Nov 20, 2023

झटका चाय


झटका चाय 


रोज की तरह तोताराम का यथासमय हमारे यहाँ अवतरण हुआ लेकिन बरामदे में नहीं क्योंकि अब ठंड बढ़ रही है । अस्सी पार की इस उम्र में हम किसी तरह की रिस्क लेना उचित नहीं समझते । 

तोताराम चाय थामे चुपचाप बैठा था । हमने कल रात के इंडिया आस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैच के समय चाय के साथ चले नमकीन के दौर से बचे थोड़े से बीकनेरी भुजिए बड़ी सावधानी से उसकी प्लेट में धीरे धीरे उँड़ेले कि कहीं फर्श पर न बिखरें ।  

तोताराम ने क्रिकेट से अलग प्रश्न करते हुए पूछा-  ये भुजिए हलाल हैं या झटका ? 

हमने कहा- लगता है खुराफाती राष्ट्रभक्तों की हरकतें देख-सुनकर तेरा दिमाग खराब हो गया है ? वे तो चलो, राजनीति से थोड़ा-बहुत लाभ भी कमा लेंगे लेकिन तू बिना बात अपने दिमाग में घृणा का कचरा क्यों भर रहा है ? वैसे ही 'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत हर तरफ कचरे की भरमार है । 

बोला- एक तो तेरे इस भुजिए के पैकेट पर उर्दू में कुछ लिखा हुआ है दूसरे तू इतना धीरे-धीरे डाल रहा है जैसे कोई किसी मुर्गी को हलाल करने में दो घंटे लगाता है ।

हमने कहा- जब तुझे न उर्दू, अरबी-फारसी आती है और न ही  झटका-हलाल और हराम का पता है तो फिर चाय के साथ नमकीन खा और खुश रह । हम तो इसलिए धीरे-धीरे इसलिए डाल रहे थे कि तेरे कपड़ों पर न बिखरे । अब पकड़ यह पैकेट और खा ले जैसे तुझे खाना हो 'झटका' या 'हलाल' । 

बोला- जब कोई काम एक झटके में कर दिया जाता है तो उसे हिन्दू कहते हैं  फिर चाहे वह चार घंटे के नोटिस पर नोटबंदी करना हो या तालाबंदी का कर्फ्यू लगाना हो, या फिर बिना किसी से पूछे तीन कृषि कानून पास करना हो । कोई डॉक्टर अगर एक दांत को घंटा भर में हिला हिलाकर निकाले तो उसे 'हलाल दंत चिकित्सक' कहते हैं और अगर कोई डॉक्टर तुम्हारे कुर्सी पर बैठने से पहले ही, बिना लोकल अनेस्थीसिया लगाए तुम्हारा दाँत निकालकर तुम्हारी हथेली पर रख दे उसे 'हिंदुत्ववादी डॉक्टर झटका' कहते हैं । 

हमने कहा- इस हिसाब से तो अगर मूली को एक झटके में जमीन से उखाड़ लो तो 'झटका मूली' और अगर धीरे-धीरे आसपास की की मिट्टी हटाकर दस मिनट में निकालो तो 'हलाल मूली' । क्या बकवास है ? 

बोला- यह बकवास नहीं; यही धर्म , संस्कृति और सभ्यता है । 



 


हमने कहा- हलाल या झटका में कटता तो बकरा ही है । और खाने वाले दोनों ही मांसाहारी कहलाते हैं । 

अरे, वैसे भी जब कोई हराम की कमाई कहता तो उसका मतलब होता है बिना मेहनत के धोखे और चतुराई से कमाया गया धन होता है फिर चाहे वह सेवा का नाटक करके हो या फिर धर्म का ढोंग करके । किसी भी किसान, मजदूर की कमाई किसी भाषा में हराम की कमाई नहीं बल्कि हलाल की कमाई कहलाती है । किसी शब्द की कोई जाति, धर्म और राष्ट्रीयता नहीं होती । यह भी कोई बात हुई कि घूँघट हिन्दू और हिजाब मुसलमान हो गया । अरे दोनों में मुँह ही ढँका जाता है और पीड़ित को देखने में बाधा आती है । अब हरियाणा, राजस्थान में घूँघट शालीनता और कर्नाटक में हिजाब पिछड़ापन और ईरान में धर्म विरुद्ध कृत्य ! 

बोला- यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों धर्म एक ही इलाके में जन्मे और पनपे । तीनों के पुराने पैगंबरों के नाम भी तत्सम-तद्भव करके एक ही हैं लेकिन जहां भी, जब जैसा मौका मिलता है लड़-मर-मार रहे हैं कि नहीं ? जीवन और शांति से बड़ा है धर्म और संस्कृति । यही राजनीति का  'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' है । ऐसे में हम अपने धर्म और संस्कृति को ऐसे कैसे असुरक्षित छोड़ सकते हैं । 

हमने कहा- तो फिर गरम चाय को धीरे-धीरे फूँक मारकर क्यों हलाल करता है ? गटक जा एक घूंट में पूरा गिलास । 'झटका चाय' । 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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