संदेह
हो उदास बोले हमें पंडित हीरालाल |
कैसा कलजुग आ गया नहीं मिल रही दाल |
नहीं मिल रही दाल, दाल-रोटी न खाएँ |
तो बोलो ऐसे में कैसे प्रभु-गुण गाएँ |
कह जोशी कवि अगर दाल मिल भी जाएगी |
हमको है संदेह कभी गल भी पाएगी |
२२-१०-२०१५
हो उदास बोले हमें पंडित हीरालाल |
कैसा कलजुग आ गया नहीं मिल रही दाल |
नहीं मिल रही दाल, दाल-रोटी न खाएँ |
तो बोलो ऐसे में कैसे प्रभु-गुण गाएँ |
कह जोशी कवि अगर दाल मिल भी जाएगी |
हमको है संदेह कभी गल भी पाएगी |
२२-१०-२०१५
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