Dec 14, 2011

तोताराम का पुनर्जन्म

सवेरे-सवेरे अँगीठी के पास बैठकर चाय पी रहे थे कि कहीं पास से ही कभी कुत्ते के भौंकने और कभी बिल्ली की म्याऊँ की आवाज़ आई । बंद रसोई में कहाँ कुत्ता-बिल्ली ? सो एक-दो बार इधर-उधर देख कर फिर चाय पीने लगे । मगर फिर वही आवाजें । कमरे के दरवाजे के पास देखा तो तोताराम ने फिर म्याऊँ की । हमने पहचान लिया और पूछा- मनुष्य की आवाज़ छोड़ कर यह कुत्ते-बिल्ली की आवाज़ क्यों निकाल रहा है ?

तोताराम ने हमारे प्रश्न का उत्तर देने की बजाय प्रतिप्रश्न उछाल दिया- मास्टर, यह पुनर्जन्म वाला विभाग आजकल किसके पास है ?


हमने कहा- उसी के पास होगा जिसके पास हमेशा से रहा है । यह कोई हिलती-डुलती सरकार तो है नहीं कि कुर्सी को थामने के लिए किसी मंत्री का दर्ज़ा बढ़ाया जाए या किसी जातीय समीकरण को संतुलित करने के लिए या किसी के वोट-बैंक में सेंध लगाने के लिए मंत्रालय का प्रभार बदला जाए । यमराज और चित्रगुप्त की कुर्सियाँ तो स्थाई हैं जैसे कि मुलायम की कुर्सी अभिषेक के लिए, कांग्रेस की राहुल जी के लिए, माधवराव सिंधिया जी की कुर्सी ज्योतिरादित्य के लिए, बाल ठाकरे की उद्धव के लिए, मुरली देवड़ा की अपने युवराज के लिए, प्रकाश सिंह जी की कुर्सी जूनियर बादल के लिए या फारुख अब्दुल्ला की उमर अब्दुल्ला के लिए । मगर वहाँ स्वर्ग में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । मगर तू क्यों पूछ रहा है ?

बोला- मैं अगले जन्म में कुत्ता या बिल्ली बनना चाहता हूँ ।

हमने कहा- तोताराम, मनुष्य जन्म बड़े भाग्य से मिलता है तिस पर ब्राह्मणका जन्म और वह भी भारत भूमि पर जहाँ जन्म लेने के लिए देवता तरसते हैं । फिर तू क्यों पशु-योनि को प्राप्त होना चाहता है ? हाँ, जहाँ तक सुख-सुविधा की बात है तो यह सच है कि ब्राह्मण की स्थिति इस धर्मनिरपेक्ष शासन और समतावादी समाज में कुत्ते-बिल्ली से बेहतर नहीं है । यदि माँगना ही है तो किसी अल्पसंख्यक समाज में जन्म माँग जिन पर आजकल सभी मेहरबान हो रहे हैं , जिनके लिए अलग शिक्षण संस्थान खोले जा रहे हैं, आरक्षण दिया जा रहा है, उनके विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जा रही है जब कि ब्राह्मण को कुछ नहीं मिलता बल्कि तथाकथित प्रगतिवादियों द्वारा अपमानित ऊपर से किया जा रहा है ।


कहने लगा- इसका मतलब कि तू अखबार नहीं पढ़ता । कल ही छपा था कि इटली के एक ९२ वर्षीय महिला ने अपनी करोड़ों की संपत्ति अपनी पालतू बिल्ली के नाम कर दी । यह दुनिया की तीसरे नंबर की धनवान पालतू पशु है । पहले नंबर पर एक जर्मन शेपहर्ड कुत्ता है । क्या पता, अगले जन्म में कुत्ता-बिल्ली बनने पर कोई मेरे नाम पर भी करोड़ों की वसीयत छोड़ जाए । यदि यह नहीं तो कम से कम अगला जन्म तो सुख से कटेगा ।

हमने कहा- इस भ्रम में मत रहना । जैसे गौशाला की गायों का अनुदान और चंदा अध्यक्ष, मंत्री और कोषाध्यक्ष खा जाते हैं वैसे क्या गारंटी है कि इस बिल्ली के नाम किया गया पैसा कोई पशु-प्रेमी एन.जी.ओ. नहीं खा जाएगा ? यह भी नरेगा और बी.पी.एल. जैसा ही षडयंत्र है । वास्तविक पिछड़े, दलितों, गायों और कुत्ते-बिल्लियों की वही हालत रहने वाली है जो हमेशा से रही है ।

तोताराम हार मानने वाला थोड़े ही है, बोला- फिर भी इससे यह तो पता चलता है कि विदेशी कुत्ते-बिल्लियों से कितना प्रेम करते हैं ?

हमने कहा- मानव का पशु-प्रेम तो हमेशा से ही रहा है । पहले क्या गाय और कुत्ते के लिए पहली और आखिरी रोटियाँ नहीं बनती थी ? बचपन में जब गली की कुतिया ब्याती थी तो क्या हम उसके लिए आटा, गुड़ और तेल माँग कर नहीं लाते थे, उसके लिए हलवा नहीं बनाते थे ? बल्कि उस समय आज की बजाय पशु और पक्षी प्रेम के अधिक पात्र हुआ करते थे । अब तो लोग कहते हैं कि आवारा पशुओं की नसबंदी कर दी जाए या फिर उन्हें मार ही दिया जाए । पहले कोई राजा ही मृगया करता था मगर आज तो केवल काटने के लिए पशु-पक्षी पाले जाते हैं और वह भी बहुत निर्दयता से । अब तो अमरीका की तर्ज़ पर मुर्गी, सूअर के पालन को फार्मिंग अर्थात खेती कहा जाने लगा है । और तुझे पता है चीन और उत्तर-पूर्व में तो कुत्तों को भी लोग बड़े चाव से खाते हैं । क्या गारंटी है कि किसी महिला की वसीयत की बजाय तुझे काटकर, प्लेट में रखकर किसी को सर्व नहीं कर दिया जाएगा ?

जहाँ तक तू पश्चिमी देशो के पशु-प्रेम की बात करता है तो हमें तो लगता है कि आज की अर्थव्यवस्था और मानवीय स्वार्थ की नीचाताओं के कारण आदमी का आदमी पर से विश्वास उठ गया है । उसे पशुओं की संगति में अधिक सुरक्षा अनुभव होती है अन्यथा मानवीय संवेदना की परिधि में तो मनुष्य, पशु-पक्षी ही क्या समस्त चराचर जगत आ जाता है । हमारे यहाँ तो लोग नदी, पहाड़, कुए, बावड़ी से भी सजीवों का सा व्यवहार किया जाता था ।

वैसे यह धरती नितांत संवेदना शून्य नहीं हुई है । अमरीका का ही एक उदहारण है- कोई बीसेक वर्ष पहले कपड़ों पर इस्त्री करके अपनी जीविका चलाने वाली एक काली, अशिक्षित महिला ने अपनी जीवन भर की कमाई कोई एक लाख डालर के करीब मिसिसिपी की मेम्फिस यूनिवर्सिटी को गरीब बच्चों को छात्रवृत्ति देने के लिए एक कोष की स्थापनार्थ के लिए दे दी ।

तोताराम बोला- तू कुछ भी कह मगर मेरी मान्यता है कि आज भी दुनिया में पशु-प्रेम बचा हुआ है । हर अमरीकी राष्ट्रपति कुत्ता या बिल्ली पालता है और उसका बकायदा नामकरण होता है और उसका पत्रकारों से इंटरव्यू करवाया जाता है । बुश की बिल्ली का नाम 'इण्डिया' था और क्लिंटन के कुत्ते का नाम 'बडी' था । ओबामा के कुत्ते का नाम मुझे याद नहीं है मगर क्या वो किसी से कम स्पृहणीय है ? और अपने यहाँ भी तो धर्मराज अपने कुत्ते को अपने साथ स्वर्ग ले गए थे । आज भी यदि कोई पार्टी के आदेश पर कुत्ते की तरह किसी पर भी भौंकने के लिए तैयार रहता है तो उसे पार्टी प्रवक्ता का पद दे दिया जाता है । यदि वसीयत नहीं, तो किसी पार्टी में प्रवक्ता का दर्ज़ा ही मिल जाएगा । ठीक है तू मेरी मदद नहीं करता है तो मत कर । मैं कोई और जुगाड़ देखूँगा ।

और तोताराम चला गया । मित्र होने के नाते हम तोताराम के कल्याण की कामना करते हैं, मनुष्य जन्म में नहीं तो कुत्ते-बिल्ली के जन्म में ही सही ।

१३-१२-२०११


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. 
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