भांड को भांड रहने दो
प्रिय शाहरुख़
खुश रहो | वैसे तो मीडिया वाले तुम्हें बादशाह, किंग खान आदि कई संबोधनों से प्रचारित करते हैं | हो सकता है तुम्हारे कुछ फैन भी तुम्हें इस नाम से पुकारते हों लेकिन उम्र के हिसाब से तो तुम हमारे एक विद्यार्थी के समान हो | जहाँ तक किसी हॉल में फ़िल्में देखने की बात है तो हमने तो पोर्ट ब्लेयर के 'लाईट हाउस सिनेमा हॉल' में अंतिम बार १९८३ में 'गाँधी' फिल्म देखी थी तब तुम शायद स्कूल में पढ़ते थे | खैर, हमने तुम्हारी फिल्म 'माई नेम इज खान' यूट्यूब पर ज़रूर देखी थी |अच्छी लगी |
वैसे तो हम बड़े-बड़े लोगों को ही पत्र लिखते हैं लेकिन कल जब तुम्हारा इंटरव्यू पढ़ा तो लगा तुममें कुछ तो बात है |तुमने कहा- हम लोग तो भांड हैं |ज़िन्दगी में जाने कैसे कैसे भेष बदलते हैं, सारे दिन मेकअप में घुसे रहते हैं कि खुद की भी असली सूरत ध्यान में नहीं रहती |हमें दुनिया की बहुत सी जानकारियाँ नहीं होतीं इसलिए बेहतर है कि हम भांड ही रहें |
भई, इस ज़माने में मज़ा बहुत कम आता है लेकिन तुम्हारी इस बात से मज़ा आ गया | इस ज़माने में तो हालत यह है कि नाव डुबाने का काम माँझी ही करते हैं, चोरी का डर पुलिस वालों से अधिक रहता है, एक बार डाकू छोड़ भी दे लेकिन सेवा के नाम चुना गया नेता नहीं बख्शता, सबसे अधिक यौन शोषण का खतरा खुद को भगवान का अवतार बताने वाले संत पुरुष के आश्रम में रहता है | आत्मा के ज्ञान से शुरू होकर महात्मा जी का समापन पौरुष बढ़ने वाला च्यवनप्राश बेचने में होता है |मंदिर के दान पात्र सबसे अधिक असुरक्षित पुजारी जी पास ही रहता है |किसी अभिनेता को किसी पार्टी ने ज़रा सा मुँह क्या लगाया, बस शुरू हो जाता है हर बात पर एक्सपर्ट कमेंट देने | अच्छा है, तुमने ऐसा दोगला काम नहीं किया |सच कह दिया | सच कहने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए |सत्य कहने वाला सत्यकाम जाबालि ब्राह्मण ही हो सकता है |
वैसे आजकल के अभिनेता बड़े समझदार हैं जो केवल फिल्मों के भरोसे ही नहीं रहते, साइड में अपना कोई और धंधा भी करते हैं क्योंकि अभिनय तो ऐसा धंधा है जो जब तक चले तो ठीक है अन्यथा इसमें कौन सी पेंशन है | और फिर यदि सुपर स्टार का भूत दिमाग में घुस जाए तो छोटा-मोटा रोल करते शर्म आती है और बड़ा रोल मिलता नहीं |सब की किस्मत तो अमिताभ बच्चन जैसी होती नहीं कि साठ के हुए तो वैसा और सत्तर के हुए तो वैसा ही रोल मिल जाए | पहले वाले अभिनेताओं जैसे मोतीलाल, हंगल आदि की अंतिम दिनों में हालत बड़ी पतली रही |हमने देखा है- किसी ज़माने के जमने वाले और अब अस्सी साल के हो चुके कवियों को अपने पोते की उम्र के लोकप्रिय कवि को आदरणीय कह कर कविसम्मेलन माँगते हुए |
वैसे यदि बुरा न मानो तो एक बात पूछें ? क्या वास्तव में ही तुम हकलाते हो या शुरू-शुरू में नर्वस होने के कारण हकलाते थे और अब इसे अपना स्टाइल बना लिया ?
बस, एक सलाह देना चाहते हैं कि कहीं खुद को खुदा समझकर रात को, नशे में, तेज़ गाड़ी मत चलाना क्योंकि हमेशा सलमान वाला संयोग हो, न हो |
प्रिय शाहरुख़
खुश रहो | वैसे तो मीडिया वाले तुम्हें बादशाह, किंग खान आदि कई संबोधनों से प्रचारित करते हैं | हो सकता है तुम्हारे कुछ फैन भी तुम्हें इस नाम से पुकारते हों लेकिन उम्र के हिसाब से तो तुम हमारे एक विद्यार्थी के समान हो | जहाँ तक किसी हॉल में फ़िल्में देखने की बात है तो हमने तो पोर्ट ब्लेयर के 'लाईट हाउस सिनेमा हॉल' में अंतिम बार १९८३ में 'गाँधी' फिल्म देखी थी तब तुम शायद स्कूल में पढ़ते थे | खैर, हमने तुम्हारी फिल्म 'माई नेम इज खान' यूट्यूब पर ज़रूर देखी थी |अच्छी लगी |
वैसे तो हम बड़े-बड़े लोगों को ही पत्र लिखते हैं लेकिन कल जब तुम्हारा इंटरव्यू पढ़ा तो लगा तुममें कुछ तो बात है |तुमने कहा- हम लोग तो भांड हैं |ज़िन्दगी में जाने कैसे कैसे भेष बदलते हैं, सारे दिन मेकअप में घुसे रहते हैं कि खुद की भी असली सूरत ध्यान में नहीं रहती |हमें दुनिया की बहुत सी जानकारियाँ नहीं होतीं इसलिए बेहतर है कि हम भांड ही रहें |
भई, इस ज़माने में मज़ा बहुत कम आता है लेकिन तुम्हारी इस बात से मज़ा आ गया | इस ज़माने में तो हालत यह है कि नाव डुबाने का काम माँझी ही करते हैं, चोरी का डर पुलिस वालों से अधिक रहता है, एक बार डाकू छोड़ भी दे लेकिन सेवा के नाम चुना गया नेता नहीं बख्शता, सबसे अधिक यौन शोषण का खतरा खुद को भगवान का अवतार बताने वाले संत पुरुष के आश्रम में रहता है | आत्मा के ज्ञान से शुरू होकर महात्मा जी का समापन पौरुष बढ़ने वाला च्यवनप्राश बेचने में होता है |मंदिर के दान पात्र सबसे अधिक असुरक्षित पुजारी जी पास ही रहता है |किसी अभिनेता को किसी पार्टी ने ज़रा सा मुँह क्या लगाया, बस शुरू हो जाता है हर बात पर एक्सपर्ट कमेंट देने | अच्छा है, तुमने ऐसा दोगला काम नहीं किया |सच कह दिया | सच कहने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए |सत्य कहने वाला सत्यकाम जाबालि ब्राह्मण ही हो सकता है |
वैसे आजकल के अभिनेता बड़े समझदार हैं जो केवल फिल्मों के भरोसे ही नहीं रहते, साइड में अपना कोई और धंधा भी करते हैं क्योंकि अभिनय तो ऐसा धंधा है जो जब तक चले तो ठीक है अन्यथा इसमें कौन सी पेंशन है | और फिर यदि सुपर स्टार का भूत दिमाग में घुस जाए तो छोटा-मोटा रोल करते शर्म आती है और बड़ा रोल मिलता नहीं |सब की किस्मत तो अमिताभ बच्चन जैसी होती नहीं कि साठ के हुए तो वैसा और सत्तर के हुए तो वैसा ही रोल मिल जाए | पहले वाले अभिनेताओं जैसे मोतीलाल, हंगल आदि की अंतिम दिनों में हालत बड़ी पतली रही |हमने देखा है- किसी ज़माने के जमने वाले और अब अस्सी साल के हो चुके कवियों को अपने पोते की उम्र के लोकप्रिय कवि को आदरणीय कह कर कविसम्मेलन माँगते हुए |
वैसे यदि बुरा न मानो तो एक बात पूछें ? क्या वास्तव में ही तुम हकलाते हो या शुरू-शुरू में नर्वस होने के कारण हकलाते थे और अब इसे अपना स्टाइल बना लिया ?
बस, एक सलाह देना चाहते हैं कि कहीं खुद को खुदा समझकर रात को, नशे में, तेज़ गाड़ी मत चलाना क्योंकि हमेशा सलमान वाला संयोग हो, न हो |
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