Aug 9, 2009

चने के झाड़ पर

आदरणीय अडवानी जी,
नमस्कार । आशा है सानंद होंगे । कई महीनों से आप से सम्पर्क नहीं किया । कई कारण थे । एक तो यह कि चुनाव थे । चुनावों में तो वार्ड मेंबर तक इतना व्यस्त हो जाता है कि दम मारने तक की फुर्सत नहीं रहती तिस आप तो प्रधानमंत्री-इन-वेटिंग थे । किस्मत की बात वेटिंग और पाँच साल आगे खिंच गई ।

वेटिंग का चक्कर सबसे ज्यादा इस मनुष्य नाम के प्राणी के ही लगा हुआ है । यह जो कुछ नहीं होता वही बनने के लिए वेट करता रहता है सो इस चक्कर में जो होता है उसका भी आनंद नहीं ले पाता । कवि ने कहा है-
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, रुत आए फल होय ॥

पर मनुष्य को धीरज कहाँ । साधारण सिपाही यदि सारे दिन थानेदार बनने के सपने देखता रहता है तो अपनी हफ्ता-वसूली तक भूल जाता है । प्रेमिका के चक्कर में पत्नी भी भाग जाती है ।

ये बातें साधारण आदमियों की है । आप तो हमेशा से सदा से ही निष्काम और अनुशासित सिपाही रहे हैं । पहले संघ में
फिर जनसंघ में और उसके बाद भाजपा में । आत्मा भी मनुष्य योनी पाने के लिए चौरासी लाख योनियों में भटकती रहती है और मनुष्य योनि मिल जाने के बाद मोक्ष में चक्कर में तरह-तरह की तीर्थ यात्राएँ करती रहती है । आप ने भी तरह-तरह की यात्राएँ कीं पर वे सब सेवा के लिए थीं । विरोधी चाहे कुछ भी कहें पर हम जानते है जब आप राजस्थान की तपती रेत में गाँव-गाँव घूमते थे तब कौन सा स्वार्थ था ।

हम बुज़ुर्ग भले ही युवकों को सीधा समझें पर आजकल के युवक बड़े चालाक होते हैं । मीठी बातें करके बुजुर्गों को चने के झाड़ पर चढ़ा देते हैं और तमाशा देखते हैं । हमारे मोहल्ले के कुछ युवक है जो एक बुज़ुर्ग पंडित जी को चढ़ाकर चुनावों में खड़ा कर देते हैं, उनसे मिठाई खाते रहते हैं और हर बार पंडित जी की जमानत ज़ब्त होती रहती है । वैसे तो न आप माया में भटकते है और न इतने भोले कि ज़ल्दी से किसी की बातों में आ जाएँ । पर अति बुरी होती है । तुलसी दास जी ने भी कहा है- "अतिशय रगड़ करे जो कोई । अनल प्रकट चन्दन तें होई ॥" सो लगता है आप भी अगली कतार के कुछ नेताओं के बहकावे में आ गए और प्रधानमंत्री-इन-वेटिंग बन गए । और किस्मत की बात देखिये कि कभी चुनाव न लड़ने वाले प्रधान मंत्री बन गए ।

वैसे तो आप ज्ञानी और हिम्मत वाले हैं । गीता के ज्ञाता हैं । पर कभी-कभी हाल-चाल पूछने वाले ही इतने सक्रीय हो जाते हैं कि जान निकाल लेते हैं । एक बार एक दुकानदार एक ग्राहक से पिटते-पिटते बचा । एक मनचला यह दृश्य देख रहा था । अब तो जब भी वह दुकान पर आता यही कहता- लाला, उस दिन तो वह आपको पीट ही देता । एक दिन तंग आकर लाला बोला- वह तो पीटता या नहीं पर मुझे लगता है कि तू मुझे ज़रूर पीटेगा ।

इसलिए हमने यही सोच कर पत्र नहीं लिखा कि पता नहीं किस हालत में होंगे । पर अब जब पिछले महीने आप कर्नाटक आए और मेडम के साथ परंपरागत 'कोडावा' ड्रेस में देखा तो मन को बड़ी शान्ति मिली । दूल्हे जैसी ड्रेस लग रही थी । कहीं चेहरे पर तनाव नहीं । हमेशा से ज्यादा खुश । अगर सफ़ेद मूँछे न दिखती, क्लीन शेव्ड होते तो कोई नहीं कह सकता था कि अस्सी पार कर चुके हैं । इसके बाद जब दिल्ली में अल्पसंख्यक मोर्चे में आपका फोटो देखा तो पूरी तसल्ली हो गई कि अब पहले वाला तनाव कहीं नहीं है और आप पूरी तरह फॉर्म में आ चुके हैं । खैर, जो बीत गई सो बात गई ।

यह तो अच्छा हुआ कि आप लोगों के बहकावे में नहीं आए वरना चढ़ाने वाले बड़े दुष्ट होते हैं । आदमी का जुलूस निकलवा देते हैं । मेवाड़ के एक महाराणा ने प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक बूँदी का किला न जीत लेंगें तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे । अब किला जीतना कोई मज़ाक तो है नही । शाम तक महाराणा जी के होंठों पर पपड़ी आगई । चमचों ने मौका देख कर कहा- हुकम, इस तरह प्राण देने से क्या फ़ायदा । किला भी जीतेंगे पर थोड़ा समय तो लगेगा ही । इसलिए जब तक असली किला न जीत लें तब तक एक नकली किला बना कर उसको जीत लेते हैं । काफी ना-नुकर के बाद महाराणा माने । पर किस्मत की बात देखिये कि जिस मकान को नकली किला बनाया गया उसमें बूँदी का एक सैनिक काम करता था सो उसने गोली चला दी । उसे मारकर नकली किला तो जीत लिया पर मज़ा तो किरकिरा होगया । इसे कहते हैं- काणी का तो काजल भी लोगों को नहीं सुहाता ।

खैर, आप ऐसे किसी नाटक के बहकावे में नहीं आए । हमारे एक मित्र हैं । उन्हें एम.पी. बनने की बड़ी लालसा है पर ना तो इतना पैसा और ना ख़ुद के सिवा कोई वोट देने वाला । भाई लोग उन्हें मज़ाक में एम.पी. साहब कहने लगे । उनका नाम है महावीर प्रसाद । बात पूरी तरह असत्य भी नहीं है । महावीर प्रसाद का शोर्ट फॉर्म बनता ही एम.पी. है । सो पूरा नहीं तो अर्द्धसत्य तो है ही । धीरे-धीरे हालत यह हो गई है कि सब उनको इसी संबोधन से पुकारते हैं ।

अगर आपकी जगह कोई दूसरा होता तो लोग उसका नाम परिवर्तन करके पूरण मल रख देते और शोर्ट फॉर्म करके पी.एम., पी.एम. पुकारने लग जाते । हमें विश्वास है कि आपने हिम्मत नहीं हारी है । हम आपको वास्तव में पी.एम. पुकारने की प्रतीक्षा में हैं ।

२५-७-२००९

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Jhootha Sach

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