के नाम पर अमरीका ही नहीं और भी कई देशों को भी क्लोरोक्वीन का निर्यात खोला |
बोला- वह कोई धमकी थोड़े ही थी | उन्होंने कहा था- 'भारत ने नहीं भेजी दवा तो नतीजे ठीक नहीं होंगे' | मतलब हमारी हालत खराब हो जाएगी |अब इससे ज्यादा एक महाबली और क्या कह सकता है ? क्या यह उचित होता कि हमारे पास संजीवनी होते हुए हम लोकतंत्र के किसी लक्ष्मण को मर जाने दें ?अब तो ब्राजील के राष्ट्रपति को भी हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने की याद आने लगी है | हमारे देश में तो राजा रंतिदेव हुए हैं जिन्होंने अपने और अपने परिवार के हिस्से का भोजन एक भूखे भिखारी को दे दिया था |संत रामानंद वाराणसी से गंगाजल लेकर रामेश्वरम के शिव पर चढ़ाने जा रहे थे | रास्ते में देखा, एक गधा प्यास से मर रहा है तो उन्होंने वह गंगाजल उसे पिला दिया |
हमने कहा- तो फिर निर्यात पर प्रतिबन्ध की बात ही नहीं करते |
बोला- तूने गज और ग्राह वाली कथा नहीं पढ़ी ? जब तक गजराज को अपनी शक्ति का अभिमान था तब तक भगवान ने उसकी नहीं सुनी लेकिन जैसे ही उसने अंत समय में एक कमल पुष्प अपनी सूँड में लेकर भगवान विष्णु से गुहार लगाई तो प्रभु दौड़ पड़े नंगे पाँव | सिकंदर पुरु से यही तो सुनना चाहता कि उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाए जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है |
हमने कहा- हाँ भई तोताराम, ये महाबलियों की बातें हैं हम क्या समझें ? हम तो सरकार से अपनी 'दो साल की डीए बंदी' के बारे में भी गुहार नहीं लगा सकते |क्या पता कोरोना के कहर में पेंशन ही बंद ना कर दे |
वैसे हमने सुना है, यह क्लोरोक्वीन भी कोई कोरोना की दवा नहीं है |बस, दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है |
बोला- दिल के बहलाने वाले ख्यालों से ही तो दुनिया चल रही है |जिस देश के पास दिल को बहलाने के जितने अधिक साधन होते हैं वहाँ शासन सरलता से चलता है |धरती माँ के स्तनों में इतना दूध कहाँ है जो सब की अनियंत्रित भूख-प्यास मिटा सके |कुछ और दूध और कुछ झुनझुना |बस, ऐसे ही काम चल रहा है |
ट्रंप कहते हैं, अमरीका में कोरोना से दो करोड़ मरेंगे |यदि हम यह संख्या कम कर सके तो यह हमारी सफलता होगी और यदि हमारे यहाँ यह संख्या अमरीका से कम रही तो हम भी अपने आप को अमरीका से श्रेष्ठ सिद्ध कर सकेंगे |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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