Apr 11, 2011

फंक्शन से पहले फ्रेक्चर

राहुल जी,
नमस्ते । १ मार्च को एक्सरसाइज़ करते हुए आपकी टाँग में फ्रेक्चर हो गया । आशा है कि अब तक आपकी टाँग का फ्रेक्चर ठीक हो गया होगा । वैसे हमें लगता है कि फ्रेक्चर कोई सीरियस नहीं रहा होगा । तभी तो क्रिकेट मैच देखने मोहाली गए और उछल-उछल कर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा रहे थे । आप सोच रहे होंगे कि हमने आपके फ्रेक्चर के बारे में अब तक क्यों नहीं पूछा ? क्या पूछते, फ्रेक्चर तो ऐसी परेशानी है जिसे एक निश्चित समय तक झेलना ही पड़ता है । डाक्टर प्लास्टर पर ही लिख देता है कि फलाँ तारीख को खुलेगा प्लास्टर । वैसे प्लास्टर बँध जाने के बाद कोई खास परेशानी नहीं होती । आदमी लकड़ी का सहारा लेकर आराम से चल सकता है । वैसे ऐसी भी क्या एक्सरसाइज़ ? आपको कौन सा सलमान खान की तरह कमीज उतार कर अपनी सिक्स पैक बॉडी दिखानी है ? अभिनेताओं की बात और है । उन्हें तो अपने शरीर का प्रदर्शन करके और कमर मटका कर दो रोटी कमानी होती है । आपको तो दलितों के घर जाकर भारत की खोज करनी है । उसके लिए तो आप फिटफाट हैं ही ।

एक बार अटल जी की टाँग में भी चुनावों के समय फ्रेक्चर हो गया था मगर वे प्लास्टर बाँधे-बाँधे ही चुनाव प्रचार में जाते थे । प्लास्टर वाली टाँग को एक स्टूल पर रख लेते थे और भाषण देते रहते थे । एक बार लालू जी के साथ भी ऐसा ही हुआ था, पर काम-धाम नहीं छोड़ा । एक बार चुनाव प्रचार में किसी शरारती ने इंदिरा जी पर पत्थर फेंक दिया जिससे उनकी नाक पर चोट आ गई मगर उन्होंने चुनाव प्रचार जारी रखा । आपको भी यदि चुनाव के दौरान यह फ्रेक्चर हो जाता तो आप भी चुनाव प्रचार नहीं छोड़ देते ?

यह ठीक है कि लड़की की शादी में बिना बुलाए भी आदमी जाता है मगर लड़के की शादी में हजार नखरे करता है । ठीक है लड़के की शादी थी मगर इतना तो सोचते कि आप परिवार में सबसे बड़े मेल मेंबर हैं । आप किसको नखरे करके दिखाते ? औरतों के बस का सब कुछ थोड़े ही होता है । और फिर मंडप के नीचे सज्जन गोठ, मिलनी, पीळा ओढ़ना, साँख जलेबी खाना, रुपयों से नव वधू की अंजलि भरना, पहरावानी लेना, थैली रखना और शादी के बाद घर आकर पग पकड़ाई का दस्तूर- ये काम तो परिवार के सबसे बड़े पुरुष के ही होते हैं । यह ठीक है कि शादी-ब्याह में स्वस्थ हो तो मजा अधिक आता है पर आपको कौनसा घोड़ी के आगे नाचना था । यह काम तो छोरे-छापरों का होता है । वैसे आप कौन से बूढ़े हो गए मगर परिवार के बड़े-बड़ेरे होने के कारण न तो नाचना शोभा देता और न ही व्यस्तता के कारण संभव होता । अरे भई, वाकिंग स्टिक लेकर थोड़ा लँगड़ाते हुए चले जाते मगर जाना चाहिए था । आपके जाने से और शोभा होती । हमने तो ऐसे-ऐसे लोग देखे हैं जो खाट पर लेट कर भी बारात में जाते हैं फिर भले ही वहाँ मिठाई की जगह दाल-फुल्का खाने का नया झंडा खड़ा करना पड़े ।

प्रियंका भी जाती तो कितना मज़ा आता । अब वरुण के और कौनसे दस-बीस भाई-बहन हैं । आप दोनों ही तो हैं । प्रियंका घोड़ी की बाग गूँथती, नून-राई करती, दुल्हन के आने पर दरवाजा रुकवाई का नेग माँगती । वाड्रा जी भी नहीं गए । अब बताइए किसने तो वरुण को पेचा बाँधा होगा और किसने लड़की वालों के यहाँ जाकर माँडे में खाँड-पूड़ा बाँधा होगा, वरुण की साळाहेली ने किसे धड़ा मारा होगा ? सोनिया जी भी जातीं तो कितनी शोभा होती ? मुँह दिखाई, सिर-गूँथी के नेग क्या घर की बड़ी-बूढ़ियों के बिना मजा दे सकते हैं ?

आप कहेंगे कि दोनों की राजनीतिक पार्टियाँ अलग-अलग हैं । अरे, राजनीति, राजनीति ! पर ऐसी भी क्या राजनीति कि खून के रिश्ते ही टूट जाएँ ? और लोग भी राजनीति करते हैं मगर ऐसा तो कहीं नहीं देखा । विष्णु हरि डालमिया विश्व हिंदू परिषद में और संजय डालमिया उसके धुर विरोधी मुलायम सिंह के साथ । वसुंधरा राजे भाजपा के साथ तो ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के साथ । तो क्या शादी ब्याह में नहीं जाते एक-दूसरे के यहाँ ? क्या कांग्रेस ने ‘लिट्टे’ का समर्थन करने वाले करुणानिधि की पार्टी से समझौता नहीं किया ? राजनीति में कोई किसी का स्थाई शत्रु या मित्र नहीं होता । कुर्सी के लिए शत्रु से भी समझौता किया जाता है । फिर यह तो अपना ही खून है । क्या नाखून अँगुलियों से अलग हो सकते हैं ? पानी को कौन तलवार काट सकती है ?

एक बात और कहें ? शादी में जब दूल्हा घोड़ी पर बैठता है तो भाभी उसकी आँख में काजल लगाती है तो एक आँख में ही काजल डाल कर रुक जाती है और जब तक मनमाना नेग नहीं मिल जाता तब तक दूसरी आँख में काजल नहीं डालती । शादी के बाद जब दुल्हन ससुराल आती है तो देवी-देवता धोकने जाते हैं वहाँ देवर-भाभी सोट-सोटकी खेलते हैं । अब बेचारे वरुण को आपने इस आनंद से भी वंचित कर दिया । क्या आपने ब्रह्मचर्य व्रत ले रखा है ? कभी न कभी तो करेंगे ही शादी ? समय से कर लेते तो कितना आनंद होता वरुण की शादी में ?

खैर, आपकी मर्जी । हम कौन होते हैं बीच में टाँग अड़ाने वाले ? मगर सच मानिए, यह टाँग अड़ाना नहीं है । एक बुजुर्ग की नेक सलाह है । शादी-ब्याह तो समय पर होते ही हैं । वक्त निकल जाता है और बात रह जाती है । सो वक्त निकल गया मगर अब बात सदा चलेगी ।

अब जब आप अपनी शादी में वरुण, यामिनी और चाची को बुलाने जाएँगे तो किस बूते पर आग्रह करेंगे ?

३१-३-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. आदरणीय श्रीरमेश जोशीजी,

    बहुत बढ़िया व्यंग ।

    धन्यवाद ।

    मार्कण्ड दवे ।

    ReplyDelete