2025-11-25
धर्मध्वजा
तुलसी जी का ब्याह रचाए
औरों की बेटी फुसलाए
रोना रोता है कड़की का
मूरत को गहने पहनाए ।
कैसी धर्मध्वजा फहराए ॥
मंदिर तो मजदूर बनाए
मगर बाद में घुस ना पाए
करें ध्वजारोहण राजाजी
औ' पंडित जी उसके गुण गाए ।
किसकी धर्मध्वजा फहराए ॥
बातें करता अपने मन की
पीर न सुनता निर्धन जन की
हमें त्याग-अध्यात्म पढ़ाए
खुद करता है पूजा धन की ।
फिर भी धर्मध्वजा फहराए ॥
-रमेश जोशी
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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