Nov 27, 2023

2023-11-27 लड्डू का सनातन धर्म


लड्डू का सनातन धर्म  


आजकल शादियों का  मौसम चल रहा है । शादी हो या हिंदुओं का कोई धार्मिक त्योहार बिना  मिठाई और धूम धड़ाके के हो ही नहीं सकता । शादियाँ तो पहले भी होती थीं लेकिन केटरर और डी जे वाले नहीं हुआ करते थे इसलिए शोरगुल बर्दाश्त से बाहर नहीं निकलता था लेकिन अब---! 

अभी अभी देवता उठे हैं । किसी  धर्म की रक्षा के लिए देवताओं का उठना  बहुत जरूरी है क्योंकि जब देवता उठेंगे तब शादियाँ होंगी और जब शादियाँ होंगी तभी जनसंख्या बढ़ेगी और जब जनसंख्या बढ़ेगी तब धर्म की रक्षा हो सकेगी । क्योंकि धर्म की रक्षा उसके आचरण पर नहीं बल्कि संख्या बल द्वारा जोर आजमाइश से होती है । जहां तक जनसंख्या की वृद्धि की  बात है तो वह कुछ विशिष्ट लोगों के अतिरिक्त सभी जीवों में बिना शादी के भी होती ही रहती है । हमारे महाभारत के रचयिता वेद व्यास बिना शादी के ही अस्तित्व में आ गए और आज तक किसी को कोई ऐतराज नहीं हुआ । 

वैसे शादियाँ हमारे राजस्थान में आखा तीज (अक्षय तृतीया ) पर सबसे ज्यादा होती हैं । अबूझ मुहूर्त होता है। लो भगवान का नाम, बैठो घोड़ी पर और डी जे को कर दो फुल वॉल्यूम पर । बस हो गया काम । वैसे इस अवसर सरकार बाल विवाह रोकने के लिए सक्रिय होने की रस्म भी अदा करती है । लेकिन कौन किसी की सुनता है ।  अगर कोई उत्साही रोकने की कोशिश करता है तो उसकी क्या हालत होती है यह भँवरी देवी के कोई 40  साल पुराने केस में हुए कानूनी नाटक से समझा जा सकता है । 

खैर, तो शादियाँ होने से मिठाइयों का आदान-प्रदान चलता रहता है । पर्याप्त खा लेने के बाद भी घर में लड्डू  पड़े ही रहते हैं । हालांकि मिठाई वाले डिब्बे पर लिखते हैं कि मिठाई को उसी दिन काम में ले लेना चाहिए लेकिन हम प्राचीनता और सनातन में विश्वास करने वाले हैं सो एक्सपायरी डेट के बाद भी किसी चीज को छोड़ते  नहीं । 

आज जैसे ही तोताराम आया तो पत्नी ने कहा- लो लाला, 20-20 में भारत की जीत लड्डू के साथ सेलेब्रेट करो। 

तोताराम बोला- तो भाभी, आप भी जले पर नमक छिड़क रही हैं ।  19 नवंबर को क्रिकेट के सटोरियों ने मिलकर हरवा दिया । अब इस 20-20 का क्या आचार डालूँ । फिर भी पहले यह बताओ ये लड्डू किस धर्म के हैं । 

पत्नी को और भी दस काम होते हैं । वैसे भी इतने बड़े वैश्विक मुद्दों पर हम अधिक दखल रखते हैं । सो हमने कमान संभालते हुए कहा- लड्डू का भी कोई धर्म होता है ?

बोला- होता क्यों नहीं ? सबका कोई न कोई धर्म होता है । धर्म तो सनातन होता है । 

हमने कहा- सूरज, चाँद सबकी एक आयु होती है । पृथ्वी के बनने और उस पर जीवों और मानवों सबकी उत्पत्ति का विज्ञान के अनुसार कोई काल खंड रहा है । जिन्हें हम भगवान मानते हैं उनकी भी कोई जन्म तिथि है तो फिर सनातन क्या हुआ ? यदि गुण को धर्म मानें जैसे आग का धर्म उजाला और गरमी देना तथा जलाना; पानी का धर्म प्यास बुझाना, गलाना आदि है तो लड्डू का धर्म है किसी की जीभ पर मिठास घोलना और मजबूरी है किसी के द्वारा खाया जाना । जिसे भी मौका मिलता है वह बेचारे लड्डू को खा ही जाता है यहाँ तक कि डाइबीटीज वाला भी नहीं छोड़ता । कुछ लोग तो एक मुँह के बावजूद दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं भले ही फिर आवाज न निकले ।      

बोला- नहीं, हिन्दू-मुसलमान वाला धर्म भी होता है । जैसे मुसलमान के घर से आया लड्डू मुसलमान, हरिजन के घर से आया लड्डू हरिजन, सत्ताधारी पार्टी का लड्डू राष्ट्रीय और सवर्ण, विरोधी पार्टी के यहाँ से आया लड्डू देशद्रोही, अभारतीय और भ्रष्ट । 

हमने कहा- ये बातें छोड़, खाना है तो खा । यह सनातन लड्डू है । अनादि काल से चला आ रहा है ।  गणेश जी के हाथों में सजने वाला सनातन लड्डू । 

बोला- तो फिर अब तक तो सड़ या सूख गया होगा । 

हमने कहा- सनातन कभी सूखता नहीं, नष्ट नहीं हो सकता । उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । 

नैनं छिंदन्ति शस्त्राणी -----

वैसे हम और ज्यादा तो नहीं जानते लेकिन यह लड्डू वैसा ही है जैसा शिकागो में 11 सितंबर 2018 को बांटा गया था । उस समय हिंदुओं को समझाने के लिए दो प्रकार के दो -दो लड्डू बांटे गए- एक पिलपिला और दूसरा थोड़ा सख्त । यह समझाने के लिए कि कठोर रहोगे तो सुरक्षित रहोगे । अब यह बात और है कि कठोर लड्डू चाहे अपना हो या पराया, उसे खा सकना सबके बस का नहीं होता । तीखे और मजबूत दांतों वाले साधन सम्पन्न लोग ही खा सकते हैं जैसे सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना सबके बस का नहीं होता । 

हमारे राजस्थान में पहले एक विशेष प्रकार का लड्डू बनाया जाता था- कसार का लड्डू । जिसमें घी बिल्कुल नहीं होता था और चीनी की जगह गुड़ । वह बनने और अच्छी तरह सूख जाने पर इतना कठोर हो जाता था कि या तो लड्डू ही बचता  था या फिर उसे खाने का साहस करने वाले व्यक्ति के दाँत।  हाँ, उसके खराब होने की संभावना बहुत कम होती थी । 

देसी घी के तथाकथित उच्चवर्गीय लड्डू जरूर बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं , चार दिन बाद उनमें गंध सी आने लगती है । तोड़कर रख दो तो फिर भी ठीक अन्यथा अंदर फफूंद लगी निकलती है । 

बोला- फिर भी कुछ तो संकेत दे इस लड्डू के बारे में । 

हमने कहा- यह सनातन लड्डू है । वही 11 सितंबर 2018 वाला अब वाया बैंकाक आया है । 




बोला- बैंकाक तो किसी और ही काम से लिए जाते हैं लोग, विशेष रूप से पर्यटक । और जहां तक धर्म की बात है तो वहाँ का प्रमुख धर्म सनातन नहीं, बौद्ध है । 

हमने कहा- अब वहाँ विश्व हिन्दू कांग्रेस होकर निबटी है । वहाँ से भी लड्डू के माध्यम से ही संदेश आया है । यह वहीं का तरोताजा लड्डू है । 

बोला- लेकिन लड्डू तो वही शिकागो वाला है । वही नाम, वही रेसिपी । अब तक तो इसे अच्छी तरह से सूख कर सख्त हो जाना चाहिए था । 

हमने कहा- किसी भी खाद्य पदार्थ को इतना भी सख्त नहीं हो जाना चाहिए कि वह खाने लायक ही न रहे । बिना तोड़े साबुत लड्डू एक बार में खा सकना सबके बस का नहीं होता । 

तभी पत्नी आई और बोली- खाना है तो खा लो, नहीं तो मैं वापिस ले जाती हूँ । तुम लोगों की अनादि-अनंत बहस में या तो यह लड्डू खाने लायक नहीं बचेगा या फिर कोई कुत्ता,बंदर उठा ले जाएगा । 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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