Dec 2, 2015

एक सच्ची और वैश्विक क्षमावणी की आवश्यकता

  एक सच्ची और वैश्विक क्षमावणी की आवश्यकता

आजकल भारत में असहिष्णुता पर चर्चा चल रही है | उसके आयामों पर उड़ती नज़र डालते हुए निकट विगत  के योरप और अमरीका के कुछ उदहारण देते हुए बात की शुरुआत की थी कि छोटी-छोटी छेड़खानियाँ भी किसी समाज को आहत कर व्यर्थ में उकसाकर शांति के माहौल को बिगाड़ सकती हैं |इसलिए इनसे बचा जाना चाहिए |

लेकिन ज्ञात मानव-इतिहास इतना ही तो नहीं है | इस तरह की घटनाओं के पीछे दो हजार वर्ष से भी पुराना इतिहास है इस दुनिया का जिसमें धर्म के नाम पर किए गए युद्धों (ज़िहादों और क्रूसेडों )के रक्तपात की ऊपर से सूख चुकी पपड़ियों के नीचे अभी भी ताज़ा घाव हैं जिनसे विभिन्न समूहों,  समाजों, धर्मों  की जातीय स्मृतियों में रक्त स्राव हो रहा है | यद्यपि गत कुछ सौ वर्षों में जिहाद और क्रूसेड अपने मूल रूप में  दिखाई देने बंद से हो गए और विगत सदी के मध्य में उपनिवेशवाद का खात्मा भी  शुरू हो चुका था फिर भी धर्म के नाम पर न सही,किसी और प्रतीक यथा विभाजन,राष्ट्र, शक्ति संतुलन,लोकतंत्र, विश्व शांति के नाम पर जर्मनी,चीन, वियतनाम, बंगलादेश, कम्बोडिया,  लाओस, अफ्रीका,तिमोर आदि में करोड़ों निर्दोष लोगों की हत्याएँ हुईं |

यदि धर्म और हिंसा के संबंधों पर दृष्टि डालें तो प्रेम के धर्म ईसाइयत और भाईचारे वाले इस्लाम का इतिहास हत्या, लूट, बलात्कार, बलात धर्मान्तरण का क्रमशः दो हजार और डेढ़ हजार साल का  है | इस्लाम के नाम पर जिहाद और अन्य देशों पर कब्ज़ा करने के लिए आक्रमणों में योरप, अफ्रीका, एशिया महाद्वीपों में २७ करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा जिनमें १२ करोड़ अफ्रीकन, ६ करोड़ ईसाई, ८ करोड़ हिन्दू, १ करोड़ बौद्ध शामिल हैं |वैसे इसमें विभाजन के समय पाकिस्तान में मारे गए हिन्दू, १९७०-७१ में बंगला देश में मारे गए बंगलादेशी मुसलमानों और हिन्दुओं तथा इस्लामी देशों में मारे गए, अत्याचार करके धर्मान्तरण किए गए लोगों का हिसाब नहीं है | इसके अतिरिक्त जलाए गए पुस्तकालय, तोड़े गए धार्मिक स्थल, लूटपाट और बलात्कार की भी अनगिनत घटनाएँ हुईं |आज भी विभिन्न देश शिया और सुन्नी के नाम पर लड़ रहे हैं |आज इसका नवीन संस्करण आइएस है जो निष्काम भाव और  समान रूप से सब को आतंकित कर रहा है और लपेटे में लिए हुए है |

इसी तरह ईसाइयत के नाम पर क्रूसेड और दुनिया के गैर ईसाइयों की आत्माओं का उद्धार करने के लिए योरप, आस्ट्रेलिया,दोनों अमरीका, एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश बनाने के नाम पर २५ करोड़ लोगों  की हत्याएं दर्ज हैं  | इनमें योरप में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए हुई हत्याएं, चुड़ैल बताकर मारी गई लाखों महिलाओं की हत्या, अफ्रीका, दोनों अमरिकाओं में किए अमानवीय कर्म और मूल निवासियों के विनाश भी शामिल हैं | भारत में भी छल-छद्म और डर पैदा करके करवाया गया धर्मान्तरण का भी एक क्रूर इतिहास रहा है |हो सकता है संसार के कुछ अन्य छोटे धर्मों ने भी कुछ ऐसे काम किए हों लेकिन वे इनके सामने किसी गिनती में नहीं आते |

भारत ने एक हजार वर्षों तक इस्लाम और ईसाई दोनों धर्मों के तथाकथित प्रेम और भाईचारे का, जो केवल उनके अपने धर्म तक ही सीमित रहे, मज़ा लिया है और वे सारे सुख उसकी जातीय स्मृतियों में जिंदा हैं जिनमें कहीं कुछ अतिशयोक्ति भी हो सकती हैं लेकिन वे अधिकतर सत्य हैं | सारे देश में टूटे धार्मिक स्थल, आस्था केंद्र, मूर्तियाँ इस सत्य के प्रमाण हैं | विजित जाति विजेता के प्रति अपनी घृणा और पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकती तो वह उसे सांस्कृतिक अलगाव,उपेक्षा को कथाओं, गीतों, साहित्य में संजोती है  | इस पर भी यह इस देश की सहिष्णुता ही है कि यह गृह युद्धों से बचा रहा है |और आज भी दुनिया में एक अजूबे की तरह सभी  धर्मों और सम्प्रदायों को अपने में समाहित किए हुए है |उत्तर पूर्व में ईसाई धर्म का सुनियोजित प्रचार और प्रसार भी इस देश की एकता को नष्ट करने का षड्यंत्र था जिसे उनके जाने के बाद भी सरकारों ने नज़र अंदाज़ किया  |

पराधीनता के समय की एकता, लोकतंत्र आने के बाद सत्ता के सपनों के चक्कर में वोट बैंक की राजनीति में बदल कर देश की एकता के लिए खतरा बन गई | होना यह चाहिए था कि एक समान कानून, शिक्षा का एक समान पाठ्यक्रम,  तुष्टीकरण या पुष्टीकरण से परे एक निष्पक्ष और सच्चा इतिहास इस देश  को दिया जाना चाहिए था जिससे अब तक हम एक संगठित राष्ट्र बन गए होते |राष्ट्र बनने के लिए सब को अपनी छोटी-बड़ी  अस्मिताओं और कुंठाओं, भूतपूर्व विजेता और विजित के मनोविज्ञानों  का विसर्जन करना ज़रूरी भी होता है लेकिन यह किसी एक वर्ग की नहीं वरन समस्त राष्ट्र की बात है |

सुदर्शन की एक कहनी  है- हार की जीत जिसमें  बाबा भारती  विकलांग का वेश बनाकर धोखे से घोड़ा ले जाने वाले खड्ग सिंह से कहते हैं - किसी को यह घटना मत बताना अन्यथा लोग किसी विकलांग की सहायता नहीं करेंगे |या रावण के साधु वेश में सीता हरण से अच्छे साधु भी शंका के घेरे में आ जाते हैं |आज आतंकवादी वास्तव में इस्लाम के सच्चे अनुयायी हैं या नहीं लेकिन वे आड़ तो इस्लाम की लिए हुए  हैं और उनका यह रूप विश्व में सरलता से इस्लाम को सन्देह के घेरे में ले लेता है |इसलिए इस समय इस्लाम को अपनी विश्वनीयता कायम रखने के लिए खुद को हर तरह से इससे अलग करना होगा, और इससे पीड़ित सभी जनों के साथ खड़ा होना होगा |यह उसके और शेष संसार के लिए भी उचित है |क्योंकि यह आइएस किसी न किसी रूप में इस्लाम के विरुद्ध भी है |धर्म की आड़ में इस पर विश्वास करना भारत ही नहीं ,कहीं के भी मुसलमान के लिए भी अनर्थकारी ही है |

भारत के सभी ईसाई, मुसलमान अपने इतिहास, रक्त, परिवेश, रहन-सहन, खान-पान, बोली-भाषा और डी.एन.ए. से भारतीय ही हैं |वे किसी भी तरह से वेटिकन के गोरे ईसाई तंत्र और अरब देशों के नज़दीक नहीं हैं | वे समस्त विश्व में भारतीय के रूप में ही पहचाने जाते हैं |अपने धार्मिक और राजनीतिक स्वार्थ के लिए भले ही उन्हें धर्म के नाम पर जोड़ा जाता हो लेकिन वेटिकन और अरब के मन में वे आज भी दोयम दर्ज़े के ईसाई और दोयम दर्जे  के मुसलमान हैं | उनके हित, भविष्य और भाग्य भारत के साथ जुड़े हैं | ईश्वर और खुदा सब जगह हैं इसलिए वे योरप या अरब में ही नहीं बल्कि यहाँ भी उनके साथ हैं |

भारत का धर्म या किसी भी अन्य कारण से, कहीं भी नर-संहार का इतिहास नहीं रहा है |कुछ तथाकथित प्रगतिवादी इतिहासकारों ने इस पर हुए अत्याचारों को कम करके बताया है, मुसलमान शासकों के अपवाद स्वरुप हिन्दू-प्रेम को और अंग्रेजों के अपने स्वार्थ के लिए किए गए कार्यों को भारत की एकता और विकास का नाम दिया है और भारत में हुए छोटे मोटे धार्मिक संघर्षों को क्रूसेड और जिहाद की तरह चित्रित किया है |इससे भी भारतीय मन आहत होता है और निरंतर ऐसी पीड़ा, हो सकता है शाब्दिक असहिष्णुता में प्रकट हो रही है |  या शताब्दियों से आहत जन को एक शाब्दिक मरहम लगती हो |

भारत में स्वतंत्रता के बाद वोट या तथाकथित अस्मिता या लोकतंत्र के नाम पर इसे तरह-तरह से खंडित करने के प्रयत्न किए गए हैं |अब तो अल्पसंख्यक के नाम पर ईसाई , मुसलमान,पारसी,यहूदी ही नहीं,भारत मूल के चिन्तनों और दर्शनों जैसे बौद्ध, जैन, सिख आदि को भी अलग सा कर दिया है |इसीलिए जैन और सिख भी अब अपने को धर्म की दृष्टि से अलग मानने लगे हैं |यह कोई अच्छा लक्षण नहीं है |भले ही इस देश में किसी एक राजा का शासन नहीं रहा लेकिन संस्कृति, आस्था, इतिहास, दर्शन और डी.एन.ए. के हिसाब से भारत एक रहा है और आज भी एक है |

धर्म और नस्ल के नाम पर विश्व में किए गए नर संहारों के बावजूद किसी में भी इसके लिए पछतावा दिखाई नहीं देता | युद्ध अपराधों के लिए आज भी बहुत से देशों के पीड़ित जन क्षमा की अपेक्षा रखते हैं लेकिन  किसी भी देश, धर्म या समाज ने क्षमा नहीं माँगी है |क्या अत्याचारों, नरसंहारों, अपराधों और लूटपाट के ज़िम्मेदारों को उनके अपने धर्म इतनी भी उदारता, करुणा और संवेदना प्रदान नहीं करते कि वे अपने कुकर्मों के लिए सच्चे दिल से क्षमा माँगें, बिना किसी किन्तु-परन्तु के और इस दुनिया को प्रेमपूर्ण बनाने की कोशिश करें | क्या यह आवश्यक नहीं है ?

जहां तक ईश्वर की बात है तो किसी भी धर्म के मसीहा ने यह नहीं कहा है कि ईश्वर अनेक हैं और वह अपनी संतानों में भेदभाव करता है |यह अँधेरा तो उनके स्वार्थी अनुयायियों का फैलाया हुआ है | क्या वे इतनी विशाल हृदयता,संवेदनशीलता और ईश्वर में सच्ची आस्था दिखाएँगे ? यह पीड़ितों से अधिक पीड़कों के लिए भी उतना ही ज़रूरी है |

रामचरित के सुन्दरकाण्ड में अपनी शरण आए विभीषण से राम,राम जो ईश्वर हैं, कहते हैं-
जों नर होइ चराचर द्रोही
आवै सभय सरन तकि मोही
तजि मद मोह कपट छल नाना
करउँ सद्य तेहि साधु समाना

सच्चे और निर्विकार मन से 'उसके' चरणों में समर्पण करके देखिए तो ?

क्या जलवायु परिवर्तन की तरह संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में कोई ऐसा सम्मेलन आयोजित करने पर विचार किया जा सकता है जिसमें सभी राष्ट्र और धर्म उनके या उनके पूर्वजों के धर्म या खुदा या गॉड के नाम पर किए गए अपराधों के लिए सच्चे दिल से क्षमा माँग कर इस दुनिया की मानसिक और वैचारिक जलवायु स्वच्छ बनाने की एक ईमानदार कोशिश करने की सोचेंगे ?









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