Apr 11, 2011

स्वागत विशेषज्ञ हम

( वारेन बफेट और बिल गेट्स दोनों २३ मार्च २०११ को भारत आए । दोनों का भव्य स्वागत हुआ । )


वारेन बफेट साहब,
आप आए, धन्न भाग । वैसे आजकल आप ही नहीं, सारी दुनिया भारत में आने के लिए मरी जा रही है । पिछले साल ही आपने देखा होगा कि दुनिया की पाँचों महाशक्तियाँ रूस, चीन, अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन- सब एक महीने के भीतर ही इस देश का चक्कर लगा गए । आखिर कोई तो बात है ही ना; वरना बताइए ये सब और आप, और बिल गेट्स कितनी बार गए अब तक पकिस्तान और चीन ? क्योंकि पाकिस्तान में तो वे हर आने वाले से आतंकवाद से लड़ने के नाम पर सहायता माँगते है और चीन वाले किसी का सामान लेने के बजाय अपना ही माल भिड़ाने की फिराक में रहते हैं ।

पहले दुनिया भर से लोग यहाँ ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे, फिर लूटने, फिर व्यापार के बहाने यहाँ के मालिक बनने- जैसे अंग्रेज, पुर्तगाली आदि । और अब यहाँ राज करने और लूटने के लिए वैसे आने की ज़रूरत नहीं रही । ज़माना बदल गया है । पैसा ही तो चाहिए । और यदि वह बिना हथियार उठाए या राज किए मिल जाए तो फिर क्या ज़रूरत है गले में घंटी बाँधने की । सामान बेचो, नोट जेब में रखो और जय राम जी की । पहले यह देश जगद्गुरु था, सोने की चिड़िया था, मगर अब तो मात्र एक बाज़ार है जहाँ कोई भी आकर कुछ भी बेच सकता है । यहाँ तो वह हालत हो रही है जैसे किसी का बाप खूब पैसे छोड़ कर मर जाए और बेटे में न कोई अकल हो और न कोई अच्छी आदत । फिर उससे पैसे निकलवाने में कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ती । सो समझिए कि आजकल भारत में इसी लिए आने वाले लोगों की भीड़ लगी हुई है । बेवकूफ सपूत को पटाने की लिए कोई उसे महाशक्ति बता रहा है, तो कोई महान लोकतंत्र और कोई सबसे तेज़ी से बढती अर्थव्यवस्था । पर हम जानते हैं कि वास्तव में इस देश की हालत ? कब्र में कितनी उमस है यह जनाजे में आने वाले थोड़े ही समझ सकते हैं । यह तो मुर्दा ही बता सकता है । मगर वह बोल नहीं सकता और दुनिया में इतनी संवेदना नहीं है कि समझ सके । बाहर से आने वाले, कमीशन देकर सौदा पटाने वाले तो वह स्वागत देखते हैं जो दलाल उनका करते हैं ।

आप तो खैर, दानवीर हैं और दुनिया के नंबर तीन धनपति हैं और सुना है कि आपने बहुत सा धन ( कोई तीस बिलियन डालर ) दान में भी दिया है जो आपकी संपत्ति का कोई साठ प्रतिशत है । हमारी तो गणित भी इतनी अच्छी नहीं है कि हिसाब लगा सकें कि कितने मास्टरों की, कितनी जिंदगियों की कुल कमाई का बराबर है यह राशि ? वैसे हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि यदि हमारे पास इतनी संपत्ति होती तो हम उसका ६० प्रतिशत क्या, ९९.९९९९९ प्रतिशत दान में दे देते । खैर, आपने अपने मित्र बिलगेट्स की ही एक संस्था को यह राशि दी है जो आशा है सही ढंग से इसका उपयोग करेगा । वैसे यह बात और भी है कि सेवा का धंधा करने वाले बड़े 'वैसे' होते हैं । वे आदमी तो क्या, भगवान को भी चूना लगा देते हैं ।

होने को तो हमारे यहाँ भी कई दानी हुए हैं जैसे- शिवि, दधीचि, कर्ण आदि मगर उन्हें मीडिया ने पुराना मानकर कोई ज्यादा कवरेज नहीं दिया । वैसे भी उनका दान कोई महत्त्वपूर्ण नहीं है क्योंकि दधीचि के पास तो कुछ था भी नहीं । शरीर पर माँस तक नहीं था । ये तो खैर, देवता संतोषी थे जो माँस नहीं तो हड्डियों पर ही मान गए । अब हड्डियों का भी कोई मोल होता है क्या ? एक थे शिवि जिन्होंने एक कबूतर के बदले छद्मवेशी इंद्र को थोड़ा सा माँस दे दिया और दानी बन गए । आपके तीस बिलियन डालर में तो इतना माँस और हड्डियाँ आ जाएँ कि सारा चीन बरसों तक खाता रहे तो भी नहीं निबटे ।

आप जब आए तो हम यही सोच रहे थे कि आप अबकी बार बिल गेट्स की तरह कुछ दान-दक्षिणा देने आए हैं मगर बाद में पता चला कि आप तो यहाँ कुछ कंपनियाँ खरीदने आए हैं । इस समय ऐसे सौदों के लिए भारत से बेहतर कोई और देश नहीं है । यहाँ कमीशन खाकर सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ सस्ते में बेच रही हैं । एक खाद का कारखाना हुआ करता था सिंदरी में । सुना करते थे कि वह एशिया का सबसे बड़ा खाद का कारखाना है । उसे सरकार ने तीन सौ करोड़ में बेच दिया । इसी तरह एक अल्यूमिनियम का कारखाना था जिसे भी बहुत सस्ते में बेच दिया । और इसी दौरान एक निजी कारखाने को ख़रीदा भी जिसका वास्तविक से बहुत ज्यादा मूल्य दिया गया । इस प्रकार दोनों तरह से देश को नुकसान हुआ । मगर इस समय देश के नुकसान-फायदे से ज्यादा लोग अपने व्यक्तिगत फायदे की फिक्र में हैं । सो कमीशन देकर अच्छे-अच्छे सरकारी कारखाने हथियाने का यह सबसे बढ़िया मौका है । आप बहुत सही समय पर आए हैं । वैसे आप समय को पहचनाने के लिए ही तो जाने जाते हैं । कब, कौनसी कंपनी खरीदना है यह तो कोई आपसे सीखे ।

हमने आपके बारे में पढ़ा है कि आपने दस वर्ष की आयु में पहला शेयर खरीदा और उसमें अच्छा मुनाफा कमाया । शेयर भी एक प्रकार का जुआ ही है । बस थोड़ी सी अक्ल और कैल्कूलेशन आना चाहिए । हमने भी आपकी ही तरह से दस वर्ष की उम्र में ही एक सट्टा खेला था । हुआ यूँ कि एक रात हमें सपना आया कि साँप ने हमें काट लिया । जब हम अपना सपना अपने एक मित्र को बता रहे थे तो भगवाना राम ताऊ ने सुन लिया । ताऊ नंबरों का सट्टा किया करते थे । इस सट्टे में एक से दस तक नंबरों पर सट्टा लगता है । यदि आपका बताया नंबर आ गया तो आपको उस दिन के भाव के अनुसार रुपए मिल जाते हैं । मान लिया कि आपने कहा कि कल सात नंबर आएगा और उस दिन सात के अंक का भाव है दस रुपए और आपने एक रुपया लगाया और अगले दिन सात नंबर ही आ गया तो आपको एक रुपए के दस रुपए मिल जाएँगे । ताऊ ने हमारी बात सुन कर कहा कि कल सत्ता (७ का अंक ) आएगा । इसके बाद हमारे आग्रह पर ताऊ ने हमें सारी प्रक्रिया समझाई । हमने कहा- ताऊ, हमारे पास पैसे नहीं हैं, नहीं तो हम भी एक रुपया लगा देते । ताऊ को पता नहीं हमारी किस्मत पर या अपने शकुन शास्त्र पर गहन विश्वास था । उन्होंने हमारे नाम से भी एक रुपया दस के भाव में लगा दिया । और मज़े की बात कि अगले दिन 'सत्ता' ही आ गया । हमने वे रुपए ताऊ के पास ही जमा रखे । अब तो हमें रोज रात को सपने आने लगे । हम सुबह उठते ही ताऊ को सपना सुनाते और ताऊ उनका अर्थ निकाल कर सट्टे के नंबर लगाते रहते । हम भी जब तब उन दस रुपयों में से ताऊ के थ्रू कभी चवन्नी, कभी अठन्नी लगाते गए मगर कभी हमारा नंबर नहीं लगा । और एक दिन हमारे दस रुपए समाप्त हो गए । और इस प्रकार हमारे इन्वेस्टमेंट करने की कहानी किशोरावस्था से पहले ही समाप्त हो गई ।
अब हम कभी-कभी सोचते हैं कि कहीं ताऊ ने ही तो हमारे दस रुपए नहीं पचा लिए क्योंकि हम तो बाज़ार में जाकर नंबरों का भाव और उस दिन का नंबर मालूम कर नहीं सकते थे । जो ताऊ ने कह दिया सो सच मानना पड़ता था । पर आपके बिल गेट्स-मिरांडा फाउन्डेशन को दिए गए दान के बारे में ऐसी बदमाशी होने की संभावना नहीं हैं क्योंकि वे भी बहुत ईमानदार और धनवान आदमी हैं । ईमानदार होना बड़ी बात है वरना ज़रूरी नहीं है कि धनवान ईमानदार हो ही बल्कि हमने तो यहाँ तक देखा है कि जो ज्यादा धनवान है वह ज्यादा कमीना और बेईमान है । अब यदि थोड़ी बहुत ईमानदारी बची है तो वह किसी गरीब में ही बची है क्योंकि वह ९९ के फेर में नहीं है ।

हमारे एक चाचा थे जो पंडिताई का धंधा करते थे । व्यापार का कोई अनुभव नहीं । एक बार प्याज के भाव बहुत चढ़ गए । सो उन्होंने भी अगले साल प्याज का स्टाक करने का विचार किया । कई बोरे प्याज खरीद कर धर्मशाला में रखवा दिए और अपने धंधे में लग गए । प्याज के भाव तो नहीं बढ़े मगर गर्मियों में प्याज सड़ गए और बदबूदार तरल पदार्थ कमरे से बाहर निकल कर बहने लगा । फायदा होना तो दूर उन सड़े प्याजों को फिंकवाने का खर्च और लगा । सो फायदे का सौदा पहचानने और उसमें समय से पैसे लगाने की समझ हर किसी में नहीं होती ।

सो हमारा इन्वेस्टमेंट का अनुभव तो कोई अच्छा नहीं है फिर भी हम यहाँ के नेताओं और सेवकों को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं सो आपको इसी क्षेत्र से संबंधित कोई सलाह दे सकते हैं । धंधा करने वाले आदमी को भला-बुरा नहीं देखना चाहिए । एक बार किसी सेठ से भूल से कोई अच्छा काम हो गया । मरने के बाद जब वह चित्रगुप्त के पास ले जाया गया तो उसे पूछा गया कि तुम्हें कहाँ भेजें ? तो सेठ ने कहा- महाराज, आप स्वर्ग-नर्क के चक्कर में नहीं पड़ें । मुझे तो आप दोनों के बीच में थोड़ी सी जगह दे दीजिए जहाँ दुकान लगा लूँगा । दोनों तरफ के ग्राहक आएँगे और दो पैसे की कमाई हो जाएगी । मतलब कि स्वर्ग में भी कमाई का ही ख्याल ।

एक सज्जन थे जो किसी के यहाँ भी मौत होने पर शोक व्यक्त करने अवश्य जाते थे । वहाँ वे मृतक के परिजनों के गले लगकर शोक व्यक्त करते और बहुत रोते जैसे कि उनका ही कोई स्वजन मर गया हो । बाद में जीवन की नश्वरता के बारे में बहुत भावपूर्ण ढंग से विचार व्यक्त करते और अंत में उस परिवार के एक आध व्यक्ति को बीमा पालिसी दे ही आते थे । एक और सज्जन थे । परचून के व्यापारी । कहीं भी जाते, भले ही रिश्तेदारी में तीए की बैठक में ही गए हों, आजकल के बुरे ज़माने की चर्च करते और फिर बात जीरे, दाल, धनिए आदि के सौदे पर आकर खत्म होती । सो आप तो काम का प्रकार मत देखिए । आप तो यह देखिए कि कम से कम इन्वेस्टमेंट करके कैसे अधिक से अधिक टेक्स फ्री धन कमाया जा सकता है ?

इस समय दुनिया में सबसे बढ़िया धंधा तो धर्म का है । सुनते हैं कि वेटिकन का दुनिया में ईसाई धर्म फ़ैलाने के लिए कोई पचासों ट्रिलियन का टर्न-ओवर है जिसमें से ईसाई बनने वालों को तो कोई १ प्रतिशत मिलता होगा बाकी ९९ प्रतिशत तो चर्च वाले अपने ऐश आराम और चोगे धुलवाने में खर्च कर देते हैं जैसे कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर पाकिस्तान में आने वाले एक डालर में से नब्बे सेंट तो आई.एस.आई. और अल-कायदा वाले खा जाते हैं और १० सेंट अफगानिस्तान की सीमा पर झूठ-मूठ की बंदूकें चलवाने और अखबारों में आतंकवाद से मज़बूती से लड़ने के समाचार छपवाने में खर्च किया जाता है । वैसे ही जैसे भारत सरकार का दिल्ली से चला एक रुपया आम आदमी तक पहुँचते-पहुँचते पाँच पैसे रह जाता है । फिर भी हमें धार्मिक धंधे का इतना अनुभव नहीं है कि आपका मार्ग दर्शन कर सकें । हाँ, धर्म जैसे ही कुछ भावनात्मक क्षेत्र हम आपको सुझा सकते है जिनमें काफी स्कोप हो सकता है । भावनात्मक धंधे में सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसकी ऑडिट गंभीरता से नहीं होती । वैसे तो गंभीर ऑडिट को भी प्रभाव, दबाव या खिलाव-पिलाव से सरल बनाना कोई कठिन नहीं है ।

इस धर्म-प्राण देश के बारे में कहा जाता है कि इसकी आत्मा तीन चीजों में बसती है- गाय, गंगा और गीता । यदि आप चाहें तो किसी धर्म-धुरंधर के साथ मिलकर इनमें से किसी भी क्षेत्र में धंधा कर सकते हैं । गायें यहाँ बहुत हैं । जितनी घरों में उससे ज्यादा सड़कों पर और उनसे ज्यादा गौशालाओं में । और यह संख्या गायों के अवैध रूप से कटते रहने के बावज़ूद है ।
आप तो यहाँ गौशाला का धंधा खोल लीजिए । आपको इसके बारे में सारी बातें मात्र पाँच हज़ार रुपए में बताने वाले मार्गदर्शक आसानी से मिल जाएँगे । कभी-कभी जाँच होने पर दिखाने के लिए थोड़ी सी खाली ज़मीन होनी चाहिए कि यहाँ है गौशाला । जहाँ तक गायों की बात है तो उन्हें वास्तव में रखने के लिए की ज़रूरत नहीं है । कभी भी चारे के चार तार फेंक देंगे तो सड़क पर घूमती हुई सैंकडों गाएँ वैसे ही बाड़े में आ जाएँगी । यदि थोड़ी बहुत गाएँ रखनी भी पड़ें तो इन्हें खिलाने की कोई खास ज़रूरत नहीं है । आपके यहाँ तो माँस के लिए गाएँ पाली जाती हैं । इसलिए उनका ज़ल्दी से ज़ल्दी मोटा होना ज़रूरी है पर ये गाएँ तो लोगों के दिल में दया उपजा कर चंदा लेने के लिए पाली जाती हैं इसलिए इनका मरियल होना ही इनकी विशिष्टता है । जितनी मरियल होंगी उतनी ही लोगों को दया आएगी और उतना ही अधिक चंदा मिलेगा । बस, एक बाबू रख लीजिएगा जो कागजों पर गायों के खाने, मरने, ब्याने, चंदे और सरकारी अनुदान आदि का हिसाब रखता रहेगा । एक गाय रखने पर सरकार की तरफ से बीस रुपए मिलते हैं । एक हजार गाएँ भी रखेंगे तो दिन के बीस हज़ार रुपर बिना किसी मेहनत के खरे हो गए । और ऊपर से चंदा-चिट्ठा अलग । धर्मात्मा कहलाओगे सो ऊपर से । यदि भगवान को भी गौशाला के कागजों से बहला सके तो स्वर्ग में सीट भी पक्की । लोक और परलोक दोनों सुधरने की पूरी संभावना ।

यदि आपको और धर्म का काम करके कुछ कमाने की इच्छा है तो गंगा सफाई का धंधा पकड़ लीजिए । दुनिया में पर्यावरण सुधारने के लिए नोबल पुरस्कार भी मिल सकता है । ओबामा को तो राष्ट्रपति बनते ही नोबल पुरस्कार के काबिल मान लिया गया तो आप तो वास्तव में पर्यावरण सुधारने का काम करेंगे । वैसे अब तक हमारे यहाँ के लोगों ने भी गंगा की सफाई करने का काम किया है और बड़ी सफाई से पूरा बजट निबटा दिया । गंगा का तो क्या है उसे तो वैसा ही रहना है । इतने पापों को धोते-धोते गन्दा होना स्वाभाविक ही है । और फिर टिहरी में बाँध बनने के बाद तो उसका अस्तित्त्व भी मिटने वाला है । ऐसा हो उसके पहले आप भी दस-बीस अरब कमा ही लीजिए । अमरीका वालों को ठेका देने में हमारी सरकार का अधिक विश्वास है । भले ही परमाणु बिजली घरों की सुरक्षा पर प्रश्न उठ रहे हों मगर यहाँ वे अमरीकी सहयोग से अवश्य बनेंगे । खैर, हम में तो जितनी अकल थी उस हिसाब से हमने निवेश के कुछ क्षेत्र आपको बता दिए, अब आगे आपकी मर्जी ।

आप कैसा धंधा करेंगे यह तो आप जाने और भविष्य, मगर आपने जो अपने स्वागत से गदगद होने की बात कही वह वास्तव में सच है । यह देश पुराने ज़माने से ही स्वागत का विशेषज्ञ है । यहाँ तो जो भी आया उसी का दिल खोलकर स्वागत हुआ । सिकंदर और मुहम्मद गौरी को तो हमारे यहाँ के स्वागत-प्रिय लोग सीमा पार से बुलाने तक गए । यहाँ वास्कोडिगामा आया तो उसका इतना भव्य स्वागत हुआ कि वह फिर योरप से और भी पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों और अंग्रेजों तक को बुला लाया । उन सब ने यहाँ सैंकडों वर्षों तक राज किया, हमें सभ्य बनाया । आज भी हम उनके गुण गाते नहीं थकते । अंग्रेजों का पहनावा, खान-पान और भाषा तो हमें इतने प्रिय लगे कि हमने अपने वाले सब भुला ही दिए । आज भी गोरे रंग को देखकर हमारी कमर और दिल अपने आप झुकने लग जाते हैं । अंग्रेजों के खेल क्रिकेट को तो हमने अपना धर्म ही बना किया है । आज भी महारानी एलिजाबेथ हमें भारत माता से कम नहीं लगती । आपके नाम-राशि एक वारेन एंडरसन भी यहाँ आए थे । उनके कारखाने से ऐसी ज़हरीली गैस निकली कि हजारों लोग मर गए और लाखों बीमार हो गए । मगर उसे भी गोरा और विदेशी होने के कारण हमने कोई नुकसान नहीं पहुँचाया बल्कि एक कलेक्टर और एक एस.पी. की अभिरक्षा में उसे सुरक्षित दिल्ली पहुँचाया और फिर वहाँ से सम्मान पूर्वक अमरीका के लिए विदा किया । सो स्वागत के मामले में तो हमारा कोई ज़वाब नहीं है । हमने तो विदेशी कुत्तों और गायों तक का इतना स्वागत किया कि अपने वाले कुत्तों और गायों को सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया, फिर आप तो गोरे हैं, दुनिया के नंबर दो अरबपति हैं और फिर कुछ न कुछ दान-दक्षिणा देकर ही जाएँगे । हमारे यहाँ तो स्कूल को प्लास्टिक की दो कुर्सियाँ दान देने वाले तक का साफा पहना कर अभिनन्दन कर दिया जाता है ।

हमें इस ज़रा से स्वागत के लिए इतनी प्रशंसा देकर शर्मिंदा मत कीजिए । आप तो बस आते रहिए । हमें स्वागत करने के अलावा और आता ही क्या है ?

२४-३-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. हम लोगों की विडम्बना के सिवा क्या है...

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  2. हम तो कसाब जैसों का भी आदर सत्कार करने वालों में से हैं। वो तो उन्होंने पहले बताया नहीं कि आ रहे हैं नहीं तो उनका भी स्वागत सत्कार करते।

    जोशी साहब, कायल हो गये हैं आपके।

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