Oct 28, 2015

विज्ञापन का सन्देश

  विज्ञापन का सन्देश 

कल एक समाचार पढ़ा- सरकार मीडिया विशेषज्ञों और जनता से पूछेगी कि वे विज्ञापनों में उसके सन्देश को किस प्रकार समझते हैं ?

आते ही हमने तोताराम को एक सरकारी विज्ञापन दिखा कर पूछा- तुझे इनसे क्या सन्देश पहुँचता है ? 

बोला- पहले तो यह बता कि तू यह पूछ क्यों रहा है ?

हमने कहा- हम कुछ नहीं पूछ रहे |हमें पूछकर करना क्या है ? यह तो सरकार जानना चाहती है कि उसके विज्ञापनों के लोगों तक क्या सन्देश पहुंचता है ?
बोला- यदि सरकार जानना चाहती है तो लिख दे, वही सन्देश पहुंचा जो वह पहुंचाना चाहती है |

हमने कहा- यह तो कोई उत्तर नहीं हुआ |


बोला- हो या नहीं लेकिन ऐसे मामलों में ऐसे ही उत्तर हुआ करते हैं ? मैं क्यों कुछ कहकर चक्कर में पडूँ |बस, यह समझ ले कि जहाँ भी स्वच्छता-अभियान का आयोजन होने वाला होता है तो डर के मारे कूड़ा अपने आप जाने कहाँ भाग जाता है ? जो भी फोटो छपता है वहाँ कूड़े के अलावा सब कुछ दिखाई देता है | 

हमने फिर कहा- मान ले यदि सरकार कुछ नहीं पूछती |हम ही, वैसे ही तुझसे पूछ रहे हैं तो ?

बोला- तो यह सन्देश पहुँचता है कि दाढ़ी में ही अपना और देश का सुखद भविष्य छुपा हुआ है जैसे मोदी जी, अमित शाह,अमिताभ बच्चन आदि | 

हमने फिर पूछा- और ?

बोला- और यह कि मोदी जी पर सूट की बजाय कुर्ता-जैकेट अधिक जमते हैं |

हमने कहा-यह तो वैसा ही उत्तर है जैसे महाभारत सुनाने के बाद कथावाचक ने एक महिला से पूछा- माताजी, आपको महाभारत में क्या बात सबसे अच्छी लगी तो बोली-- मुझे तो यह अच्छा लगा कि द्रौपदी के पाँच पति थे |अरे, भले आदमी हम मोदी जी की दाढ़ी और कुरते के बारे में नहीं पूछ रहे, कुछ विकास के बारे में बता |

बोला-विज्ञापन देख का ऐसा लगता है कि बस, रात भर की बात है |जब सुबह उठेंगे तो सुदामा के घर की तरह सब कुछ बदला हुआ मिलेगा |पता नहीं, तब इस घर-द्वार और देश को पहचान भी पाएँगे कि नहीं ?


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