बीमा, कफ़न और लंच
बैंक की पासबुक में डी.ए. की किश्त की प्रविष्टि देखने की उत्कंठा ने इतना अंधा बना दिया कि ४५ डिग्री गरमी में दिन के दस बजे बैंक के लिए निकल पड़े | बैंक पहुँचते-पहुँचते हालत खराब | पसीने में तर बतर, चक्कर आने लगे, लगा गिर पड़ेंगे | |वातानुकूलित बैंक में पहुँचकर कूलर का ठंडा पानी पिया तो जान में जान आई | वास्तव में कभी कभी लगता है कि सुबह नाश्ता करके और दुपहर का खाना लेकर बैंक में ही आ बैठें और ठण्ड-ठण्ड में शेखावाटी की मारक गरमी काट दें लेकिन एक-दो दिन की बात और है अन्यथा लोकतंत्र में मनोनुकूल मौसम में बैठने का अधिकार केवल सेवकों का है |वोटर तो कहने भर को मालिक हैं |
संबंधित क्लर्क कोई भला युवक था, बोला-मास्टर जी, क्यों इस गरमी में मरने को चले आए |घर पर बैठते |सुना नहीं, आन्ध्र और तेलंगाना में एक हजार से ऊपर मर गए हैं |डी.ए. की किश्त तो जब आएगी तब आएगी, आप की जल्दी से क्या होता है ? और अगर जान इतनी ही फालतू है तो बीमा तो करवालो |बीस रुपए में दो लाख का होता है |और उसने हमारे आगे फॉर्म रख दिया | जैसे ही फॉर्म भरने लगे तो उसने पूछ लिया- उम्र कितनी है ? हमने कहा- दोनों की तिहत्तर-तिहत्तर साल है |
उसने फॉर्म हमारे हाथ से छीन कर कहा- तो फिर बेकार में क्यों फॉर्म खराब करते हो ? यह सुविधा केवल सत्तर साल से नीचे वालों के लिए है |
हमने कहा- तो क्या हम भारत के नागरिक नहीं हैं, क्या हमारी ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं है ?
बोला- है, लेकिन आप उसे इतने वर्ष पेंशन लेकर वसूल कर चुके हैं | जब बड़े-बड़ों को सत्तर साल के नियम के तहत घर बैठा दिया तो आप भी घर बैठें | जब सरकार की बारह रुपए में कफ़न की कोई योजना आए तो खरीद लेना |अभी तो बारह रुपए वाली बीमा योजना में आप शामिल नहीं हो सकते | और हाँ, डी.ए. का एरियर अभी नहीं आया है | चाहो तो कूलर का एक गिलास ठंडा पानीऔर पीलो और घर जाओ |
उस वातानुकूलित स्थान में भी हमारा पारा चढ़ गया लेकिन हमारे पारे की किसे परवाह ? हम कोई रेलों और बसों का आवागमन तो रोक नहीं सकते, चक्का तो जाम कर नहीं सकते कि जीतने के बाद पाँच साल दर्शन तक न देने वाले मंत्री जी हमसे वार्ता करने आएँ |फिर भी हमसे रहा नहीं गया- बोले , हम किसी के मोहताज़ नहीं हैं | सिर पर रखा अपना गमछा दिखाते हुए कहा- हम तो अपना कफ़न सिर पर बाँध कर चलते हैं |हमारा जीवन अपने दम पर है या भगवान की कृपा पर | हमारी सुरक्षा के लिए कोई कमांडो नहीं है |अंधड़, बाढ़, सूखा, भूकंप,खेती का खराबा अपने बल पर झेलते हैं |बेटा, बारह रुपए में न सही बीमा; तू तो बारह रुपए में कोई खाना खाने की स्कीम हो तो बता |
बोला- मास्टर जी, वह स्कीम तो बहुत पहले से है, आपको पता नहीं ? बहुत सरल है | सांसद बन जाओ और संसद की कैंटीन में पेलो बारह रुपए संतुलित शाकाहारी लंच |चाहो तो पास देकर किसी भी ऐरे-गैरों, मित्रों, परिवार वालों को भी इस 'माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम' सेवा में शामिल कर लो |
वास्तव में बहुत सरल उपाय है लेकिन अब सत्तर साल से ऊपर वालों को कोई टिकट भी नहीं देगा |
बैंक की पासबुक में डी.ए. की किश्त की प्रविष्टि देखने की उत्कंठा ने इतना अंधा बना दिया कि ४५ डिग्री गरमी में दिन के दस बजे बैंक के लिए निकल पड़े | बैंक पहुँचते-पहुँचते हालत खराब | पसीने में तर बतर, चक्कर आने लगे, लगा गिर पड़ेंगे | |वातानुकूलित बैंक में पहुँचकर कूलर का ठंडा पानी पिया तो जान में जान आई | वास्तव में कभी कभी लगता है कि सुबह नाश्ता करके और दुपहर का खाना लेकर बैंक में ही आ बैठें और ठण्ड-ठण्ड में शेखावाटी की मारक गरमी काट दें लेकिन एक-दो दिन की बात और है अन्यथा लोकतंत्र में मनोनुकूल मौसम में बैठने का अधिकार केवल सेवकों का है |वोटर तो कहने भर को मालिक हैं |
संबंधित क्लर्क कोई भला युवक था, बोला-मास्टर जी, क्यों इस गरमी में मरने को चले आए |घर पर बैठते |सुना नहीं, आन्ध्र और तेलंगाना में एक हजार से ऊपर मर गए हैं |डी.ए. की किश्त तो जब आएगी तब आएगी, आप की जल्दी से क्या होता है ? और अगर जान इतनी ही फालतू है तो बीमा तो करवालो |बीस रुपए में दो लाख का होता है |और उसने हमारे आगे फॉर्म रख दिया | जैसे ही फॉर्म भरने लगे तो उसने पूछ लिया- उम्र कितनी है ? हमने कहा- दोनों की तिहत्तर-तिहत्तर साल है |
उसने फॉर्म हमारे हाथ से छीन कर कहा- तो फिर बेकार में क्यों फॉर्म खराब करते हो ? यह सुविधा केवल सत्तर साल से नीचे वालों के लिए है |
हमने कहा- तो क्या हम भारत के नागरिक नहीं हैं, क्या हमारी ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं है ?
बोला- है, लेकिन आप उसे इतने वर्ष पेंशन लेकर वसूल कर चुके हैं | जब बड़े-बड़ों को सत्तर साल के नियम के तहत घर बैठा दिया तो आप भी घर बैठें | जब सरकार की बारह रुपए में कफ़न की कोई योजना आए तो खरीद लेना |अभी तो बारह रुपए वाली बीमा योजना में आप शामिल नहीं हो सकते | और हाँ, डी.ए. का एरियर अभी नहीं आया है | चाहो तो कूलर का एक गिलास ठंडा पानीऔर पीलो और घर जाओ |
उस वातानुकूलित स्थान में भी हमारा पारा चढ़ गया लेकिन हमारे पारे की किसे परवाह ? हम कोई रेलों और बसों का आवागमन तो रोक नहीं सकते, चक्का तो जाम कर नहीं सकते कि जीतने के बाद पाँच साल दर्शन तक न देने वाले मंत्री जी हमसे वार्ता करने आएँ |फिर भी हमसे रहा नहीं गया- बोले , हम किसी के मोहताज़ नहीं हैं | सिर पर रखा अपना गमछा दिखाते हुए कहा- हम तो अपना कफ़न सिर पर बाँध कर चलते हैं |हमारा जीवन अपने दम पर है या भगवान की कृपा पर | हमारी सुरक्षा के लिए कोई कमांडो नहीं है |अंधड़, बाढ़, सूखा, भूकंप,खेती का खराबा अपने बल पर झेलते हैं |बेटा, बारह रुपए में न सही बीमा; तू तो बारह रुपए में कोई खाना खाने की स्कीम हो तो बता |
बोला- मास्टर जी, वह स्कीम तो बहुत पहले से है, आपको पता नहीं ? बहुत सरल है | सांसद बन जाओ और संसद की कैंटीन में पेलो बारह रुपए संतुलित शाकाहारी लंच |चाहो तो पास देकर किसी भी ऐरे-गैरों, मित्रों, परिवार वालों को भी इस 'माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम' सेवा में शामिल कर लो |
वास्तव में बहुत सरल उपाय है लेकिन अब सत्तर साल से ऊपर वालों को कोई टिकट भी नहीं देगा |
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