2025-07-21
कलेक्टर नहीं तो थानेदार को बुला
हमारा घर कालोनी की मुख्य सड़क पर है ।वैसे तो सभी मकानों के आगे भी कानूनी रूप से सड़कें हैं । अंतर बस, उनकी चौड़ाई, उनके सामने के गड्ढों की संख्या और गहराई का है । कई दिनों से हमारे घर के सामने की सड़क के सभी खंभों की लाइटें नहीं जल रही थीं । कई संदर्भ निकालकर, कई बार फोन करने और विनम्र मेसेज करने के बाद आज कोई पाँच बजे शाम को दो सज्जन एक सीढ़ी के साथ अवतरित हुए और तारों को फिर से जोड़ा और चले गए ।
अब हम तमसो मा ज्योतिर्गमय के भाव से हर दस-पाँच मिनट में खंभे पर लगी लाइट को ब्रज की गोपियों की तरह मथुरा से आने वाली राह या मोदी जी के अच्छे दिनों की तरह अपलक निहार रहे थे ।आए या न आए । पता नहीं कब आ जाए । इस ऊहापोह में समय का पता ही नहीं चला कि कब अँधेरा हो गया ।
तभी हमारे बगल से एक दबंग आवाज आई- भगत, आज भोले की काँवड़ का रात्रि-विश्राम तेरे यहीं होगा ।
हम चौंककर गिरते गिरते बचे ।
देखा, भगवा वस्त्रों में लिपटी कोई पाँच फुट की एक आकृति हमारे बगल में खड़ी है । कोई भयंकर, खूँख्वार नहीं लेकिन काँवड़िया तो है । वह प्राणी जिस पर कोई नियम-कानून लागू नहीं होता । जिनके लिए देश के राजमार्ग खाली करवा दिए गए हैं । जो कहीं भी किसी भी ढाबे में खाना खाकर, प्याज का बहाना बनाकर पैसा नहीं देते, काँवड़ से कुछ छू जाने पर क्रोधित होकर किसी की भी कार तोड़ देते हैं, जिनके साथ दहाड़ते हुए डी जे चलते हैं और रात को मनोरंजन के लिए मैथुनी नृत्य करती पेशेवर नचनियाँ चलती हैं । रास्ते में मुख्यमंत्री, जिलाधीश, पुलिस अधीक्षक पुष्प बरसाते हैं। कई पुलिसवाले रास्ते में विश्राम स्थलों पर इनकी चरण-सेवा करते हैं । दिल्ली सरकार ने इनकी सेवा में भंडारे और विश्राम-शयन की व्यवस्था करने वाली संस्थाओं को दस लाख तक का अनुदान भी देती है ।
काँवड़ियों की पराक्रम कथाओं को सुन सुनकर हम दूर बैठे भी काँपते रहते हैं । एक बार तो मन हुआ कि जल्दी से भागकर घर में घुस जाते हैं । फिर सोचा- एक ही आदमी तो है । और वह भी मरियल सा । रात को पड़ा रहेगा बरामदे में । सुबह की बची दो रोटियाँ और थोड़ा-सा दूध देंगे । इसके साथ एक फ़ोटो खिंचवाकर कल के अखबार में दे आएंगे । ‘काँवड़ियों की सेवा करते केन्द्रीय विद्यालय के सेवा निवृत्त एक 83 वर्षीय उत्साही धर्मपरायण वृद्ध सज्जन रमेश जोशी । क्या पता इस बार के नगर परिषद के चुनावों में वार्ड मेम्बरी के लिए भाजपा का टिकट ही मिल जाए ।
इस समय देश की राजनीति में राजस्थान की प्रतिभाओं का जलवा है । एक साथ तीन विभूतियाँ- जिनकी आकृति और शब्द-शब्द से बौद्धिकता टपकती है । ओम बिरला, जगदीप धनखड़ और अर्जुन राम मेघवाल । क्या पता अपनी विनम्रता के बल पर जब धनखड़ जी राष्ट्रपति बन जाएँगे तो हमें इस काँवड़ सेवा और राजस्थान का होने के कारण उपराष्ट्रपति बना दिया जाए ।
हमने कहा- भोले, विराजें । हम आपके लिए दूध-रोटी लाते हैं । यही दरी बिछा देते हैं, यहीं बरामदे में विश्राम कर लें और सुबह आपको जहाँ जाना हो प्रस्थान करें ।
अब तो भगवा वस्त्रों में लिपटी वह लघु आकृति क्रोधित हो गई, बोली- हमें क्या आलातू-फालतू समझ रखा है । जब से तेरी गली में घुसे हैं न कोई पुष्प वर्षा, न स्वागत के लिए कोई जिलाधीश, न पुलिस अधीक्षक और न ही चरण सेवा के लिए कोई पुलिस वाला । न हो तो पास के औद्योगिक क्षेत्र थाने से ही किसी थानेदार को ही पकड़ ला ।
हमने कहा- भोले, यू पी की बात और है । वहाँ तो धर्म की ध्वजा फहरा रही है । भले ही कानून व्यवस्था के लिए पुलिस हो न हो लेकिन काँवड़ियों के लिए 27 हजार पुलिस बल ड्यूटी पर डटा हुआ है । हमारे कहने से थानेदार तो दूर, गली में झाड़ू लगाने वाला भी काम नहीं करता । वैसे पुण्य का काम है, दो हाथ हम ही लगा देते लेकिन क्या बताएं भोले, हमारे तो खुद की कमर और घुटनों में दर्द रहता है ।
तभी पत्नी बरामदे में आ गई, बोली- क्यों इस खंभे को घूरे जा रहे हो । बिजली जब आएगी तब आ जाएगी । अब चलकर खाना खालो । और इतनी देर यह किससे पंचायती कर रहे हो ?
हमने कहा- कोई भोला है, पता नहीं कहाँ से काँवड़ लेकर आया है ?
पत्नी ने उस लघु आकृति के निकट जाकर देखा और बोली- काँवड़िया ! लगता है तुम्हारी आँखों के लेंस बदलवाने पड़ेंगे । जैसा भी है चश्मा लगा लिया करो । यह कहाँ का काँवड़िया है । यह तो तोताराम है ।
हमने कहा- तो आज तेरे सुबह न आने का कारण इस फ़ैन्सी ड्रेस शो की तैयारी था । अब चुपचाप घर जा और हमें भी खाना खाने दे । सारी शाम इन बिजली वालों के चक्कर में लग गई ।
पता नहीं आज भी खंभे की यह लाइट जलेगी या नहीं ।
-रमेश जोशी
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