Apr 5, 2011

जीत के कारणों का मंथन


आज नया संवत्सर है । विक्रम संवत २०६८ का शुभारंभ । सुबह ज़ल्दी नहा लिए । अंग्रेजी नव वर्ष होता तो नहाने की कोई गारंटी नहीं थी । चबूतरे पर चाय और गुड़ की डली के साथ नव संवत्सर के शुभ प्रभात में तोताराम की प्रतीक्षा कर रहे थे । तोताराम आया । हमने शुभकामनाओं के साथ चाय प्रस्तुत की तो कहने लगा- यह सब बाद में, पहले मंथन करेंगे ।


हमने कहा- बंधु, जब से सरस डेरी में नकली दूध पकड़ा गया है, तुम्हारी भाभी ने मथानी ही उठाकर रख दी है । कहती है कि इस नकली दूध को बिलोने से क्या फायदा ? नेताओं के भाषण की तरह केवल झाग उठते हैं, घी-वी कुछ नहीं निकलता ।

तोताराम ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा- प्रभु, मैं दही बिलोने वाले मंथन के बारे में नहीं कह रहा हूँ । मैं तो उस मंथन के बारे में कह रहा हूँ जो राजनीतिक पार्टियाँ किया करती हैं ।

हमने पूछा- तो क्या तुमने कोई पार्टी ज्वाइन कर ली है ? क्या तुझे उसके ‘थिंक टेंक’ में शामिल कर लिया गया है ? और क्या तुम्हारी वह पार्टी हार गई है ? क्योंकि मंथन तो पार्टी की हार के बाद किया जाता है ।

तोताराम चिढ़ गया, कहने लगा- मुझे साँस तो लेने दे । सुब्रमण्यम स्वामी की तरह लगातार बातें उछाले जा रहा है । चुप होकर सुन । मैं न तो किसी पार्टी का सदस्य हूँ और न पार्टी हारी है । मैं तो भारतीय क्रिकेट टीम की जीत के कारणों पर मंथन करना चाहता हूँ ।

हमने कहा- इसमें मंथन करने की क्या ज़रूरत हैं टीम जीत गई सो जीत गई । जीतने के बाद तो देश के धन को भकोसने की योजनाएँ बनाई जाती हैं । बस, अब कुछ दिनों तक सारी समस्याओं का ज़िक्र बंद । उत्सव मनाओ और गर्व से फूल जाओ । दो-पाँच दिन में जब पेट्रोल के दाम बढ़ें या और कोई नया घोटाला सामने आए तब फिर शर्मिंदगी से पिचक जाना । बिल्ली के भाग से छींका टूटना था सो टूट गया । अब कम से कम अगले २८ वर्ष तक इंतज़ार कर फिर छींका टूटने का ।

'फिर भी जीत के कारणों पर विचार तो करना ही पड़ेगा जिससे भविष्य की रणनीति बनाई जा सके'- तोताराम बोला ।

हमने कहा- तो समझ ले मनमोहन सिंह जी मोहाली में मैच देखने गए और उनको देखकर भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान के खिलाड़ियों के हाथ-पाँव फूल गए और भारत जीत गया ।

तोताराम ने मना किया- नहीं, यह नहीं हो सकता । यदि इन तिलों में ही इतना तेल होता तो रोना ही क्या था ?

हमने एक और अनुमान व्यक्त किया- हो सकता है, प्रशंसकों के यज्ञ और मन्त्र जाप से यह जीत मिली हो ?

तोताराम ने फिर हमारी बात काट दी- अरे, मन्त्रों से ही कुछ होता तो खेल मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय में बाबा लोग होते । पहले जब गांगुली के भाई ने यज्ञ करवाया था तब क्यों नहीं जीते ? मंत्रों से महँगाई कम क्यों नहीं कर लेते ? मन्त्र बल से बिजली क्यों नहीं बना लेते ? सांसदों को घूस देकर परमाणु समझौते पर बहुमत हासिल करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती ।

'तो फिर हो सकता है कि धोनी ने मुंडन करवाले की मन्नत मानी थी उससे जीत गए हों'- हमने एक और अनुमान फेंका ।

'नहीं'- तोताराम ने फिर मुंडी हिला दी । 'यदि मूँडने से ही मनोकामना पूरी होती तो अब तक सारी भेडें वैकुंठ जा चुकी होतीं । मूँड मुँडाया जाता है तो ओले पड़ने की संभावना ही अधिक होती है' ।

हमने फिर दिमाग पर जोर दिया और कहा- तो फिर यह पवार साहब के गतिशील नेतृत्त्व का चमत्कार है कि टीम जीत गई ।

तोताराम फिर मुकर गया- पवार साहब की बात छोड़, उनका चमत्कार तो यह देश खाद्य वस्तुओं की महँगाई और कृषि की दुर्गति के रूप में कई वर्षों से देखता आ रहा है ।

हमने कहा- तो भैया, तू जीता और हम हारे । अब तो इस रहस्य का उद्घाटन कर । बता, हारते-हारते कैसे जीत गई अपनी टीम ?

तोताराम बोला- यह सब पूनम पांडे की कृपा है जिसके देह-दर्शन के लालच में खिलाड़ियों ने जान लड़ा दी और लोग हैं कि बेचारी को लानतें भेज रहे हैं ।

हम डाँटते तब तक तोताराम गुड़ की डली उठाकर चम्पत हो चुका था ।

४-४-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. लेकिन पूनम पांडे तो गायब हो गयी... ही ही ही....

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन व्यंग........

    ReplyDelete