May 22, 2015

तोताराम की सेल्फी


तोताराम की सेल्फी 

आज कोई दस बजे सवेरे तोताराम आया |

सब जानते हैं,आजकल हमारे शेखावाटी इलाके में तापमान ४४-४५ डिग्री चल रहा है |
इस समय तक तो बादे-सबा लू बन जाती है | हो सकता है, बचपन में इससे भी ज्यादा गरमी झेली हो लेकिन उस समय न तो ज्यादा सर्दी-गरमी के कारण स्कूल की छुट्टी हुआ करती थी और न ही अखबारों में तापमान के समाचार आते थे | बनियान तो हमने मई के शुरू में में पहननी बंद कर दी थी और अब तो गरमी की फुल यूनीफोर्म में आगए हैं- मतलब कि मात्र एक अंगोछा और वह भी लंगोट की तरह समेटा हुआ |आज की भाषा में कहें तो बिकनी से थोड़ा सा  बेहतर |

सुंदरियों की और विशेषरूप से सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने वालियों की बात हो या कहानी की माँग पर आजकल की सशक्तीकृत बोल्ड अभिनेत्रियों की या किसी भी वस्तु का विज्ञापन करने वाली माडलों की बात हो , यह यूनीफोर्म धड़ल्ले से चलती है | हम जैसे बुजुर्गों को भी कम से कम घर में तो इसकी छूट है ही |वैसे नई पीढ़ी इसे असभ्यता मानती है | वह तो चाहती है कि हम सोते समय भी प्रेस किया हुआ कुर्ता पायजामा पहनें |उन्हें क्या पता, यह अपव्यय तो है ही और असुविधा भी | 

तोताराम ने छोटी सी स्लेट जैसा कुछ निकाला और बोला- तेरा बचना मुश्किल है |फिर वही अति अनौपचारिक ड्रेस |किसी ने रमण सिंह जी या मोदी जी से शिकायत कर दी तो फँस जाएगा |जा, कोई ढंग की ड्रेस पहन कर आ | तेरे साथ सेल्फी लेनी है |

हमने कहा- एक तो तू हमें ड्रेस को लेकर मोदी जी के नाम से डराना छोड़  दे | हम तो वैसे ही गरमी और महँगाई से परेशान हैं और ऊपर से हर रोज की यह धमकी | हम कोई कलेक्टर थोड़े ही हैं तो ४२ डिग्री में भी बंद गले का सूट पहनेंगे |वैसे सूट अपने पास है भी नहीं | सरकार केवल पेंशन देती है, मोदी जी की तरह कोई ड्रेस का खर्चा थोड़े ही देती है | वैसे भी हम तो ऋषियों के वंशज है, सादगी से रहेंगे | ऋषि लोग तो एक लँगोटी में ही रहते थे,उसी में चक्रवर्तियों के दरबार तक में चले जाते थे | कुछ तो उससे भी मुक्त हो जाते थे |आज भी नागा साधु निर्वस्त्र रहते ही हैं | फिल्मों में तो हिमालय में सूटिंग होगी तो भी बिकनी में और बिकनी चार सेंटीमीटर गुणा दस सेंटीमीटर की और चोली दो सेंटीमीटर गुणा छत्तीस सेंटीमीटर की |यदि कुछ कार्यवाही करनी ही है तो उन पर करें |

बोला- वह या तो महिलाओं का सशक्तीकरण है या फैशन या कला है | जो जितनी बड़ी कलाकार उतने की कम वस्त्र |अखबार और टी.वी. वाले मेधा पटाकर या अरुणा राय की बजाय पूनम पांडे और शर्लिन चोपड़ा को छापना फायदे का सौदा समझते हैं |

खैर, अब फालतू की बहस छोड़ |घर मे जो तेरी मर्जी हो पहन लेकिन सार्वजिक स्थानों पर ढंग से रहा कर |यह केवल मोदी जी का भय ही नहीं, देश की छवि की बात है | पहले की बात और थी जब भारत में जन्म लेने के लिए देवता तक तरसते थे लेकिन स्वतंत्रता के बाद तो लोगों को यह बताते भी शर्म आती थी कि उनका जन्म भारत में हुआ है | बड़ी मुश्किल से नसीब वालों के प्रयत्न से यह दिन देखने को मिला कि भारत में जन्म लेना गर्व की बात हो गई है | 

मैं तेरे साथ अच्छी से ड्रेस  में सेल्फी लेना चाहता हूँ जिसे मैं अपने ट्विटर पर डालूँगा | उसे देखकर दुनिया में भारत की छवि और भी निखरेगी | आजकल ट्विटर और सेल्फी के बिना जीना मरने से भी बदतर है | किसी फोटोग्राफर से खिंचवाओ तो पता नहीं कैसी फोटो ले ले | थोबड़ा जैसा है उससे भी उन्नीस ही आए |सेल्फी माने अपनी छवि अपने हाथ |

हमने कहा- तोताराम, फोटो से क्या होगा | असलियत तो तू और मैं दोनों जानते हैं कि हड्डियाँ कीर्तन कर रही हैं | कपड़े  तो तू कहेगा तो हम किसी टेंट हाउस वाले से राजा वाले भी माँग लाएँगे लेकिन चेहरे पर नूर और नखरे तो भैया, कुर्सी से आते हैं और जहाँ तक कुर्सी की बात है तो सत्तर से ऊपर वाले कल के दिग्गज नेताओं के पास भी नहीं बची और फिर हम कौनसे सत्तर से नीचे हैं | संन्यास की उम्र दरवाजे पर दस्तक दे रही है | वैराग्य का समय है, अब सेल्फी वाली सेल्फिसनेस ठीक नहीं है  |


No comments:

Post a Comment