Apr 10, 2011

बुड्ढा होगा तेरा बाप

(अमिताभ बच्चन ने 'बुद्धा' और 'बुड्ढा' में कन्फ्यूजन न हो इसलिए अपनी फिल्म 'बुड्ढा होगा तेरा बाप' में 'बुड्ढा' शब्द की स्पेलिंग रोमन में 'bbuddah' करवाई, १६-३-२०११)


महानायक जी,
नमस्कार । मन तो साष्टांग दंडवत करने का हो रहा है मगर क्या बताएँ कुछ उम्र और कुछ ब्राह्मण होने का दंभ आड़े आ रहा है । आप अन्यथा नहीं लीजिएगा । आपकी नई फिल्म आ रही है -'बुड्ढा होगा तेरा बाप' । पता नहीं, किस महान लेखक ने सुझाया है यह नाम मगर यह तय है कि इस नाम के द्वारा लेखक ने मानव-मन की एक बहुत बड़ी कमजोरी को उजागर कर दिया है । आदमी शादी, बाल-बच्चे और पोते-पोती सब कुछ चाहता है मगर न तो बुड्ढा दिखना चाहता है, न होना चाहता है और न ही बुड्ढा कहलाना चाहता है । जवान दिखने के लिए पता नहीं, क्या-क्या करता है ? सोचता है कि यमराज को धोखा दे देगा । उसे मालूम नहीं कि यमराज के पास सही जन्म तिथि लिखी हुई है और सही समय पर उसके दूत लेने आ जाएँगे और कोई बड़े-से-बड़ा वकील भी जमानत नहीं दिलवा सकेगा ।

आप कोई जवान नहीं हैं और न ही इस फिल्म में जवान का पार्ट किया होगा मगर यह तय है कि जवानों वाला दमखम जरूर दिखाया होगा वरना यह डायलाग हो ही नहीं सकता कि 'बुड्ढा होगा तेरा बाप' । हो सकता है कि फिल्म में आपको किसी ने 'बुड्ढा' कह दिया होगा तो आपने उसे डाँट पिलाई होगी- 'बुड्ढा होगा तेरा बाप' ।

तो फिल्म के नाम को यदि हिंदी में लिखा जाए तो कोई परेशानी नहीं मगर रोमन में लिखते समय आपको लगा कि कहीं लोग buddha को 'बुद्धा' न समझ लें जो कि एक महान व्यक्ति का नाम है । वैसे बुद्ध का नाम रोमन में लिखने के लिए 'buddh' ही पर्याप्त है फिर भी अधिकतर लोग अंग्रेजी के प्रभाव के कारण buddha लिखते हैं । मगर सब जानते हैं, विशेषकर भारतीय कि यह ‘बुद्ध’ ही है ‘बुद्धा’ नहीं है । वैसे जहाँ तक खतरे की बात है तो दोनों में एक जैसा ही है क्योंकि बुद्ध ने तो इस संसार के आकर्षण जवानी में ही छोड़ दिए थे और किसी बुड्ढे व्यक्ति से भी यही आशा की जाती है कि वह बूढ़ा होते-होते इस दुनिया का मोह छोड़ दे । मतलब कि दुनिया के मज़े न तो ‘बुड्ढा’ के लिए हैं और न ‘बुद्ध’ के लिए । वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम इसीलिए बनाए गए हैं । मगर अधिकतर लोग मरते-मरते भी से दुनिया से लिपटे रहना चाहते हैं उन्हें बुड्ढा होने, कहलाने और दिखने से डर लगता है । विशेषरूप से फिल्म वालों को क्योंकि उनकी तो रोटी-रोजी ही इस शरीर और नाचने-उछलने पर चलती है । आप तो खैर, अपनी उम्र के अनुसार ही रोल करते हैं मगर कभी-कभी कहानी की माँग के अनुसार 'कारे कजरारे' गाना पड़ जाए यह दूसरी बात है ।

तो आपने दर्शकों को भ्रम से बचाने के लिए 'बुड्ढा' की स्पेलिंग bbuddah करवा दी । बहुत बढ़िया । वैसे फ़िल्में दर्शकों को भ्रमित करने के ही बनाई जाती हैं । कहीं वास्तव में ही किसी आदर्श को फोलो नहीं करने लग जाएँ इसलिए भाण्ड या नचनिये टाइप आदर्श फिल्मों में दिए जाते हैं अन्यथा बाज़ार का सारा धंधा ही खतरे में पड़ जाएगा । यदि रोमन लिपि में हिंदी को लिखने की ध्वनियाँ नहीं है तो इसकी सज़ा आप हिन्दी को क्यों दे रहे हैं । रोमन में ट,ठ,ड,ढ और त,थ,द,ध की ध्वनियों को लिखने के लिए अलग-अलग चिह्न नहीं हैं । ढ़,ड़ की ध्वनियाँ लिखने के लिए भी नहीं । देवनागरी में लिखने में तो यह समस्या नहीं आती । रोमन में तो सत्ता और सट्टा, पट्टा और पत्ता, गधा और गढ़ा, परी और पारी, गन्दा और गंडा एक ही हैं । और फिर रामगढ़ जैसे शब्द तो आप रोमन में लिख ही नहीं सकते । या तो रामगर्ह (ramgarh) लिखें या रामगढ (ramgadh) जब कि यह शब्द है- रामगढ़ । आपने 'बुड्ढा' की जो रोमन स्पेलिंग सुझाई है उसका उच्चारण होगा 'ब्बुड्डाह' । बंधु, ऐसा तो कोई शब्द किसी भी भाषा में नहीं है । हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में तो हमें एक भी शब्द ऐसा नहीं मिला जिसके शुरु में दो व्यंजन जैसे कि क्क,ख्ख,ब्ब,ग्ग आदि आते हों । हो सकता है, आप दुनिया में जगह-जगह घूमते हैं । किसी भाषा में सुन लिया हो । और फिर जब कोई इस स्पेलिग्न से उच्चारण करेगा तो पहले ब..ब.. करना पड़ेगा तो लगेगा कि शाहरुख की तरह कहीं हकला तो नहीं रहा है । वैसे हम आपको इसका एक हल बताते हैं कि 'बुड्ढा' को क्यों न 'बूढ़ा' कर दिया जाए । न तो अर्थ में कोई फर्क पड़ेगा और न बोलने में कोई परेशानी आएगी । वैसे यह भी बताते चलें कि जब 'बुद्ध' का नाम लिखा जाता है तो या तो 'लोर्ड बुद्ध' लिखा जाता है या 'भगवान बुद्ध' ।

हमने चालीस वर्ष हिंदी पढ़ाई है और आपका जन्म भी एक हिन्दी-भाषी परिवार में हुआ है । आपके पिताजी भी भले ही अंग्रेजी के एम.ए., पी.एच.डी. थे, जीवन भर अंग्रेजी पढ़ाई मगर लिखा हिन्दी में ही । आपको भी हिन्दी अच्छी तरह से आती है फिर आप हिन्दी की ‘हिन्दी’ करने और हमारी रोटी-रोजी पर लात मारने पर क्यों तुले हुए हैं ? हम तो आपके अभिनय वाले क्षेत्र में टाँग नहीं अड़ाते । वैसे अपने भारत में यह भी एक धारणा है कि जो गलत हिंदी बोलता है उसे अंग्रेजी का ज्ञाता मान लिया जाता है ।

और अब बुड्ढे वाली बात, सो बंधु, यदि किसी ने बुड्ढा कह दिया तो क्या आसमान टूट पड़ा । काहे को गुस्सा करना । गुस्सा तो गुस्सा ही है चाहे फिल्म में किया जाए या वास्तव में । स्नायु तंत्र पर जोर तो पड़ता ही है । अब अपन कौनसे जवान हैं ? हम जुलाई २०१२ में सत्तर के हो जाएँगे और आप अक्टूबर २०१२ में । अब मान ही क्यों नहीं लेते सच को ? जितना जल्दी अपने को बूढ़ा मानेंगे उतना जल्दी ही दादा बन जाएँगे । बूढ़े होने का भी एक मज़ा है । पता नहीं, आपको उसका पता चला कि नहीं ? हम तो बुढ़ापे का मज़ा ले रहे हैं और यदि कोई बच्चा अभ्यासवश हमें 'अंकल' कह भी देता है तो हम उसको डाँट देते है और 'दादा' या 'बाबा' कहलवाकर ही पीछा छोड़ते हैं ।

वैसे सुना है कि इस फिल्म में हेमामालिनी हैं जो अभी ड्रीम गर्ल बनी हुई हैं तो फिर उसके साथ हीरो का काम करते हुए 'बुड्ढा' कहलवाना आप तो क्या, देवानंद जी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते ।

१७-३-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

3 comments:

  1. ही ही... देवानन्द साहब के सामने तो जवान ही हैं... नहीं..

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  2. anuman ko le post .......picture aaee nahee aur abheese publicity kardee aapne.....

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  3. लीजिये साहब, हमारी कई दुखती रगों पर हाथ रख दिया आपने। बाल काले नहीं करते हैं तो बराबर की उम्र वाली भी अंकल कह जाती है, ये पहली दुखती रग।
    अब दूसरी दुखती रग यही स्पेलिंग्स के चलते। मेरे बड़े लड़के का नाम मानस और छोटे का अनुराग है। मेरी जीभ टेढ़ी हो गई उनकी हर टीचर को यह कहते मनाते कि नाम के स्पैलिंग MAANAS' और 'ANURAAG' लिखे जायें या हिन्दी में ही चलने दें। जवाब यही आता है कि ’MANAS’ और ’ANURAG’ ज्यादा ठीक है।
    बाकी दुखती रगें फ़िर कभी:)

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