छोटी शंका : बड़ा समाधान
जैसे ही पत्नी चाय लेकर आई, तोताराम उठ खड़ा हुआ,बोला- क्षमा करना बन्धु, चाय फिर कभी, मैं घर चलता हूँ |
पूछा तो कहने लगा-लघु शंका का समाधान करना है |
-तो यहाँ भी तो शौचालय है, विद्या बालन की सलाह और 'स्वच्छ भारत :स्वस्थ भारत' योजना के तहत- हमने कहा |
बोला- यह सब योरप, अमरीका और संयुक्त राष्ट्र संघ की साजिश थी जिसके चलते देश की गाढ़ी पसीने की कमाई और संसाधन गटर में बहा दिए |कोई ज़रूरत नहीं है शौचालय को गन्दा करने और फिर सफाई के लिए दुर्लभ जल को व्यर्थ करने की |मैं तो अब लघु शंका के फलस्वरूप निसृत इस अमूल्य संपदा को यहाँ-वहाँ व्यर्थ नहीं करता |गड़करी जी ने बताया है कि यह एक श्रेष्ठ पोषक खाद है जिसमें यूरिया पर्याप्त मात्र में मिलता है | सो जैसे ही ५० लीटर का कैन भर जाएगा उनके दिल्ली के पते पर भिजवा दूँगा | महाराष्ट्र सरकार तो बड़े माल्स और आवासीय कोलोनियों से इस पदार्थ के संग्रहण की विशेष व्यवस्था करने वाली है |
अच्छा हुआ जो देश कांग्रेस-मुक्त हो गया अन्यथा पता नहीं, कब तक यह अमूल्य संपदा व्यर्थ होती रहती |जब पहली बार १९७७ में दिल्ली कांग्रेस- मुक्त हुई थी तो मोरार जी देसाई आए थे जिन्होंने इस तरल पदार्थ के बल पर स्वयं के स्वस्थ रहने के रहस्य का उद्घाटन किया | देश का दुर्भाग्य कि वे अधिक समय सत्ता में नहीं रहे और तू जानता है कि कोई भी फैशन किसी के सेलेब्रिटी रहने तक ही चलता है | गड़करी जी को अपने पद पर रहते-रहते इस पदार्थ का अधिक से अधिक लाभ जनता तक पहुँचा देना चाहिए अन्यथा लोग भूलते देर नहीं लगाएँगे |
हमने कहा- वास्तव में तोताराम, इस देश का यही दुर्भाग्य है कि हम अपने स्वदेशी ज्ञान का सदुपयोग करने की बजाय दूसरे देशों की नक़ल करने लग जाते हैं |जो लोग इस स्वदेशी ज्ञान का महत्व समझते हैं वे बिना किसी विशेष खर्चे के काम बना ले जाते हैं |एक लोकोक्ति है-पेशाब में दिए जलना | जिन्होंने समझदारी से काम लिया वे अपने समय के शक्तिशाली लोगों के पेशाब का संग्रह करते रहे |दुनिया अँधेरे में भटकती रही और उनके घर रोशन रहे | आज तो यह दीप-प्रज्ज्वलक पदार्थ ग्राम पंचायत से लेकर दिल्ली तक पर्याप्त मात्र में उपलब्ध है |राजधानियों में तो सदैव से समझदार लोगों द्वारा 'मूत में से मच्छी पकड़ने' की परंपरा रही है |तेरे जैसे नासमझ मछुआरे लंका और पाकिस्तान की तरफ मछली पकड़ने जाते हैं और नावों सहित गिरफ्तार हो जाते हैं |
बोला- शरीर मनुष्य के भोजन के सभी तत्त्व अवशोषित नहीं कर पता | वे उसके मूत्र में आ जाते हैं | ये सब जैविक होते हैं इसलिए पौधे रासायनिक खाद की बजाय इन्हें शीघ्र स्वीकार करते हैं |इसलिए लघु शंका सृजित यह तरल पदार्थ एक अच्छी खाद है | बिना बात गडकरी जी की टाँग खींच रहा है | मैं तो कहता हूँ कि विकास को प्रतिबद्ध सरकार को देश की नदियों से पहले देश के मूत्रालयों को जोड़ने का काम करना चाहिए जिससे किसानों को सस्ती और अच्छी खाद पर्याप्त मात्र में उपलब्ध हो सके |
हमने कहा- गड़करी जी ने मंत्रियों के बँगलों से यह पदार्थ एकत्रित करवाया होगा जिनमें सभी पोषक तत्त्व होते हैं | तू जैसा पानी पीता है उससे निर्मित पदार्थ से तो अच्छे भले पौधे भी मर जाएँगे |वैसे हमें तुम्हारे गड़करी जी से एक शिकायत है-यदि उन्होंने इस पदार्थ के महत्त्व का उद्घाटन पहले कर दिया होता तो मोदी जो बिना बात कनाडा नहीं भागना पड़ता, किसी का एहसान नहीं लेना पड़ता और देश का अरबों रुपया भी बच जाता |
तोताराम चौंका- वह कैसे ?
हमने कहा- ऐसे कि इस 'तरल-तत्त्व' में यूरिया ही नहीं, यूरेनियम भी होता है |
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