सड़क पर साँड़
हालाँकि रात को तापमान शून्य रहा लेकिन सुबह दस-ग्यारह बजे बरामदे में सुहानी धूल निकल आई |पता नहीं, अटल जी के विगत सुशासन या जन्म-दिन का प्रभाव था या वर्तमान में दुनिया में चमक रही इण्डिया की छवि का लेकिन अच्छा लग रहा था |तोताराम और हम चाय के साथ क्रिसमस और पौष-बड़ा दोनों एक साथ मना रहे थे |जैसे ही तोताराम पकौड़ों की अगली खेप लेने गया तो रास्ते से जा रहे सांड पकौड़ों सहित हमारी प्लेट उठा ले गया |हमें गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कर क्या सकते थे ? वह धार्मिक, राजनीतिक और शारीरिक तीनों रूपों में हमसे कहीं शक्तिशाली |
जैसे ही तोताराम पकौड़े लेकर आया, हमने उसकी प्लेट को लपक लिया और कहा-अपने लिए दूसरी ले आ |हमारे वाली तो नंदी जी महाराज ले गए | पता नहीं, सरकार इनका कुछ करती क्यों नहीं ?
तोताराम बोला- बन्धु, ये चाहें तो किसी को भी घायल कर दें, सब्ज़ी मंडी में आतंक फैला दें, छात्र संघ के नेताओं के गैंगवार की तरह मोहल्ले के लोगों का जीना हराम कर दें लेकिन इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |सड़क से संसद तक इन्हीं का राज है |खाएँगे, दहाड़ेंगे, स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद सड़क के बीच लघु और दीर्घ शंका समाधान करेंगे |ये या तो भावी नेता हैं या भूतपूर्व लेकिन साधारण, मेहनत की कमाई खाने वाले आम लोग नहीं हैं |
हमने कहा- अपने यहाँ सब चलता है लेकिन यदि बनारस हुआ होता तो सब बाड़े में बंद कर दिए गए होते |
बोला-यह तो एक असामान्य घटना है |जापान के प्रधान मंत्री आने वाले थे इसलिए यह नाटक किया गया था | जैसे लोकतंत्र की शोभा गुंडई, दलाली और भ्रष्टाचार है वैसे ही बनारस की शोभा हैं-सांड,रांड और सन्यासी | देखा नहीं, दो दिन में ही आस्था का प्रश्न उठने लगा | सांड शिव के नंदी हैं |किसी का भी यज्ञ विध्वंस कर सकते हैं | जब किसी को निबटाना होता था तो शिव नंदी को ही भेजते थे |
बनारस में भी इन्हें कोई 'बाड़ा' नहीं सँभाल सकेगा |जब तक इनका पेट नहीं भरेगा, ये गौशाला के अध्यक्ष तक को नहीं खाने देंगे |जब खाने को नहीं मिलेगा तो कौन अध्यक्ष इन्हें रखना चाहेगा | और प्रति गाय भी २५ रूपए और प्रति सांड भी २५ रूपए |कोई संसद की कैंटीन थोड़े ही है जो १२ रूपए में भर पेट माल मिल जाए |यह तो बड़ी नाइंसाफी है, कालिया |गायों की बात और है |खाने को दो या मत दो | पड़ी रहेंगी किसी कोने में लेकिन ये तो भूखे और भरे पेट दोनों स्थितियों में दहाड़ते हैं |और इनके खिलाफ थाने में भी कोई रिपोर्ट नहीं लिखता |कहते हैं- भैया, ये तो हमारे भी बाप हैं |नियुक्ति, प्रमोशन और ट्रांसफर सब इनके हाथ में हैं |
हमने कहा- तो फिर पकौड़ों की यह प्लेट भगवान शिव या लोकतंत्र या सरकार -किसी के भी नाम लिख दे और अपनी भाभी से अपने लिए दूसरी बनवा ले |
हालाँकि रात को तापमान शून्य रहा लेकिन सुबह दस-ग्यारह बजे बरामदे में सुहानी धूल निकल आई |पता नहीं, अटल जी के विगत सुशासन या जन्म-दिन का प्रभाव था या वर्तमान में दुनिया में चमक रही इण्डिया की छवि का लेकिन अच्छा लग रहा था |तोताराम और हम चाय के साथ क्रिसमस और पौष-बड़ा दोनों एक साथ मना रहे थे |जैसे ही तोताराम पकौड़ों की अगली खेप लेने गया तो रास्ते से जा रहे सांड पकौड़ों सहित हमारी प्लेट उठा ले गया |हमें गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कर क्या सकते थे ? वह धार्मिक, राजनीतिक और शारीरिक तीनों रूपों में हमसे कहीं शक्तिशाली |
जैसे ही तोताराम पकौड़े लेकर आया, हमने उसकी प्लेट को लपक लिया और कहा-अपने लिए दूसरी ले आ |हमारे वाली तो नंदी जी महाराज ले गए | पता नहीं, सरकार इनका कुछ करती क्यों नहीं ?
तोताराम बोला- बन्धु, ये चाहें तो किसी को भी घायल कर दें, सब्ज़ी मंडी में आतंक फैला दें, छात्र संघ के नेताओं के गैंगवार की तरह मोहल्ले के लोगों का जीना हराम कर दें लेकिन इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |सड़क से संसद तक इन्हीं का राज है |खाएँगे, दहाड़ेंगे, स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद सड़क के बीच लघु और दीर्घ शंका समाधान करेंगे |ये या तो भावी नेता हैं या भूतपूर्व लेकिन साधारण, मेहनत की कमाई खाने वाले आम लोग नहीं हैं |
हमने कहा- अपने यहाँ सब चलता है लेकिन यदि बनारस हुआ होता तो सब बाड़े में बंद कर दिए गए होते |
बोला-यह तो एक असामान्य घटना है |जापान के प्रधान मंत्री आने वाले थे इसलिए यह नाटक किया गया था | जैसे लोकतंत्र की शोभा गुंडई, दलाली और भ्रष्टाचार है वैसे ही बनारस की शोभा हैं-सांड,रांड और सन्यासी | देखा नहीं, दो दिन में ही आस्था का प्रश्न उठने लगा | सांड शिव के नंदी हैं |किसी का भी यज्ञ विध्वंस कर सकते हैं | जब किसी को निबटाना होता था तो शिव नंदी को ही भेजते थे |
बनारस में भी इन्हें कोई 'बाड़ा' नहीं सँभाल सकेगा |जब तक इनका पेट नहीं भरेगा, ये गौशाला के अध्यक्ष तक को नहीं खाने देंगे |जब खाने को नहीं मिलेगा तो कौन अध्यक्ष इन्हें रखना चाहेगा | और प्रति गाय भी २५ रूपए और प्रति सांड भी २५ रूपए |कोई संसद की कैंटीन थोड़े ही है जो १२ रूपए में भर पेट माल मिल जाए |यह तो बड़ी नाइंसाफी है, कालिया |गायों की बात और है |खाने को दो या मत दो | पड़ी रहेंगी किसी कोने में लेकिन ये तो भूखे और भरे पेट दोनों स्थितियों में दहाड़ते हैं |और इनके खिलाफ थाने में भी कोई रिपोर्ट नहीं लिखता |कहते हैं- भैया, ये तो हमारे भी बाप हैं |नियुक्ति, प्रमोशन और ट्रांसफर सब इनके हाथ में हैं |
हमने कहा- तो फिर पकौड़ों की यह प्लेट भगवान शिव या लोकतंत्र या सरकार -किसी के भी नाम लिख दे और अपनी भाभी से अपने लिए दूसरी बनवा ले |
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